जेल में कन्नड़ सीखने से लेकर दिल्ली की सीएम तक, पढ़ें सुषमा स्वराज के अनसुने किस्से
सुषमा स्वराज अपनी हाजिरजवाबी और वाक्पटुता के लिए प्रसिद्ध थीं. संसद में उन्होंने कई बार विपक्ष को कड़ी और तीखी प्रतिक्रियाओं से जवाब दिया. पाकिस्तान पर टिप्पणी हो या अंतरराष्ट्रीय मुद्दे, उनके जवाब हमेशा प्रभावशाली रहे. उनकी यह शख्सियत न केवल देश के भीतर, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी सम्मानित थी. सुषमा स्वराज के भाषण हमेशा चर्चा का विषय बनते थे.

सुषमा स्वराज भारतीय राजनीति की वो महान नेता जिनकी नीतियां, भाषण और कार्यशैली आज भी लाखों लोगों के दिलों में जिंदा है. उनका जन्म सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अम्बाला जिले में हुआ था. और उनकी जिंदादिली और दृढ़ इच्छाशक्ति ने उन्हें ना केवल एक उत्कृष्ट नेता बनाया, बल्कि एक ऐसा व्यक्तित्व बना दिया जिसकी यादें हमारे दिलों में हमेशा ताज़ा रहेंगी. वह 52 दिनों तक दिल्ली की सीएम भी रहीं.
वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) की प्रमुख नेता और पूर्व विदेश मंत्री थीं. सुषमा स्वराज का राजनीतिक जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण था. वे 1970 के दशक में ही राजनीति में सक्रिय हो गई थीं और भारतीय राजनीति में अपने उत्कृष्ट योगदान से पहचान बनाई. उनकी कड़ी मेहनत, नीतियों और आम जनता के प्रति उनकी समझ के कारण उन्हें बहुत सम्मान मिला. यहां कुछ प्रसिद्ध किस्से हैं जो उनके जीवन और कार्यों से जुड़े हैं.
माइक्रोफोन पर संघर्ष की कहानी
सुषमा स्वराज ने भारतीय राजनीति में अपना रास्ता बहुत कठिनाइयों से बनाया था. वह भारतीय जनता पार्टी (BJP) की पहली महिला प्रवक्ता बनीं. उनका भाषण और आत्मविश्वास इतना प्रभावी था कि उन्होंने मंच पर आते ही सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया. एक बार जब वह दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनाव में प्रचार कर रही थीं, तो उन्हें मंच से उतरने के लिए कहा गया क्योंकि वहां पहले से किसी और नेता का भाषण हो रहा था. लेकिन सुषमा स्वराज ने माइक्रोफोन पकड़ा और बिना किसी डर के अपनी बात शुरू कर दी. उनका आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें जनता के बीच एक खास पहचान दिलाई.
विदेश मंत्री के तौर पर आत्मीयता और सादगी
जब वह विदेश मंत्री बनीं, तो सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्रालय की कार्यशैली में आम जनता के साथ अपने संबंधों को नया रूप दिया. वह हमेशा सोशल मीडिया पर लोगों से सीधे संवाद करती थीं. उन्होंने सैंकड़ों लोगों की मदद की, जिनकी विदेशों में कोई समस्या थी. यहां तक कि उन्होंने ट्विटर पर अपनी टीम की मदद से लोगों के सवालों का तुरंत समाधान किया. एक बार, जब एक व्यक्ति अपनी पत्नी को इलाज के लिए विदेश ले जाने के लिए मदद मांगने आया, तो सुषमा स्वराज ने उनकी मदद की और भारत सरकार द्वारा विमान का बंदोबस्त कराया.
आपातकाल के दौरान संघर्ष
सुषमा स्वराज का राजनीतिक जीवन शुरू होने से पहले ही भारत में आपातकाल लागू था. उस दौरान वह एक मुखर आलोचक के रूप में उभरीं और इंदिरा गांधी के शासन के खिलाफ आंदोलन में शामिल हो गईं. वह कई बार गिरफ्तार हुईं, लेकिन उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया. इस दौरान उनका साहस और निष्ठा उनकी राजनीति के लिए एक मजबूत नींव साबित हुई.
जेल में सीखी कन्नड़
सुषमा स्वराज का एक प्रेरणादायक किस्सा है जो उनके दृढ़ संकल्प और बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है. 1975 में जब आपातकाल लागू हुआ, सुषमा स्वराज को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया. जेल में रहते हुए, उन्होंने समय का सदुपयोग करते हुए कन्नड़ भाषा सीखने का निर्णय लिया. कन्नड़ किताबें पढ़कर और साहित्य में रुचि लेकर, उन्होंने इस भाषा को जल्दी सीख लिया. सुषमा स्वराज ने यह साबित किया कि वे हर चुनौती का सामना कर सकती हैं और हमेशा अपने ज्ञान और कौशल को बढ़ाने की कोशिश करती थीं.
संसद में हाजिर जवाबी
सुषमा स्वराज अपनी हाजिरजवाबी और वाक्पटुता के लिए प्रसिद्ध थीं. एक बार, पाकिस्तान के बारे में उनकी टिप्पणी ने संसद में हंसी का माहौल बना दिया, जब विपक्ष ने पाकिस्तान की आलोचना की थी. सुषमा स्वराज ने तीखा जवाब देते हुए कहा, "अगर पाकिस्तान को दुनिया के सबसे अच्छे देश के रूप में प्रस्तुत किया जाए, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि वे अपनी पहचान हमेशा आतंकवाद से ही बनाते हैं." उनका यह उत्तर विपक्ष को सही स्थान पर खड़ा करने के लिए काफी था.