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यह हटाओ-वह हटाओ नहीं चलेगा! सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया की आज़ादी पर लगाई मुहर, जानें किस मामले में की टिप्पणी

शुक्रवार को दिए गए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ पुराने अहम मामलों का ज़िक्र किया. 'सहारा बनाम सेबी' केस का उदाहरण देते हुए कोर्ट ने कहा कि मीडिया पर किसी कोर्ट केस की रिपोर्टिंग रोकने का आदेश तभी दिया जा सकता है जब उस केस की निष्पक्ष सुनवाई पर वाकई गंभीर असर पड़ने का खतरा हो.

यह हटाओ-वह हटाओ नहीं चलेगा! सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया की आज़ादी पर लगाई मुहर, जानें किस मामले में की टिप्पणी
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रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Updated on: 10 May 2025 7:04 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें विकिपीडिया को एएनआई (Asian News International) से जुड़ा एक पेज हटाने को कहा गया था. कोर्ट ने साफ कहा कि यह अदालत का काम नहीं है कि वह मीडिया को बताए कि कौन-सी खबर या जानकारी हटाई जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका (अदालतें) और मीडिया लोकतंत्र के दो जरूरी हिस्से हैं और उन्हें एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना चाहिए. कोर्ट ने बताया कि आज के डिजिटल जमाने में अदालतों की कार्यवाही पर जनता को जानकारी मिलना और उस पर खुलकर चर्चा होना जरूरी है. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर अदालतों में सुधार चाहिए, तो उनकी आलोचना भी होनी चाहिए, बशर्ते वह आलोचना ऐसी न हो जो न्याय के काम में रुकावट डाले.

क्या है मामला

विवाद की शुरुआत तब हुई जब एएनआई ने विकिपीडिया के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया. एएनआई ने आरोप लगाया कि विकिपीडिया पर उसके "एशियन न्यूज इंटरनेशनल" नामक पेज पर कथित तौर पर अपमानजनक और हानिकारक सामग्री मौजूद थी. इसके बाद, एएनआई ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की, जिसमें विकिपीडिया पर एक अन्य पेज को चुनौती दी गई, जो हाई कोर्ट में चल रही इस मानहानि कार्यवाही का विवरण देता था.

विकिपीडिया और IT अधिनियम

2 अप्रैल 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट की एकल पीठ ने विकिमीडिया फाउंडेशन को आदेश दिया कि वह एएनआई (ANI) के खिलाफ विकिपीडिया पर मौजूद कथित अपमानजनक जानकारी हटा दे. इसके बाद 8 अप्रैल को हाईकोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने इस फैसले को सही बताया और कहा कि विकिपीडिया खुद को "मध्यस्थ" (intermediary) कहकर जिम्मेदारी से नहीं बच सकता. कोर्ट ने यह भी कहा कि एक इनसाइक्लोपीडिया होने के नाते विकिपीडिया को ज्यादा जिम्मेदारी लेनी चाहिए और बदनाम करने वाली जानकारी को हटाने के लिए कदम उठाने चाहिए. विकिपीडिया ने इस आदेश का पालन किया, यानी उस कंटेंट को हटा दिया, लेकिन इसके खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट गया. विकिपीडिया की तरफ से वकील कपिल सिब्बल और अखिल सिब्बल ने बताया कि विकिपीडिया की सारी जानकारी आम लोग लिखते हैं, विकिपीडिया खुद नहीं. उन्होंने यह भी साफ किया कि जिस बयान पर हाईकोर्ट ने आपत्ति जताई थी. जिसमें कहा गया था कि एक जज ने विकिपीडिया को भारत में बंद करने की धमकी दी, वह किसी यूज़र की राय नहीं थी, बल्कि एक असली न्यूज़ रिपोर्ट से लिया गया था.

'सहारा बनाम सेबी'

शुक्रवार को दिए गए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ पुराने अहम मामलों का ज़िक्र किया. 'सहारा बनाम सेबी' केस का उदाहरण देते हुए कोर्ट ने कहा कि मीडिया पर किसी कोर्ट केस की रिपोर्टिंग रोकने का आदेश तभी दिया जा सकता है जब उस केस की निष्पक्ष सुनवाई पर वाकई गंभीर असर पड़ने का खतरा हो और ऐसा कोई भी आदेश बहुत जरूरी और संतुलित होना चाहिए. कोर्ट ने 1966 के 'नरेश श्रीधर मिराजकर' केस का भी हवाला दिया, जिसमें यह तय किया गया था कि अदालतों की कार्यवाही को सार्वजनिक रखना बहुत जरूरी है, ताकि जनता का भरोसा न्यायपालिका पर बना रहे.

कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट की उस बात को साफ तौर पर खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि विकिपीडिया को एक विश्वकोश होने के नाते ज्यादा जिम्मेदारी लेनी चाहिए और उसे मानहानि रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए. कोर्ट ने कहा कि यह तर्क गलत है, क्योंकि विकिपीडिया एक ऐसा ऑनलाइन मंच है जिसे आम लोग चलाते हैं, और भारत के आईटी कानून के अनुसार, ऐसे प्लेटफॉर्म को कानूनी सुरक्षा (सेफ हार्बर) मिलती है, जब तक वे खुद से कोई गलत जानकारी नहीं डालते.

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