Inside Story: ‘द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई’ पर बवाल, पूर्व रॉ चीफ का ‘पब्लिसिटी’ स्टंट तो नहीं...!
कश्मीर घाटी में चरम पर पहुंच चुके आतंकवाद से जब भारत जूझ रहा था. तब भारत सरकार ने इन्हीं पूर्व और अक्सर चर्चाओं में रहने के लिए पहचाने जाने वाले और, अब रिटायर्ड (तब रॉ में थे) अमरजीत सिंह दुलत को कश्मीर घाटी में तैनात किया था.

भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ के पूर्व मुखिया और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी अमरजीत सिंह दुलत दो दिन से चर्चा में हैं. उनके द्वारा अंग्रेजी में लिखी जा चुकी (अभी बाजार में आना बाकी है) किताब ‘द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई’ दो दिन से देश और दुनिया में कोहराम मचाए हुए है. खासकर जम्मू-कश्मीर घाटी में. क्योंकि इन पूर्व ब्यूरोक्रेट की किताब में एक कुछ बातें घाटी से अनुच्छेद-370 (Article 370) हटाने को लेकर भी लिखी गई हैं. इसी चैप्टर में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला (Jammu Kashmir Chief Minister) का भी जिक्र है. ऐसा जिक्र जिसको लेकर छिड़े विवाद ने घर बैठे ही रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी (इंटेलीजेंस ब्यूरो के पूर्व अफसर) ए एस दुलत और, उनकी किताब को छपकर बाजार में आने से पहले ही रात-ओ-रात ‘चर्चा’ में ला दिया है.
कश्मीर घाटी (Terrorism in Jammu and Kashmir) में चरम पर पहुंच चुके आतंकवाद (Terrorism) से जब भारत जूझ रहा था. तब भारत सरकार ने इन्हीं पूर्व और अक्सर चर्चाओं में रहने के लिए पहचाने जाने वाले और, अब रिटायर्ड (तब रॉ में थे) अमरजीत सिंह दुलत को कश्मीर घाटी में तैनात किया था. ताकि उन दिनों कश्मीर घाटी (Kashmir Valley) का नासूर बन चुके आतंकवाद (Terrorism in Kashmir) फैलाने वालों की ‘कमजोर-नस’ पकड़ी जा सके. भारत के प्रधानमंत्री दफ्तर (PMO) ने इन्हीं अमरजीत सिंह दुलत को, खुफिया विभाग से रिटायर होने के बाद भी, साल 2001 से 2004 तक अपने यहां (PMO) कश्मीर मामलों का सलाहकार बनाकर रखा था.
दांत काटे की दोस्ती में दरार का सच
इस बात की पुष्टि खुद प्रेस में छपने पहुंची किताब के बाजार में आने से पहले ही, इसे लेकर बवाल में फंसे दुलत करते हैं कि, जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला (Ex Chief Minister Farooq Abdullah) से उनकी दांत काटे की दोस्ती थी. फारुख अब्दुल्ला से यह दोस्ती अब, जल्दी ही छपकर बाजार में आने वाली उनकी किताब ‘द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई’ (The Chief Minister And The Spy) के, एक चैप्टर के चलते खटाई में पड़ चुकी है! हालांकि दुलत और उनकी किताब को लेकर मचे बवाल के बीच ‘स्टेट-मिरर’ ने इन्हीं पूर्व ब्यूरोक्रेट ए एस दुलत के कुछ पूर्व समकक्ष-अधीनस्थ खुफिया अधिकारियों (Ex Intelligence Officer) और, रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स (आईपीएस) से बात की. बातचीत के बाद तो ‘इनसाइड स्टोरी’ कुछ और ही निकल कर सामने आई.
इनमें से अधिकांश का कहना था कि खुफिया विभाग से रिटायर होने के बाद से ही, ए एस दुलत मीडिया में छा जाने लिए हमेशा कथित रूप से ही सही मगर, लालायित रहने लगे थे. यह बात किसी से नहीं छिपी है.
दुलत की बयानबाजी पर ‘शक’…!
वे (Ex RAW Chief Amarjit Singh Dulat) कभी-कभार तो मीडिया की सुर्खी बनने के लिए ऐसे बयान तक दे डालते हैं जिनका, सच से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं होता है. अब उनकी जिस आने वाली किताब को लेकर बवाल मचा है उस पर, रॉ (RAW) के ही एक पूर्व विशेष निदेशक स्तर के रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट 'स्टेट मिरर हिंदी' से बोले, “दुलत साहब पब्लिसिटी के लिए किसी भी हद तक जाकर कोई भी काम कर सकते हैं.''
मुझे तो आशंका है कि...
पूर्व ब्यूरोक्रेट ने आगे बताया, “जम्मू कश्मीर की पोस्टिंग के दौरान उनकी दोस्ती वहां किन-किन नेताओं से रही? यह बात किसी से नहीं छिपी है. मुझे भी इससे कोई लेना देना नहीं कि मेरे सीनियर दुलत साहब की, किससे दोस्ती और किससे दुश्मनी है या थी? हां, इतना जरूर मुझे आशंका है कि जिस तरह से उनकी नई किताब बाजार में छपकर आने से पहले ही उस पर बवाल मचा है या, कहिए कि बवाल मचवा डाला गया है! यह सब एक पब्लिसिटी स्टंट कहीं न हो...जोकि काफी हद तक संभव लगता है. यह मेरी निजी राय या कहिए मेरे मन में आशंका है. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ऐसा होगा ही.”
वे ‘पब्लिसिटी’ को लालायित रहते हैं
‘रॉ’ में रहते हुए कई देशों में डिप्टी सेक्रेटरी रह चुके एक अन्य पूर्व खुफिया अधिकारी जो, दुलत को काफी करीब से जानते हैं, खुद की पहचान न खोलने की शर्त पर कहते हैं, “वे (पूर्व रॉ चीफ ए एस दुलत) मीडिया पब्लिसिटी के लिए हमेशा बहुत लालायित रहते हैं. मैं ही क्या पूरे भारत ने अक्सर पहले भी देखा है कि उनका, कोई न कोई बयान किसी न किसी मुद्दे को लेकर चर्चा में रहता ही है. तो इसकी क्या गारंटी कि अभी तक उनकी जो किताब छपकर बाजार में आई ही नही है, उसे लेकर बवाल मच जाने या मचवाने के पीछे भी कहीं सर (AS Dulat Ex RAW Chief) और उनके ही करीबी सलाहकारों का ही दिमाग नहीं होगा! क्योंकि किताब लिखने के नफा-नुकसान का अंदाजा तो, किताब के चर्चा में आने और न आने से ही लगता है न. छपने से पहले ही कोई किताब इस कदर चर्चा में ले आने के पीछे और, भला क्या मंशा, कारण या वजह हो सकती है? हां, अगर यही किताब बाजार में छपकर आने के बाद इस पर चर्चा होती, तो मैं शायद इस बवाल को लेकर अपनी कोई निजी राय या मंशा-आशंका व्यक्त नहीं करता. अब जो तमाशा किताब को लेकर देश में हो रहा है, वो किसी के गले आसानी से कैसे उतर सकता है? और फिर जिनके गले उतर भी रहा हो तो उतरे, मेरी तो समझ से यह सब बहुत दूर है.”
बाजार में माल बेचने को ‘चर्चा’ जरूरी
पुलिस महानिदेशक स्तर के एक पूर्व पुलिस अधिकारी (रिटायर्ड आईपीएस) कहते हैं, ‘मैं दुलत साहब की छपकर आने वाली किताब को लेकर कोई बयान नहीं दे रहा हूं. हां, समाज में यह आम-धारणा जरूर है कि अगर आपको अपना कोई माल बाजार में मुनाफे के लिए या मुनाफे के साथ बेचना है तो, पहले उसकी पब्लिसिटी भी तो जरूरी है. आज पब्लिकेशन के बाजार की गला-काट प्रतियोगिता के दौर में. वरना बिना विज्ञापन के कौन उपभोक्ता आपका माल खरीदने को हाथ आगे बढ़ाएगा?’
किताब छपने से पहले बवाल मचवाने का मतलब
यह सब तो आप सीधे-सीधे दुलत साहब की अभी बाजार में छपकर भी नहीं आई किताब को लेकर मचे बवाल के इर्द-गिर्द ही कह रहे हैं. जैसे कि मानो दुलत साहब ने अपनी किताब को छपकर बाजार में आने से पहले ही, उस पर खुद ही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से बवाल मचवा डाला हो! ताकि पाठक जैसे ही किताब बाजार में आए, उसे हाथों-हाथ खरीद डालें! “स्टेट मिरर” के इस सवाल के जवाब में पूर्व ब्यूरोक्रेट बोले, “यह आप समझ रहे हैं. कह रहे हैं तो मुझसे बेहतर ही कह और समझ रहे होंगे. आप अनुभवी जर्नलिस्ट हैं.” इस बवाल के पीछे दुलत साहब की असल मंशा जानने के लिए ‘स्टेट मिरर हिंदी’ ने कई बार ए एस दुलत से बात करने की कोशिश की. जिसमें उनकी पत्नी द्वारा बताया गया कि, “दुलत साहब बहुत बिजी हैं. वे फ्री होते ही बात करेंगे.”