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संवैधानिक जनादेश से बंधे होते हैं सुप्रीम कोर्ट के जज: भूटान में बोले CJI चंद्रचूड़

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने ये बातें भूटान के थिम्पू में जिग्मे सिंग्ये वांगचुक व्याख्यान देते हुए कही। बता दें, कोर्ट पर कई मौकों पर 'तानाशाही' का आरोप लगाया जा चुका है। सीजेआई ने कहा कि सांसद, न्यायाधीश और सरकारें केवल लोगों के प्रतिनिधि और ट्रस्टी के रूप में संवैधानिक अधिकार रखती है।

संवैधानिक जनादेश से बंधे होते हैं सुप्रीम कोर्ट के जज: भूटान में बोले CJI चंद्रचूड़
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( Image Source:  ANI )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 12 Oct 2024 4:15 PM IST

जजों पर अक्सर कटाक्ष किया जाता है कि वो गैरजिम्मेदार हैं या उनकी तानाशाही चलती रहती है। इसे लेकर अब सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने भी बयान जारी किया है। उन्होंने कहा कि जज न तो निर्वाचित होते हैं और न ही राजनीतिक कार्यपालिका की तरह सीधे लोगों के प्रति जवाबदेह होते हैं, लेकिन वे संसाधनों के समान वितरण और व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा तय करने के लिए संवैधानिक जनादेश से बंधे होते हैं।

दरअसल सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने ये बातें भूटान के थिम्पू में जिग्मे सिंग्ये वांगचुक व्याख्यान देते हुए कही। बता दें, कोर्ट पर कई मौकों पर 'तानाशाही' का आरोप लगाया जा चुका है। वह यूपीए सरकार की 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लॉकों के अनियमित आवंटन को रद्द किया जाना हो या फिर भाजपा की एनडीए सरकार के फैसलों को खारिज करना। इन सभी मामलों में कोर्ट पर तानाशाही का आरोप लगाया जा चुका है।

सीजेआई ने यह भी कहा कि सांसद, न्यायाधीश और सरकारें केवल लोगों के प्रतिनिधि और ट्रस्टी के रूप में संवैधानिक अधिकार रखती है। न्यायपालिका की विश्वसनीयता के लिए जनता का विश्वास महत्वपूर्ण है। जजों का हर फैसला या काम जनता की राय से अलग रहती है, ऐसा होना भी चाहिए। फिर भी हमारा अलगाव, जो हमारी स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है।

सीजेआई ने कहा कि हम जनप्रतिनिधियों के बीच प्राकृतिक संसाधन और अन्य संसाधन वितरित करने का अधिकार रखते हैं। लेकिन, न्यायपालिका की जिम्मेदारी है यह है कि वितरण न्यायसंगत हो और कुछ खास लोगों की मर्जी के अनुसार न हो। हम चुने हुए प्रतिनिधि भले ही नहीं हैं। जनता का भरोसा हम पर सरकार के अन्य अंगों से अलग तरीके से लागू होते हैं।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति या उनके निर्णयों को प्रभावित करने में जनता की कोई भूमिका नहीं होती है। लोकलुभावन डिसीजन न्यायिक स्वतंत्रता के लिए असहज है, फिर भी अदालतों को जनता के भरोसे और वैलिडिटी की जरुरत होती है।

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