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EXCLUSIVE: जस्टिस वर्मा केस बानगी है, जज-वकीलों के ‘ब्रदरहुड’ने बेड़ा गर्क किया, जिला कोर्ट जाने से डरते हैं लोग: जस्टिस (रि.) ढींगरा

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस शिव नारायण ढींगरा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ उठे महाभियोग की चर्चा पर कहा कि संविधान में जजों को हटाने के लिए 'रिमूवल' शब्द है, न कि 'महाभियोग', लेकिन दोनों की प्रक्रिया एक जैसी है. उन्होंने कहा कि अदालतों में फैले भ्रष्टाचार की जड़ वकील-जजों के भाईचारे में है, जिससे आम आदमी अदालत जाने से डरता है.

EXCLUSIVE: जस्टिस वर्मा केस बानगी है, जज-वकीलों के ‘ब्रदरहुड’ने बेड़ा गर्क किया, जिला कोर्ट जाने से डरते हैं लोग: जस्टिस (रि.) ढींगरा
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संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 29 July 2025 11:04 PM IST

“देश के जजों-वकीलों के ‘ब्रदरहुड’ (भाईचारा) ने देश की न्याय व्यवस्था का बेड़ा गर्क कर डाला है. उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय से न्याय पाने की बात तो दूर की कौड़ी रही. आज के हालातों में लोग जिला अदालतों तक में जाने से डरते हैं. अदालतों में व्याप्त भ्रष्टाचार का असली स्रोत जज-वकीलों का यह भाईचारा ही तो है. जहां तक बात इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विवादित जस्टिस यशवंत वर्मा के ऊपर महाभियोग चलाने का है, तो भारत के संविधान में तो किसी जज को हटाने के लिए महाभियोग शब्द का ही प्रयोग नहीं किया गया है. ‘महाभियोग’ की प्रक्रिया तो हमारे संविधान के अनुसार राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए उल्लिखित है. संविधान में तो जज को हटाने के लिए ‘रिमूवल’ शब्द का इस्तेमाल की बात लिखी है. हां, यह जरूर है कि महाभियोग और रिमूवल दोनो की ही प्रक्रिया एक समान ही है. यह दोनो में समानता है.

चूंकि भारत के राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को हटाने के लिए संविधान में लिखे ‘महाभियोग’ की प्रक्रिया की ही तरह, किसी जज के रिमूवल की भी प्रक्रिया हू-ब-हू मिलती-जुलती है. शायद इसीलिए आम बोलचाल की भाषा में जज को हटाने की प्रक्रिया को भी महाभियोग ही बोलने लगे हैं. दूसरे हर आदमी ने तो गहराई से संविधान नहीं पढ़ा होता है. जो वह रिमूवल और महाभियोग के बीचे के फर्क का इतनी गहराई से बखान कर सके जितना की मैं बता पा रहा हूं.” यह तमाम बेबाक बातें बयान की हैं दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस शिव नारायण ढींगरा (Justice Shiv Narayan Dhingra Delhi High Court) ने. जस्टिस ढींगरा 24 जुलाई 2025 (गुरुवार) को स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से विशेष-बात कर रहे थे. जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवासीय परिसर से दिल्ली दमकल सेवा कर्मियों द्वारा बड़ी तादाद में जले हुए और सही-सलामत नोट बरामदगी कांड में, जस्टिस यशवंत वर्मा के पास बचाव के क्या रास्ते रहे? क्या जस्टिस वर्मा किसी भी तरह से ‘महाभियोग’ या कहिए ‘रिमूवल’ की कार्यवाही से खुद का बचाव कर सकते थे?

जस्टिस वर्मा को खुद त्यागपत्र दे देना था

ताकि इतना बवाल ही न मचता. जितना शोर-शराब आज एक अकेले जस्टिस यशवंत वर्मा को लेकर न केवल भारत में अपितु, दुनिया भर में मचा हुआ है. ऐसा बवाल जिसने देश की न्यायिक प्रणाली या कहिए न्याय-व्यवस्था को ही सवालिया निशानों से चौतरफा घिरवा डाला है? सवाल के जवाब में जस्टिस एस एन ढींगरा (Justice S N Dhingra Delhi High Court) बोले, “देखिए यह बड़े अफसोस की बात है. हमारे देश के अंदर जो नैतिक मूल्य हैं वह अब रहे नही है. जब इतनी बड़ी मात्रा में कैश मिला था तो नैतिक मूल्यों के आधार पर तभी उन्हें (खुद के लिए ही बबाल की जड़ बने बैठे जस्टिस यशवंत वर्मा) न्यायाधीश के पद से त्याग-पत्र दे देना चाहिए था.”

जस्टिस वर्मा ने जांच कमेटी की भी नहीं सुनी

स्टेट मिरर हिंदी के साथ खास बातचीत के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस एन ढींगरा कहते हैं, “जस्टिस वर्मा ने नैतिकता के आधार पर न्यायाधीश के पद से इस्तीफा देने की बात तो बहुत दूर की रही. इसके एकदम उल्टा उन्होंने तो अपने डिफेंस (बचाव) में यह कहा कि उनके सरकारी आवास से बरामद कैश तो उनका है ही नहीं. तब फिर उच्चतम न्यायालय ने एक कमेटी बनाई. कमेटी ने कहा कि जला-अधजला या बिना जला जो भी नकद धन दिल्ली स्थित सरकारी आवास से बरामद हुआ वह सब, जस्टिस यशवंत वर्मा का ही था. इतना ही नहीं उच्च स्तरीय न्यायिक जांच कमेटी ने यहां तक कहा कि आपके पास इस बात का विकल्प खुला हुआ है कि आप पद से त्याग-पत्र दे दीजिए. अपनी पर अड़े जस्टिस यशवंत वर्मा को यह भी मंजूर नहीं हुआ.”

आजिज सर्वोच्च न्यायालय ने हाथ खड़े किए

स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में जस्टिस शिव नारायण ढींगरा कहते हैं, “इस सबके बाद भी मगर जस्टिस यशवंत वर्मा ने जांच कमेटी की कोई बात नहीं मानी. जब उन्होंने त्यागपत्र नहीं दिया तो उन्हें तत्काल दिल्ली उच्च न्यायालय से हटाकर उनके मूल यानी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भेज दिया गया. जहां से वह दिल्ली उच्च न्यायालय लाए गए थे या कहिए आए थे. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने आगे की कार्यवाही में लिख दिया कि संबंधित संवैधानिक संस्थाएं (लोकसभा राज्यसभा) जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ उन्हें पद से हटाने के लिए (रिमूवल) की कार्यवाही शुरू कर सकती हैं.” जस्टिस यशवंत वर्मा जिस तरह से खुलेआम इस वक्त चौतरफा घिरे-फंसे हैं. ऐसे में उनकी मनोदशा क्या होगी?

बिना किसी काम यानी ‘नाम-भर’ के न्यायाधीश

सवाल के जवाब में दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश शिव नारायण ढींगरा ने कहा, “देखिए ऐसा है कि पहले तो वह दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नहीं हैं. अब जब उन्हें दिल्ली से हटाकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वापिस भेजा जा चुका है तो वह अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ही न्यायाधीश कहलाएंगे. क्योंकि उनके घर से इतनी बड़ी तादाद में नकदी की बरामदगी हुई है. इसलिए अब यह भी तय है कि जस्टिस यशवंत वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भेज दिए जानेके बाद भी उन्हें वहां कोई न्यायिक कामकाज नहीं सौंपा जाएगा. और प्रशासनिक काम वैसे भी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास ही रहता है. हां, यह जरूर है कि चूंकि वह न्यायाधीश के पद पर बने हुए हैं तो उन्हें भी सरकारी कार-नौकर-चाकर सब उपलब्ध कराए जाएंगे. नियम भी यही है.

जज का व्यवहार सामान्य अपराधी की तरह

मैं उनकी मानसिक स्थिति कैसे बता सकता हूं? क्योंकि कैश मेरे घर से तो बरामद हुआ नहीं है. नकदी तो जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थिति उनके सरकारी बंगले से, दिल्ली दमकल सेवा के जवानों ने बरामद की है. यह नकदी जस्टिस वर्मा के घर में कैसे पहुंची, किसने पहुंचाई, क्यों पहुंचाई, नकदी किस एवज में पहुंचाई गई? ऐसे हर सवाल का जवाब तो वही दे सकते हैं, जिनके घर से इतनी बड़ी तादाद में रकम बरादम हुई है. इस शर्मनाक कांड के बारे में देख-पढ़-सुनकर मैं तो बस इतना बता सकता हूं कि इस कांड से देख लीजिए, हमारी न्यायिक प्रणाली का किस कदर पतन हो चुका है कि, एक न्यायाधीश सामान्य अपराधी की तरह व्यवहार कर रहा है. जैसे सामान्य अपराधी पकड़े जाने पर कहता है कि नहीं-नहीं यह बरामद माल मेरा नहीं है. मुझे तो झूठा फंसा दिया है. तो यह एक गलत परंपरा शुरू हुई है कि किसी उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपने ऊपर लग रहे हर आरोप को गलत है गलत है कहकर अपने ओहदे (न्यायाधीश की कुर्सी पर) पर टिका हुआ है.”

India Newsस्टेट मिरर स्पेशल
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