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क्या प्यार करना गुनाह है? मुस्लिम नाबालिग शादी पर कोर्ट का बड़ा फैसला, Supreme Court ने NCPCR को लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली NCPCR की याचिका खारिज कर दी. 16 साल की मुस्लिम लड़की आशियाना और 30 वर्षीय जावेद को हाईकोर्ट ने सुरक्षा दी थी. कोर्ट ने कहा, “POCSO का मकसद अपराध रोकना है, प्यार को सजा देना नहीं.” अदालत ने युवाओं के रोमांटिक रिश्तों और आपराधिक मामलों में अंतर की जरूरत बताई और परिवार के दबाव में POCSO केस लगाने के खतरों पर चेताया.

क्या प्यार करना गुनाह है? मुस्लिम नाबालिग शादी पर कोर्ट का बड़ा फैसला, Supreme Court ने NCPCR को लगाई फटकार
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 19 Aug 2025 3:09 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को NCPCR (राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग) की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाया गया था. हाईकोर्ट ने 2022 में एक मुस्लिम नाबालिग लड़की और उसके पति को सुरक्षा प्रदान की थी. अदालत ने साफ कहा कि आयोग का इस मामले में कोई “लोगस स्टैंडी” नहीं है, क्योंकि यह सिर्फ जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा से जुड़ा था.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच (जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन) ने NCPCR को फटकारते हुए कहा, “क्या प्यार करना अपराध है? POCSO का मकसद बच्चों को शोषण से बचाना है, न कि रोमांटिक रिश्तों को अपराध बना देना.” अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में परिवार के दबाव में अनावश्यक रूप से POCSO का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे स्थिति और बिगड़ती है.

क्या था मामला?

दरअसल, 16 वर्षीय आशियाना और 30 वर्षीय जावेद ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत शादी की थी. परिवार से खतरा महसूस होने पर दोनों ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार 15 साल की उम्र पूरी कर चुकी या यौवन प्राप्त कर चुकी लड़की शादी कर सकती है. इस आधार पर कोर्ट ने दोनों को सुरक्षा दी थी.

हाईकोर्ट का अहम आदेश

2022 में सुनाए गए फैसले में हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ को मान्यता देते हुए कहा कि यह विवाह वैध है. अदालत ने दंपति और उनके बच्चे को सुरक्षा देने का आदेश दिया. हालांकि, इस फैसले ने POCSO और चाइल्ड मैरिज प्रोहिबिशन एक्ट से टकराव पैदा कर दिया, क्योंकि इन कानूनों के अनुसार 18 साल से कम उम्र की शादी गैरकानूनी है.

NCPCR की आपत्ति और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया

NCPCR का कहना था कि यह विवाह “child sexual abuse” के दायरे में आता है और इसे वैध मानना नाबालिगों के शोषण को बढ़ावा देगा. आयोग चाहता था कि सुप्रीम कोर्ट इस पर स्पष्टीकरण दे. लेकिन बेंच ने साफ कहा कि, “अगर दो किशोर साथ रहना चाहते हैं और हाईकोर्ट उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करता है, तो इसमें दिक्कत क्यों होनी चाहिए?”

सामाजिक यथार्थ पर कोर्ट का रुख

जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “आज बच्चे स्कूल और कॉलेज में साथ पढ़ते हैं. वे भावनात्मक रिश्ते बनाते हैं, यह समाज की वास्तविकता है. ऐसे मामलों को अपराध मान लेना गलत होगा.” अदालत ने चेतावनी दी कि कई बार परिवार इज़्ज़त के नाम पर POCSO का सहारा लेकर युवाओं को फंसाता है, जो ‘ऑनर किलिंग’ जैसी मानसिकता को बढ़ावा देता है.

कानूनी टकराव बरकरार

भारत में विवाह की न्यूनतम आयु को लेकर अभी भी विरोधाभास है.

  • प्रोहिबिशन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट (2006): लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 वर्ष तय.
  • POCSO एक्ट (2012): 18 से कम उम्र में शारीरिक संबंध अपराध.
  • मुस्लिम पर्सनल लॉ: 15 साल या यौवन प्राप्त होने पर शादी वैध.

यही असमानता अदालतों को अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग फैसले देने के लिए मजबूर करती है.

व्यापक असर और भविष्य की दिशा

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला संकेत देता है कि रोमांटिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी में डालने से बचना होगा. अदालत ने साफ कर दिया कि यह मामला किसी बड़े कानूनी सिद्धांत का नहीं बल्कि जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा का था. आयोग को “बेहतर मुद्दों” पर ध्यान देने की सलाह देते हुए कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. अब यह बहस संसद और समाज के स्तर पर ही सुलझाई जा सकती है कि पर्सनल लॉ और आधुनिक कानूनों में संतुलन कैसे बनाया जाए.

सुप्रीम कोर्ट
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