यह समझौता अब हुआ पुराना! भारत ने पाकिस्तान को भेजा नोटिस, जानिए क्या है 64 साल पहले का सिंधु जल संधि?
Indus Water Treaty: भारत ने पाकिस्तान के साथ जल बंटवारे को लेकर वहां की सरकार को नोटिस भेजा है. इसमें भारत सरकार ने संशोधन की मांग की है. इस नोटिस को लेकर पाकिस्तान ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया है.

Indus Water Treaty: भारत और पाकिस्तान के बीच नदी जल के बंटवारे को लेकर 64 साल पहले समझौता हुआ था, लेकिन भारत अपने बदलते हालात और बढ़ती जनसंख्या को लेकर इसमें बदलाव चाहता है. इसे लेकर भारत ने सिंधु जल संधि में बदलाव की मांग करते हुए पाकिस्तान को नोटिस भेज दिया है. हालांकि, कई दिन बीत जाने के बाद भी पाकिस्तान की ओर से इसे लेकर कोई जवाब नहीं आया है. पाकिस्तान पहले से ही कई मुद्दों पर अपनी नापाक मनसूबे दिखाता रहा है. इसके साथ ही भारत ने इस संधि को 'एकतरफा' करार दिया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की ओर से नोटिस 30 अगस्त 2024 को भेजा गया है. भारत सरकार ने संधि में संशोधन की मांग करते हुए पाकिस्तान को औपचारिक नोटिस भेजा है. नोटिस में उन परिस्थितियों में मूलभूत बदलावों की बात कही गई है जिनके लिए संधि में संशोधन की आवश्यकता है. भारत ने 1960 में हुई संधि में संशोधन की मांग करते हुए जनवरी 2023 में भी पाकिस्तान को नोटिस भेजा था. यह नोटिस संधि के क्रियान्वयन में सहयोग करने में पाकिस्तान की विफलता के कारण जारी किया गया था.
क्या है सिंधु जल संधि?
भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में सिंधु जल संधि हुआ था, जिस पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किया था. इसके मुताबिक, पूर्वी नदियों सतलुज, ब्यास और रावी का सारा पानी भारत को उपयोग के लिए आवंटित किया गया है, जो सालाना लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) है. वहीं दूसरी ओर पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकांश पानी पाकिस्तान को आवंटित किया गया है, , जो सालाना लगभग 135 मिलियन एकड़ फीट (MAF) है.
भारत में सुरक्षा विश्लेषकों का तर्क है कि देश के बड़े आकार, जनसंख्या और बढ़ती जल आवश्यकताओं को देखते हुए यह संधि अनुचित है. साथ ही कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि यह संधि पाकिस्तान को भारत पर रणनीतिक लाभ देती है. उनका दावा है कि भारत को पश्चिमी नदियों पर अधिक लाभ मिलना चाहिए.
रतले-किशनगंगा प्रोजेक्ट के संचालन पर विवाद
भारतीय अधिकारियों का मानना है कि पाकिस्तान भारतीय पक्ष की सभी परियोजनाओं के बारे में अनिवार्य रूप से बाधा डालता रहा है और सिंधु जल संधि के तहत भारत की उदारता का अनुचित लाभ उठाता रहा है. दोनों देश इस बात पर असहमत हैं कि क्या इन दोनों जल-विद्युत संयंत्रों की तकनीकी डिजाइन विशेषताएं IWT का उल्लंघन करती हैं? भारत ने इस प्रक्रिया में इसके महत्त्व पर ज़ोर देते हुए वर्ष 2016 में एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति का अनुरोध किया, जिसे पाकिस्तान ने नजरअंदाज करने की कोशिश की.