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IPS अफसर लेकिन हमेशा विवादों से नाता, फिर क्यों चर्चा में? कहानी संजीव भट्ट की

नाम संजीव भट्ट, पेशा IPS अधिकारी, खुद को बताते हैं कश्मीरी पंडित. हाल ही में सुर्खियों में आए हैं जब उन्हें 1997 के कस्टडी में टॉर्चर करने के मामले में रिहा कर दिया गया. उनका नाम पहले भी कई विवादों में आ चुका है. इस खबर में आज हम उनके सुर्खियों में आए सभी मामले बारे में बताने जा रहे हैं.

IPS अफसर लेकिन हमेशा विवादों से नाता, फिर क्यों चर्चा में? कहानी संजीव भट्ट की
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सागर द्विवेदी
Curated By: सागर द्विवेदी

Updated on: 10 Dec 2024 12:54 PM IST

नाम संजीव भट्ट, पेशा IPS अधिकारी खुद को बताते हैं कश्मीरी पंडित. हाल ही में सुर्खियों में आए हैं जब उन्हें 1997 के कस्टडी में टॉर्चर करने के मामले में रिहा कर दिया गया. उनका नाम पहले भी कई विवादों में आ चुका है. उनके विवादित बयान और नरेंद्र मोदी और अमित शाह की आलोचना करने की वजह से उनकी चर्चा अक्सर मीडिया में होती रही है.

1985 में आईआईटी बॉम्बे से एम टेक की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा पास की और 1988 में गुजरात कैडर के आईपीएस बने. इस खबर में आज हम संजीव भट्ट के बारे में विस्‍तार से बताने जा रहे हैं कि साथ उनपर कितने मामले दर्ज हैं और फिलहाल कहां हैं संजीव भट्ट?

गुजरात दंगों से जुड़ा विवाद (2002)

गुजरात दंगे और मोदी सरकार पर आरोप: संजीव भट्ट को 2002 के गुजरात दंगों के दौरान उनकी भूमिका और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयान देने के लिए जाना जाता है. भट्ट ने दावा किया था कि वह नरेंद्र मोदी के साथ एक मीटिंग में थे, जिसमें तत्‍कालीन मुख्यमंत्री ने पुलिस अधिकारियों को दंगाईयों के खिलाफ सख्त कदम उठाने से रोका था. इस आरोप ने उन्हें सरकार का एक प्रमुख आलोचक बना दिया था.

1997 कस्टोडियल टॉर्चर केस

कस्टडी में टॉर्चर मामला (1997): संजीव भट्ट को हाल ही में 1997 के कस्टडी टॉर्चर मामले में रिहा किया गया. इस मामले में उन्होंने आरोप लगाया था कि पुलिस कस्टडी में एक व्यक्ति को टॉर्चर किया गया था, जिसके बाद उसे न्याय दिलाने की कोशिश की गई थी. यह मामला उनके करियर के एक विवादित मोड़ के रूप में सामने आया.

संजीव भट्ट पर आरोप है कि उन्होंने जामजोधपुर में हिरासत में लिए गए एक व्यक्ति को टॉर्चर किया था, जिसकी बाद में मौत हो गई. लेकिन 8 दिसंबर 2024 को इस मामले में उन्हें राहत मिली है और कोर्ट ने कहा कि गुजरात के पोरबंदर की एक कोर्ट ने पूर्व IPS अधिकारी संजीव भट्ट को 1997 के कस्टडी में टॉर्चर करने के मामले में बरी कर दिया है. आगे कहा कि कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता साबित नहीं कर सके कि संजीव भट्‌ट ने शिकायतकर्ता को अपराध कबूल करने के लिए मजबूर किया था.

2018 में हुए गिरफ्तार

2011 में, संजीव भट्ट पर आरोप लगा कि उन्होंने सेवा में रहते हुए गोपनीय जानकारी को सार्वजनिक किया और उसे राजनीतिक विवाद में इस्तेमाल किया. 2018 में उन पर आरोप लगा कि उन्होंने झूठे सबूत पेश किए और 2002 दंगों से संबंधित मामले में गवाहों को प्रभावित किया. उन्हें इस मामले में गिरफ्तार किया गया और जेल भेजा गया.

क्या हैं भट्ट पर आरोप?

1996 में राजस्थान के एक वकील को झूठा फंसाने की साजिश रची थी. पुलिस ने पालनपुर के एक होटल के कमरे से ड्रग्स जब्त किया था, जहां वकील रह रहा था. इस मामले में भट्ट को लगातार 20 साल की सजा काटनी होगी. अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश जे एन ठक्कर ने भट्ट को बुधवार को नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं के तहत दोषी ठहराया.

1994 का हथियार बरामदगी मामला

1994 के हथियार बरामदगी मामले में 22 आरोपियों में से एक नारन जादव ने 6 जुलाई 1997 को मजिस्ट्रेट कोर्ट में भट्‌ट के खिलाफ शिकायत की थी. उसने कहा था कि उसे पुलिस कस्टडी में संजीव भट्ट और कांस्टेबल वजुभाई चौ ने टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (TADA) और आर्म्स एक्ट के मामले में कबूलनामा करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से टॉर्चर किया था.

उसने भट्ट पर आरोप लगाया कि पोरबंदर पुलिस की टीम 5 जुलाई 1997 को ट्रांसफर वारंट पर अहमदाबाद की साबरमती सेंट्रल जेल से जादव को पोरबंदर में भट्ट के घर ले गई थी. जादव को उसके गुप्तांगों और शरीर के अन्य हिस्सों पर बिजली के झटके दिए गए. उसके बेटे को भी बिजली के झटके दिए गए.

जादव ने कोर्ट में टॉर्चर की जानकारी दी, जिसके बाद जांच के आदेश दिए गए. अदालत ने 31 दिसंबर 1998 को मामला दर्ज कर भट्ट और चौ को समन जारी किया। 15 अप्रैल 2013 को अदालत ने भट्ट और चौ के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया. चौ की मौत के बाद मामला रफा-दफा कर दिया गया.

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