EXCLUSIVE: ब्रह्माण्ड में दो जेल के ही ताले खुले और पहरेदार सोते मिले, श्रीकृष्ण जन्मस्थली मथुरा, दूसरी ‘तिहाड़-जेल’ दिल्ली
तिहाड़ जेल ब्रेक की 39 साल पुरानी इनसाइड स्टोरी अब सामने आई है. 'स्टेट मिरर हिंदी' के पॉडकास्ट में अजय कुमार सिंह ने खुलासा किया कि चार्ल्स शोभराज इस सनसनीखेज फरारी कांड का मास्टरमाइंड नहीं था. असली षड्यंत्रकारी थे बृजमोहन शर्मा और राजू भटनागर. ये कहानी जेल के भीतर की है, जो अब तक किताबों और वेब सीरीज में झूठ के जाल में उलझी रही.

हमारी विशेष पेशकश में आप पढ़ रहे हैं “तिहाड़ जेल ब्रेक” की वो ‘इनसाइड स्टोरी’ जो अब तक फाइलों में दबी पड़ी थी. 39 साल बाद अब “स्टेट मिरर हिंदी” के एडिटर (क्राइम) तलाश कर लाए हैं उस दिन तिहाड़ जेल से फरार होने वाले, बिकिनी-लेडी किलर चार्ल्स शोभराज के साथ भागे, पांच कैदियों में से एक अजय कुमार सिंह को. अजय कुमार सिंह ने सुपर एक्सक्लूसिव ‘पॉडकास्ट’ में वह सच बयान किया है जिसे सुनकर, चार्ल्स शोभराज की तिहाड़ जेल से फरारी की पूरी ‘इनसाइड-स्टोरी’ ही बदल जाएगी. इस बातचीत में ही यह भी खुलासा हुआ है कि, तिहाड़ जेल से भागने का षडयंत्र बनाने में चार्ल्स शोभराज तो दूर-दूर तक था ही नहीं. षडयंत्र तो उस जमाने के एक खतरनाक बैंक डकैत-किलर ने बनाया था.
39 साल पहले घटी तिहाड़ जेल ब्रेक की सनसनीखेज घटना को याद करते हुए अजय कुमार सिंह बताते हैं, ‘उस दिन जेल से भागने वालों में शामिल रहे लक्ष्मी नारायण सिंह आज अपने काम-धंधे-परिवार में व्यस्त हैं. दूसरा मैं भी 71-72 साल की उम्र में पोते-पोतियों-बहू-बेटी परिवार के साथ बैठकर बुढ़ापे में अब राम-नाम जप रहा हूं. बृजमोहन शर्मा जोकि उस जेल-ब्रेक कांड का ‘मास्टरमाइंड’ और उस जमाने में बैंक डैकती और किलिंग का बड़ा कहिए या फिर, आप पत्रकारों और पुलिस की भाषा में ‘कुख्यात-बदनाम’ नाम था. बहुत साल बाद सुनने में आया था कि उसे यूपी पुलिस ने मथुरा में अगस्त 1991 में एनकाउंटर मैं मार दिया. तिहाड़ जेल से 16 मार्च 1986 को फरार होने के बाद से बृजमोहन शर्मा कभी भी भारतीय जांच और सुरक्षा एजेंसियों के हाथ जिंदा नहीं लगा.
अब किसका बजरंग और कौन बृजमोहन...!
तीसरा बजरंग था. जो तिहाड़ जेल से हमारे साथ मजबूरी में भागा था. उसे जेल में इसलिए नहीं छोड़ा उस दिन क्योंकि वह, जांच एजेंसियों को हमारी जेल ब्रेक की पूरी प्लानिंग बाद में बता देता. जेल बैरक में बजरंग हम सबको खाना बनाकर खिलाता था. वो भी विचाराधीन कैदी था. शाहदरा दिल्ली के रहने वाले बजरंग के बारे में कई साल पहले सुनने को मिला था कि, वो ऑटो चलाकर अपना गुजारा कर रहा था. बाद में उसकी आंखें भी खराब हो गईं. बजरंग, मुझे सिर्फ 1998 तक ही मिला जब वह पेशी पर कोर्ट में आता-जाता था. उसके बाद से उसका भी कोई अता-पता नहीं है. अब उस ‘काली-दुनिया’ से जब मैं कई दशक से दूर हूं, तो क्या लेना देना बजरंग और बृजमोहन से? बहुत बुरे दिन थे वे. भगवान किसी को ऐसे दिन न दिखाए.”
39 साल तक छिपी रही जेल ब्रेक की कहानी
दुनिया के उस सनसनीखेज जेल ब्रेक की 39 साल तक छिपी रही, इनसाइड स्टोरी बयान करते हुए अजय कुमार सिंह आगे बोले, “उस दिन हमारे साथ भागा पांचवा कैदी था बिकिनी/लेडी किलर (Bikini Killer Lady Killer) के नाम से बदनाम फ्रेंच मूल का, चार सौ बीस मास्टरमाइंड चार्ल्स शोभराज (Charles Sobhraj). दरअसल मैं तो भागने के षडयंत्र में था ही नहीं. न ही बजरंग का कोई प्लान जेल से उस दिन उन लोगों के साथ भागने का था. मुझे और बजरंग को तो इसलिए भागना पड़ा कि बाकी तीनों (बृजमोहन शर्मा, लक्ष्मी नारायण सिंह, चार्ल्स शोभराज) सब एक ही जेल में (तिहाड़ जेल नंबर-3) में बंद धे. ऐसे में अगर मैं और बजरंग, उन तीनों के साथ न भागते तो, जेल ब्रेक की खबर फैलते ही सबसे पहले जांच एजेंसियां और दिल्ली पुलिस हम दोनो को ही पकड़ कर षडयंत्र का सच उगलवातीं.”
जेल ब्रेक की थी, गोल्ड मेडल तो नहीं जीता
“तिहाड़ जेल ब्रेक” को लेकर आज 39 साल बाद अजय कुमार सिंह क्या सोचते है? उस कांड पर कोई अफसोस? पूछने पर वह बोले, “बुरा काम अंजाम देते वक्त कुछ सही-गलत नहीं दिखाई देता है. उम्र और ठोकरें खाने के बाद इंसान को लगता है कि, वो कहां किस गंदगी (अपराध की दुनिया) में फंसा हुआ था. अब उस कांड के बाद से मैंने अपराध की दुनिया से हाथ जोड़ लिये. और राम-नाम में मगन हो गया. जो अब तक बदस्तूर जारी है.” 39 साल पुरानी कहानी आपने आज तक किसी को सुनाई बताई क्यों नहीं? दुनिया तो अब तक यही सोच रही है कि 16 मार्च 1986 को जेल ब्रेक का मुख्य षडयंत्रकारी चार्ल्स शोभराज ही था! सवाल के जवाब में अजय कुमार सिंह बोले, ‘क्या, क्यों और किसको बताता या बताऊं? कोई एथलेटिक प्रतियोगिता में देश के लिए गोल्ड मेडल तो जीता नहीं था. जेल के भगोड़े थे हम सब.’ तब फिर ‘स्टेट मिरर हिंदी’ के इस पॉडकास्ट में इतना खुलकर बयान करने की कैसे सोच ली?
तिहाड़ जेल ब्रेक की सच्चाई मुझसे ज्यादा किसे पता?
अजय कुमार सिंह बोले, “दरअसल 39 साल तक मुझे नहीं लगा कि उस जेल ब्रेक कांड के गड़े मुर्दे उखाड़े जाएं. जिसके मन में जो आ रहा है वही सब कुछ ऊट-पटांग बोले जा रहा है. उस जेल फरारी कांड के बारे में. अब तो अति हो गई कि तिहाड़ जेल के एक पूर्व अफसर ने सुना है एक किताब लिख डाली है. उसमें उस जेल कांड का हीरो चार्ल्स शोभराज को बताया गया है. जबकि चार्ल्स तो बृजमोहन शर्मा, लक्ष्मी नारायण सिंह, राजू भटनागर, देव कुमार त्यागी के साथ उस दिन भागने के षडयंत्र में खुद ही जबरन घुस पड़ा था. यह सच मुझसे ज्यादा अंदर का कौन जानेगा? जब मैं खुद ही उन लोगों के साथ मजबूरी में ही सही, मगर जेल ब्रेक में भागा तो था.
चार्ल्स शोभराज जेल-ब्रेक का ‘हीरो’ नहीं ‘घुसपैठिया’
अब मैने सुना है कि तिहाड़ जेल के किसी पूर्व अफसर द्वारा पहले अंग्रेजी में और फिर हिंदी में लिखी गई किताब में, उस दिन के जेल ब्रेक के बारे में तमाम बे-सिर पैर बातें छाप डाली गई है. झूठ के इस पुलिंदा किताब पर ही, मोटी कमाई करने को वेब सीरिज भी बन चुकी है. मैं पूछता हूं कि जेल तोड़ने वालों को अंदर की सच्चाई ज्यादा पता होगी या फिर, जेल के किसी अधिकारी अथवा जेल के किसी उस पूर्व अधिकारी को जो, मनमर्जी उस जेल ब्रेक कांड को लेकर किताब में जो दिल में आया वो भरता गया. जिस किताब और वेब सिरीज का चरचा हो रहा है, उसमें चार्ल्स शोभराज को हीरो बताया गया है. जबकि वो तो उस दिन के जेल-ब्रेक में घुसपैठिया था. असली षडयंत्रकारी तो बृजमोहन शर्मा और राजू भटनागर थे.
झूठ को सहना भी पुण्य नहीं ‘पाप’ है
बस यह सब झूठ का पुलिंदा जब नहीं देखा-सुना गया तो मुझे लगा कि मैं आखिर खामोश क्यों बैठा हूं? इतने बड़ा अंदर का सब सच जानने के बाद भी. अगर झूठ बोलना पाप है तो फिर झूठ को बर्दाश्त करना भी तो पुण्य नहीं हो सकता है.” इस एपीसोड की बात खतम करते-करते अजय कुमार सिंह बताते हैं कि, दुनिया जबसे बनी है तब से ब्रह्माण्ड का इतिहास उठाकर देख लीजिए. धरती पर किसी जेल के टूटे हुए ताले, खुले हुए दरवाजे और सोते हुए पहरेदार सिर्फ दो ही बार मिले, देखे सुने गए हैं. एक बार जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में जिस रात हुआ. उस रात कंस की उस जेल के ताले रात के वक्त अपने आप खुल गए जहां देवकी-वासुदेव कैद थे. यानी श्रीकृष्ण भगवान के जन्म वाली रात. मथुरा की जेल के सब पहरेदार बेसुध इधर-उधर सोते पड़े मिले. या फिर दूसरी बार जब “हम पांच” 16 मार्च 1986 को अब से 39 साल पहले तिहाड़ जेल से भागे, तब उसके भी हमारी जेल के सब ताले खुले पड़े मिले. और तिहाड़ जेल नंबर-3 की सुरक्षा में तैनात सभी हथियारमंद और गैर-हथियारमंद सुरक्षाकर्मी बेसुध सोते हुए इधर-उधर जेल में पड़े हुए थे.