डिजिटल अरेस्ट के जरिए कैसे लोगों को बनाया जाता शिकार! ईडी ने किया बड़ा खुलासा
डिजिटल अरेस्ट को लेकर शनिवार को ईडी ने बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने बताया कि एक पीएमएलए)अदालत के समक्ष आठ आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी. इनमें 8 आरोपियों को गिरफ्तारी कर ली गई है. बताया गया कि फेक आईपीओ बनाकर लोगों को ठगने की कोशिश करते हैं.

नई दिल्लीः देशभर में साइबर फ्रॉड्स दिनों दिन अधिक होते जा रहे हैं. शनिवार को ईडी ने इन फ्रॉड से कैसे बचा जाए इसकी जानकारी दी. ईडी ने की उन्होंने पिछले महीने बेंगलुरु में एक विशेष धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) अदालत के समक्ष आठ आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी. ईडी का कहना है कि रिपोर्ट सामने आई जिसमें इन आरोपियों पर फर्जी IPO बनाकर और लोगों को फसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
ईडी ने बताया कि आखिर किस तरह साजिशकर्ताओं ने फर्जी आईपीओ तैयार करके और धोखाधड़ी वाले ऐप्स के माध्यम से शेयर बाजार में निवेश के माध्यम से आम लोगों को "लुभाया" था. यह घटनाक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लोगों से 'डिजिटल' गिरफ्तारी के खतरे से बचने के आग्रह के कुछ दिनों बाद आया है.
इन ऐप्स से लोगों को बनाया जाता है शिकार
एक बयान में ईडी ने कहा कि जांच में पाया गया कि साइबर घोटालों का एक बड़ा नेटवर्क भारत में है. जिसमें फर्जी शेयर बाजार निवेश और डिजिटल गिरफ्तारी योजनाएं शामिल हैं, जो मुख्य रूप से फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से की जाती हैं. बताया गया कि साजिशकर्ता पहले लोगों को शेयर बाजार में अच्छे रिटर्न का लालट देकर लुभाने का प्रयास करते हैं. फिर वेबसाइट्स और कई ऐप्स का इस्तेामल करते हुए ठगी करते हैं.
कैसे बनाते हैं ठगी का शिकार?
अब सवाल यह सामने आता है कि आखिर कैसे स्कैम किया जाता है? इसकी जानकारी देते हुए ईडी ने बताया कि स्कैमर्स धोखादड़ी को अंजाम देने के लिए कई सिम कार्ड का इस्तेमाल करते हैं. यह सिम कार्ड्स कई शेल कंपनियां जैसे बैंक खातों से जुड़े थे या व्हाट्सएप खाते बनाने के लिए उपयोग किए गए थे. ऐसे सिम कार्ड होते हैं. इनका प्रयोग स्कैमर्स करते हैं.
यह शेल कंपनियां ऐसी जगह पर होती हैं. जैसे को-वर्किंग स्पेस जहां असल में कोई बिजनेस स्थायी रूप से नहीं होता है. इन कंपनियों के व्यवसाय की शुरुआत के प्रमाण के रूप में कंपनी रजिस्ट्रार के समक्ष फाइलिंग में नकली बैंक विवरण का उपयोग किया है. वहीं इस जांच एजेंसी ने बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि स्कैमर्स नकली विज्ञापनों और भ्रामक सफलताओं की कहानी के माध्यम से विश्वास जीतने की कोशिश करते हैं. जिसपर विश्वास करते हुए निवेश करने का फैसला लिया जाता है.
ऐसे वसूलते हैं पैसे
वहीं इसके बाद साजिशकर्ता घोटाला करते हुए पीड़ितों से कई तरह की शुल्क वसूलते हैं. यदि उसे भरने से इंकार करें तो फर्जी सीबीआई की गिरफ्तारी जिसे डिजिटल अरेस्ट कहा जाता है. उसकी आड़ में हेरफेर करने का प्रयास करते है. बताया गया कि ऐसे मामलों में नकली गिरफ्तारी भी हो जाती है. वह पीड़ितों को अपनी सेविंग्स बचाने के लिए विश्वास दिलाते हैं.
इनसे सावधान रहने की दी गई सलाह
भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) ने रविवार को एक सार्वजनिक सलाह जारी कर लोगों से "डिजिटल गिरफ्तारियों से सावधान रहने" के लिए कहा, यह याद दिलाते हुए कि "वीडियो कॉल करने वाले लोग पुलिस, सीबीआई, सीमा शुल्क अधिकारी या न्यायाधीश नहीं हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले संगठन ने कहा, वे साइबर अपराधी हैं. एडवाइजरी में लोगों से कहा गया है कि वे इन 'ट्रिक्स' के झांसे में न आएं और राष्ट्रीय साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 पर कॉल करके या www.cybercrime.gov.in पोर्टल पर लॉग इन करके ऐसे अपराधों की 'तुरंत' रिपोर्ट करें.