बीजेपी के ‘डीलमेकर’ बन गए हैं गौतम अडानी? अजीत पवार के एक खुलासे ने खड़े किए कई सवाल
अजीत पवार ने खुलासा किया कि 2019 में महाराष्ट्र सरकार गिराने के उलटफेर में गौतम अडानी भी शामिल थे. क्या अडानी अब बीजेपी के अनऑफिशियल 'डीलमेकर' बन गए हैं? यह सवाल अब सभी के दिमाग में है.

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें अजीत पवार ने बड़ा खुलासा किया है. मामला पूरा बवालिया है...अजीत पवार ने कहा कि 2019 में जब महाराष्ट्र में सरकार गिराने का गेम चल रहा था, तब देश के सबसे बड़े कारोबारी गौतम अडानी भी उस बैठक में शामिल थे. हां, वही अडानी जिनके बारे में हम सिर्फ व्यापार और अरबों-खरबों के बारे में सुनते थे, अब उनका नाम सियासत के खेल में क्यों आ रहा है?
अब यह सवाल उठता है कि आखिर एक कारोबारी को सरकार गिराने की उलटफेर में क्यों शामिल होना पड़ा? क्या अडानी को बीजेपी ने अपनी तरफ से कोई खास जिम्मेदारी दी थी?
क्या अडानी अब बीजेपी के 'स्पेशल एजेंट' बन गए हैं?
आप सोचिए, जब एक बड़े कारोबारी का नाम राजनीति में उठने लगे, तो इसे क्या माना जाए? क्या अडानी अब बीजेपी के अनऑफिशियल ‘डीलमेकर’ बन गए हैं? अगर एक उद्योगपति को सरकार गिराने की राजनीति में शामिल होना पड़ रहा है, तो फिर यह पब्लिक के लिए बहुत बड़ा सवाल बन जाता है. आखिर क्यों एक बिजनेसमैन को सत्ता के खेल में इतना दखल देना पड़ा? क्या अब राजनीति में बड़े कारोबारियों का दबदबा बढ़ रहा है?
क्या अडानी अब बीजेपी के लिए गठबंधन बनाने का काम कर रहे हैं?
प्रियंका चतुर्वेदी ने भी इस मुद्दे पर ट्वीट कर बीजेपी को घेरा है. उनका सवाल है कि क्या अडानी अब बीजेपी के लिए गठबंधन बनाने का काम कर रहे हैं? क्या अब हर बड़े कारोबारी को यह हक मिल जाएगा कि वह सरकारों को गिराए या बनाए? क्या यह केवल एक और राजनैतिक ड्रामा है, जिसे बड़े कारोबारियों और नेताओं की तिकड़ी चला रही है?
अडानी का 'पॉलिटिकल स्टेटस' क्या है?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि अडानी राजनीति में इस तरह क्यों घुसे हैं? क्या वह अब बीजेपी के ‘पार्टनर’ बन गए हैं? क्या अब राजनीति और कारोबार के बीच एक ऐसा गहरा रिश्ता बन गया है, जहां कारोबारी भी सत्ता को नियंत्रित करने में अपना हाथ डालने लगे हैं? सोचिए, क्या हर बार जब राजनीति का पारा बढ़ेगा, तो अडानी जैसे लोग मीटिंग में घुसकर इसे ठंडा कर देंगे?
क्या राजनीति और कारोबार का यह गठजोड़ जनता के लिए अच्छा है?
अब यह सवाल भी उठता है कि क्या राजनीति और कारोबार का यह गठबंधन सच में जनता के हित में है, या यह सिर्फ सत्ता और कारोबारियों के बीच एक और ‘दुकान’ बन गया है? क्या अब हर सरकार को सिर्फ कारोबारियों की मदद से बनाना पड़ेगा? और अगर यह सच है, तो क्या हम लोकतंत्र को सिर्फ एक बिजनेस प्लान की तरह देख रहे हैं? यह सवाल अब लोगों के दिमाग में हर वक्त घूम रहा है.
चलिए, यह तो मान लीजिए कि इस वायरल वीडियो का कुछ असर तो जरूर पड़ेगा, पर क्या वह असर बीजेपी और अडानी के लिए भारी पड़ेगा या यह मामला कुछ दिन बाद ठंडा हो जाएगा? राजनीति में कुछ भी स्थिर नहीं रहता, और यह भी शायद जल्द ही पब्लिक की नजरों से ओझल हो जाएगा। लेकिन जैसे-जैसे कारोबारियों की राजनीति में घुसपैठ बढ़ती जाएगी, हम इस तरह के और मसालेदार ड्रामे देखेंगे.