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सिस्टम पर बड़ा तमाचा, जो खुद शिक्षा का पहरेदार, उसके गांव में फेल हो गए सभी छात्र

सोचिए क्या हो जब एक शिक्षा मंत्री के गांव के बच्चे ही पास न हो? ऐसा ही कुछ हुआ हिमाचल के पौटा गांव में हुआ है. जहां 10वीं के रिजल्ट ने सभी को चौंका दिया है. अब विपक्षी दल सरकार पर जमकर निशान साध रही है.

सिस्टम पर बड़ा तमाचा, जो खुद शिक्षा का पहरेदार, उसके गांव में फेल हो गए सभी छात्र
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( Image Source:  AI: Representative Image )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 28 Nov 2025 6:24 PM IST

हिमाचल प्रदेश के शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर जिनके कंधों पर राज्य की शिक्षा व्यवस्था की ज़िम्मेदारी है, आज खुद सवालों के घेरे में हैं. वजह बेहद चौंकाने वाली है. उनके पैतृक गांव पौटा में इस साल दसवीं कक्षा के सभी छात्र फेल हो गए हैं. शिक्षा व्यवस्था की यह विफलता महज एक आंकड़ा नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की हालत को उजागर करती है.

शिमला जिले की जुब्बल तहसील में स्थित यह गांव पौटा, सिर्फ किसी आम गांव का नाम नहीं है. यह राज्य के शिक्षा मंत्री का गांव है, जो खुद कोटखाई-जुब्बल विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीसरी बार विधायक हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि उनके ही गांव के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल का एक भी छात्र इस बार दसवीं की परीक्षा पास नहीं कर सका.

दो साल से नहीं है गणित का शिक्षक

पूरे घटनाक्रम की जड़ में एक बेहद गंभीर बात सामने आई है. स्कूल में पिछले दो सालों से गणित का कोई शिक्षक ही नहीं है. हां तैनाती तो है, लेकिन शिक्षक पढ़ाने के लिए छुट्टी पर हैं. इतने लंबे समय तक इस कमी को भरने की कोई कोशिश नहीं की गई. क्या यह सिर्फ लापरवाही है या फिर कुछ और?

जब गोद लिया स्कूल भी हो गया बदहाल

शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने एक स्कूल को गोद लिया था. उम्मीद थी कि ये स्कूल बाकी संस्थानों के लिए मिसाल बनेगा. लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उस स्कूल का भी परिणाम निराशाजनक रहा. वहां 20 में से 10 छात्र, और 19 में से 8 छात्राएं हाईस्कूल की परीक्षा में असफल हो गईं. यह नतीजे उन सपनों को तोड़ते हैं, जो एक मंत्री की छवि और जिम्मेदारी से जुड़े होते हैं.

विपक्ष का सरकार पर सीधा वार

इस घटनाक्रम ने विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका दे दिया है. विरोधी दलों का कहना है कि जब मंत्री के अपने गांव में ही शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त हो जाए, तो बाकी प्रदेश का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं. यह सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे राज्य की शिक्षा व्यवस्था की नाकामी का प्रतीक बन गया है.

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