'सेम-सेक्स मैरिज' के फैसले में दखल गलत- सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह पर अपने फैसले की समीक्षा करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने पहले फैसला सुनाया था कि मौजूदा कानून विवाह के अधिकार या समलैंगिक जोड़ों के सिविल सोसायटी के घुसने के अधिकार को मान्यता नहीं देते हैं. इसने साफ किया कि इन मुद्दों को हल करने के लिए कानून बनाना संसद की जिम्मेदारी है.

Same-Sex Marriage: देश में समलैगिंक विवाह का मुद्दा अक्सर चर्चा में रहता है. बीते कुछ महीनों में सेम-सेक्स मैरिज को लेकर बहुत सी खबरें सामने आई हैं. इस बीच गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले पर सुनवाई की. कोर्ट ने समलैंगिक विवाह पर अपने फैसले की समीक्षा करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया.
जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने मामले की सुनवाई की. अक्टूबर 2023 के फैसले में कोई गलती नहीं थी. बता दें कि कोर्ट ने पहले फैसला सुनाया था कि मौजूदा कानून विवाह के अधिकार या समलैंगिक जोड़ों के सिविल सोसायटी के घुसने के अधिकार को मान्यता नहीं देते हैं. इसने साफ किया कि इन मुद्दों को हल करने के लिए कानून बनाना संसद की जिम्मेदारी है.
कोर्ट ने रद्द की याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले में विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार किया था. कोर्ट ने कहा था कि कानून द्वारा मान्यता प्राप्त विवाहों को छोड़कर विवाह का कोई अयोग्य अधिकार नहीं है. मान्यता देने के लिए कोर्ट ने कहा कि इस पर कानून बनान संसद की जिम्मेदारी है. गुरुवार (9 जनवरी) को अदालत ने कहा, "हम पाते हैं कि दोनों निर्णयों में व्यक्त विचार कानून के अनुरूप हैं और इसलिए इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है. इसलिए समीक्षा याचिकाएं खारिज की जाती हैं."
बता दें कि याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह निर्णय 'समीक्षा के योग्य है, क्योंकि यह न्यायालय के पहले के फैसलों में कही गई बातों की उपेक्षा करता है.' साथ ही 'यह भयावह घोषणा करता है कि भारत का संविधान विवाह करने या नागरिक संघ बनाने के किसी मौलिक अधिकार की गारंटी नहीं देता है.'
बच्चे के गोद लेने पर फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने का कानूनी अधिकार नहीं है. जस्टिस भट्ट, कोहली और नरसिम्हा ने बहुमत से इस मामले पर अपनी राय दी. इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के जज 3-2 से बंट गए थे, जिसमें बहुमत ने फैसला सुनाया था कि वह समलैंगिक विवाह को वैध नहीं बना सकता. पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा था कि 'विवाह करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है, एक साथ रहने का अधिकार या स्वतंत्रता है.'