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क्‍या कोई देश किसी देश का पानी रोक सकता है? जान लीजिए क्‍या हैं अंतरराष्‍ट्रीय कानून

किसी भी देश द्वारा दूसरे देश के पानी को रोकना तकनीकी रूप से संभव है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानून और संधियां इसे सीमित करती हैं. यदि कोई नदी दो या अधिक देशों से होकर गुजरती है, तो उसे साझा संपत्ति माना जाता है और उसके उपयोग के लिए 'उचित और न्यायसंगत उपयोग' और 'महत्वपूर्ण नुकसान न पहुंचाने' जैसे सिद्धांत लागू होते हैं.

क्‍या कोई देश किसी देश का पानी रोक सकता है? जान लीजिए क्‍या हैं अंतरराष्‍ट्रीय कानून
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Indus Water Treaty, International water disputes: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में नेपाली नागरिक समेत 26 लोगों की मौत हो गई. इस घटना से देश में काफी आक्रोश है. लोग केंद्र सरकार से पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाने की मांग कर रहे हैं. आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को बड़ा झटका देते हुए सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया. इससे अब पाकिस्तान एक-एक बूंद पानी के लिए तरस जाएगा.

भारत के इस कदम से पाकिस्तान बौखला गया है. उसने कहा कि भारत सिंधु नदी का पानी नहीं रोक सकता. भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) के अनुसार, भारत को सिंधु और उसकी सहायक नदियों का पानी पाकिस्तान को देना होता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कोई देश किसी देश का पानी रोक सकता है या नहीं. आइए, इसी सवाल का जवाब विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं...

क्या कोई देश किसी देश का पानी रोक सकता है?

नहीं, अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, कोई भी देश अपने पड़ोसी देश का पानी नहीं रोक सकता है. अंतरराष्ट्रीय कानून में यह प्रावधान है कि किसी भी देश को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी अन्य देश के जल संसाधनों को बाधित करे या उनका उपयोग करे, जिससे दूसरे देश को महत्वपूर्ण नुकसान हो.

सिंधु जल संधि को क्या रद्द कर सकता है भारत?

सिंधु जल संधि को कोई भी देश एकतरफा रद्द नहीं कर सकता. इसे रद्द करने के लिए दोनों पक्षों की सहमति जरूरी है. हालांकि, वियना संधि के लॉ ऑफ ट्रीटीज की धारा 62 के अनुसार, यदि संधि की मूल परिस्थितियों में कोई बदलाव हो जाए तो कोई भी देश इससे पीछे हट सकता है. भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद यह कदम उठाया है, जिसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि पाकिस्तान बार-बार भारत के खिलाफ आतंकियों का इस्तेमाल कर रहा है.

इंटरनेशनल कोर्ट के मुताबिक, अगर किसी भी संधि की मूल परिस्थितियों में कोई बदलाव हो तो किसी भी संधि को रद्द किया जा सकता है. ऐसे में अगर पाकिस्तान इस मामले को इंटरनेशनल कोर्ट में ले जाता है तो भी भारत का पलड़ा मजबूत है.

बता दें कि कोई देश तकनीकी रूप से किसी दूसरे देश का पानी रोकने की कोशिश कर सकता है, लेकिन इसके ऊपर अंतरराष्ट्रीय कानून और समझौते लागू होते हैं, जो इसे सीमित करते हैं और नियम तय करते हैं.

1. अंतरराष्ट्रीय नदियों का सिद्धांत:

- अगर कोई नदी दो या दो से अधिक देशों से होकर गुजरती है (जैसे गंगा, सिंधु, नील नदी), तो उसे International Watercourse यानी अंतरराष्ट्रीय जलधारा माना जाता है. ऐसे पानी के बंटवारे और उपयोग पर साझा अधिकार (shared rights) का सिद्धांत लागू होता है.

2. महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संधियां और कानून:

1- 1997 का UN Watercourses Convention (पूरा नाम: Convention on the Law of the Non-Navigational Uses of International Watercourses)

इसमें मुख्य बातें हैं:

  • नदियों का उचित और न्यायसंगत उपयोग होना चाहिए.
  • दूसरे देशों को महत्वपूर्ण नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता.
  • सूचना और परामर्श ज़रूरी है अगर कोई नया प्रोजेक्ट शुरू करना है (जैसे बांध बनाना)।

2- No Significant Harm सिद्धांत

मतलब, कोई भी देश ऐसा काम नहीं कर सकता जिससे नीचे के देशों को बड़े स्तर पर नुकसान हो (जैसे सूखा पड़ना, बाढ़ आना, कृषि प्रभावित होना)।

3- Equitable and Reasonable Use सिद्धांत

पानी का उपयोग सभी देशों द्वारा बराबरी और न्याय के साथ होना चाहिए, किसी एक देश का वर्चस्व नहीं हो सकता।

सिंधु जल संधि कब हुई थी?

  • भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी.
  • यह सिंधु नदी प्रणाली के पानी के बंटवारे को लेकर बेहद महत्वपूर्ण संधि है.
  • इसमें साफ नियम हैं कि भारत और पाकिस्तान कैसे नदियों का उपयोग करेंगे.
  • भारत का अधिकार है पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलज) पर, और पाकिस्तान का है पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर, कुछ सीमित उपयोग के अधिकार भारत को भी मिले हैं।

कानूनी तौर पर कोई देश पूरी तरह से किसी दूसरे देश का पानी रोक नहीं सकता. अगर रोका गया या नुकसान पहुंचाया गया, तो वह अंतरराष्ट्रीय विवाद का कारण बन सकता है और उसे अंतरराष्ट्रीय अदालतों या समझौते के जरिए सुलझाना पड़ता है. अंतरराष्ट्रीय कानून जल संसाधनों के उपयोग पर एक जटिल प्रणाली प्रदान करता है, जिसका उद्देश्य देशों को जल संसाधनों के उचित और न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करना है. किसी भी देश को दूसरे देश के जल संसाधनों को बाधित करने या उनका उपयोग करने का अधिकार नहीं है, जिससे दूसरे देश को नुकसान हो.

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