औरंगजेब से नफ़रत या दारा शिकोह से मोहब्बत, आखिर चाहते क्या हैं आरएसएस के लोग?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने दारा शिकोह को भारतीय संस्कृति का प्रतीक बताते हुए औरंगजेब की विरासत पर सवाल उठाया है. संघ का मानना है कि दारा शिकोह समावेशी विचारधारा के समर्थक थे, जबकि औरंगजेब की नीतियां कठोर थीं. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह बहस इतिहास के पुनर्लेखन और चुनावी रणनीति से जुड़ी है, जिससे हिंदू-मुस्लिम संबंधों की नई परिभाषा गढ़ी जा रही है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने ऐतिहासिक दृष्टिकोण से औरंगजेब और दारा शिकोह के संदर्भ में नया विमर्श खड़ा किया है. संगठन का कहना है कि भारत में उन व्यक्तियों को आदर्श बनाया जाना चाहिए जिन्होंने भारतीय संस्कृति और मूल्यों का सम्मान किया, न कि उन लोगों को जो इसके खिलाफ गए. यह बहस केवल इतिहास तक सीमित नहीं है, बल्कि आधुनिक भारत की सांस्कृतिक पहचान और उसकी विचारधारा को भी प्रभावित करती है.
आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने इस मुद्दे पर कहा कि भारतीय समाज को उन शख्सियतों को प्रेरणा स्रोत मानना चाहिए जो समावेशी और सहिष्णु विचारधारा रखते थे. उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि दारा शिकोह को वह प्रतिष्ठा क्यों नहीं मिली जो उनके विचारों और कार्यों के कारण मिलनी चाहिए थी. दारा शिकोह ने उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया और हिंदू-मुस्लिम संस्कृति को जोड़ने का प्रयास किया था, जबकि औरंगजेब की नीतियां अधिक सैन्यवादी और कठोर मानी जाती हैं.
चुनाव को लेकर खेला जा रहा दांव
इस विवाद का राजनीतिक संदर्भ भी है, क्योंकि कुछ राज्यों में चुनाव नजदीक हैं. विश्लेषकों का मानना है कि आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ऐतिहासिक घटनाओं को वर्तमान राजनीति के संदर्भ में नए सिरे से गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं. यह 'अगर दारा शिकोह सम्राट होते' जैसे तर्कों के माध्यम से ऐतिहासिक अन्याय की धारणा को बदलने की रणनीति हो सकती है, जो कि पहले भी सरदार पटेल बनाम नेहरू के संदर्भ में देखने को मिली थी.
दारा शिकोह को नहीं मिली तरजीह
संघ के नेताओं का कहना है कि भारतीय संस्कृति और विचारधारा को आत्मसात करने वाले मुस्लिम नायकों को अधिक प्रमुखता दी जानी चाहिए. इसी तर्ज पर दारा शिकोह को भारतीय उपमहाद्वीप के समावेशी दर्शन के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है. संघ का मानना है कि इतिहास में दारा शिकोह को उतना महत्व नहीं दिया गया जितना दिया जाना चाहिए था, जबकि उनकी विचारधारा गंगा-जमुनी तहजीब के लिए अधिक अनुकूल थी.
क्या कहते हैं इतिहासकार?
इतिहासकारों के अनुसार, दारा शिकोह का झुकाव सूफी परंपरा और वेदांत दर्शन की ओर था और उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा को बढ़ावा देने का प्रयास किया. उन्होंने उपनिषदों और हिंदू दर्शन को समझने की कोशिश की, जिससे वे हिंदू-मुस्लिम एकता के बड़े समर्थक बने. इसके विपरीत, औरंगजेब की नीतियों को कट्टर और दमनकारी माना जाता है, जिन्होंने मुगल साम्राज्य में धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा दिया.
मुस्लिम समाज को मिले वैकल्पिक आदर्श
आरएसएस का यह प्रयास केवल ऐतिहासिक पुनरावलोकन तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे आधुनिक भारतीय मुस्लिम समाज को एक वैकल्पिक आदर्श प्रदान करने की कोशिश भी की जा रही है. संगठन चाहता है कि भारतीय मुस्लिम समाज, दारा शिकोह की समन्वयवादी सोच को अपनाए, जो हिंदू संस्कृति के करीब थी. संघ की यह रणनीति ‘अच्छे बनाम बुरे मुस्लिम’ की धारणा को भी मजबूत करती है, जहां समावेशी मुस्लिमों को स्वीकार्य और कट्टरपंथी विचारधारा वाले मुस्लिमों को अस्वीकार्य माना जाता है.
कौन थे दारा शिकोह?
दारा शिकोह, मुगल सम्राट शाहजहां के बड़े पुत्र और औरंगजे़ब के भाई, विद्वत्ता और सूफी दर्शन में रुचि रखने वाले एक प्रबुद्ध शख्सियत थे. वे अपने दादा अकबर की समावेशी नीतियों से प्रभावित थे और धार्मिक सौहार्द्र के प्रबल समर्थक माने जाते थे. दारा शिकोह का झुकाव रहस्यवाद और दर्शन की ओर था. उन्होंने हिंदू और इस्लामी परंपराओं के बीच सेतु बनाने का प्रयास किया. खासतौर पर, उन्होंने उपनिषदों का फारसी में अनुवाद करवाया ताकि इस्लामी विद्वानों को भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं से अवगत कराया जा सके. वे विभिन्न दार्शनिक परंपराओं के बीच संवाद को बढ़ावा देने में विश्वास रखते थे.
एकता और सहिष्णुता के थे पक्षधर
सूफी विचारधारा से प्रभावित दारा शिकोह ने वेदांत और इस्लामी सूफी सिद्धांतों को जोड़ने का प्रयास किया. वे सभी धर्मों के बीच एकता और सहिष्णुता के पक्षधर थे. उनकी इस सोच के कारण वे परंपरागत रूढ़िवादी वर्ग के निशाने पर आ गए, जिनमें उनके छोटे भाई औरंगजे़ब भी शामिल थे. दारा शिकोह की हत्या के बाद, औरंगजे़ब ने सत्ता संभाली और कठोर इस्लामी कानूनों को बढ़ावा दिया. यह विचारधारा मुगल शासन की लोकप्रियता को प्रभावित करने का एक प्रमुख कारण बनी. इस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में, दारा शिकोह को एक ऐसे नेता के रूप में देखा जाता है, जो भारत की बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक पहचान को सशक्त कर सकते थे.