सिर्फ मराठों के नहीं, पूरे भारत को स्वराज देने वाले शेर Chhatrapati Shivaji Maharaj, फिर Chhaava ने बढ़ाई विरासत
छत्रपति शिवाजी महाराज केवल एक महान योद्धा ही नहीं, बल्कि दूरदर्शी प्रशासक और रणनीतिकार भी थे. उनकी युद्धनीति, प्रशासनिक सुधार और नौसेना निर्माण ने भारत में स्वराज्य की नींव रखी.

भारत के इतिहास में कई वीर योद्धा हुए हैं, लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम सबसे ऊपर आता है. एक दूरदर्शी नेता, बहादुर योद्धा और न्यायप्रिय शासक के रूप में, उन्होंने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की. उस समय भारत पर शक्तिशाली मुगल और दक्कन सल्तनतों का शासन था, लेकिन शिवाजी महाराज की नेतृत्व क्षमता और युद्ध कौशल ने मराठा साम्राज्य की नींव रखी.
19 फरवरी को पूरा देश छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मना रहा है. भारत के इतिहास में शिवाजी महाराज का नाम सिर्फ एक योद्धा के रूप में नहीं, बल्कि एक कुशल प्रशासक और दूरदर्शी नेता के रूप में भी लिया जाता है. उन्होंने न केवल मराठा साम्राज्य की नींव रखी, बल्कि स्वराज्य की अवधारणा को भी वास्तविकता में बदला.
बचपन और शुरुआती प्रभाव
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी किले में हुआ था. उनके पिता शाहजी भोसले बीजापुर सल्तनत में एक प्रमुख सेनापति थे, और उनकी मां जीजाबाई ने उन्हें धार्मिक, नैतिक और रणनीतिक शिक्षा दी. शिवाजी के बचपन में संत तुकाराम और रामदास स्वामी के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा.
कहा जाता है कि जीजाबाई उन्हें रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाया करती थीं, जिससे उनके अंदर न्याय, वीरता और रणनीति की भावना जागी. सह्याद्रि पर्वतों के दुर्गम इलाकों में खेलते हुए उन्होंने गुरिल्ला युद्ध की तकनीकों को समझा, जो बाद में उनकी सबसे बड़ी ताकत बनी.
स्वराज्य की स्थापना
सिर्फ 16 साल की उम्र में, 1645 में, शिवाजी महाराज ने तोरणा किले पर कब्जा कर लिया. यह उनका पहला बड़ा कदम था. इसके बाद उन्होंने एक-एक कर कोंढाणा, राजगढ़ और पुरंदर जैसे किलों को जीता. उनकी रणनीति थी – पहले मजबूत किले कब्जे में लो, उन्हें और मज़बूत बनाओ और फिर अपने राज्य का विस्तार करो.
उन्होंने गनिमी कावा (गुरिल्ला वॉरफेयर) की रणनीति अपनाई, जिसमें दुश्मन पर अचानक हमला करके उसे कमजोर करना और फिर सुरक्षित ठिकाने पर लौट जाना शामिल था. यह युद्ध नीति मुगलों और आदिलशाही सेना के लिए सिरदर्द बन गई.
महत्वपूर्ण युद्ध और विजय
प्रतापगढ़ की लड़ाई (1659)
बीजापुर की आदिलशाही सल्तनत शिवाजी की बढ़ती ताकत से परेशान थी, इसलिए उसने अपने सबसे खतरनाक सेनापति अफजल खान को भेजा. अफजल खान एक क्रूर सेनापति था, जिसने शिवाजी को धोखे से मारने की योजना बनाई. लेकिन शिवाजी महाराज को उसकी चाल पहले ही समझ आ गई थी. प्रतापगढ़ के जंगलों में, उन्होंने अपने वाघनख (बाघ के नाखून) से अफजल खान को मार गिराया और इस युद्ध में बड़ी जीत हासिल की.
सूरत की लूट (1664)
शिवाजी महाराज को पता था कि मुगलों की ताकत उनके धन और व्यापार में है. इसलिए उन्होंने सूरत पर हमला किया और बिना किसी निर्दोष को नुकसान पहुँचाए, व्यापारियों से धन वसूला. इससे मुगलों की आर्थिक रीढ़ कमजोर हो गई.
सिंहगढ़ की विजय (1670)
सिंहगढ़ किला, जो पहले मुगलों के कब्जे में था, उसे जीतने के लिए शिवाजी महाराज ने अपने सेनापति तानाजी मालुसरे को भेजा. उन्होंने पहाड़ों पर चढ़कर रात में हमला किया और भयंकर युद्ध के बाद किला जीत लिया. इस लड़ाई में तानाजी वीरगति को प्राप्त हुए, जिसके बाद शिवाजी ने कहा – "गड़ आला पण सिंह गेला" (किला तो आया, लेकिन मेरा सिंह चला गया).
मुगलों और औरंगजेब से संघर्ष
शिवाजी महाराज की बढ़ती ताकत से मुगल सम्राट औरंगजेब भी परेशान हो गया. 1666 में उसने शिवाजी महाराज को आगरा बुलाकर धोखे से कैद कर लिया. लेकिन शिवाजी महाराज ने अपनी चतुराई से योजना बनाई और फलों की टोकरी में छिपकर आगरा से भाग निकले.
इसके बाद उन्होंने फिर से अपनी सेना संगठित की और मुगलों के खिलाफ अभियान शुरू किया. एक-एक कर उन्होंने अपने किले वापस लिए और मराठा साम्राज्य को और मजबूत बनाया.
राज्याभिषेक और मराठा साम्राज्य का विस्तार
1674 में रायगढ़ किले में छत्रपति शिवाजी महाराज का भव्य राज्याभिषेक हुआ. यह सिर्फ एक राजनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि हिंदू स्वराज्य की पुनर्स्थापना का प्रतीक था.
उन्होंने प्रशासन में मराठी और संस्कृत को बढ़ावा दिया, स्थानीय उद्योगों को विकसित किया और एक मजबूत नेवी (जलसेना) बनाई ताकि समुद्री हमलों से बचा जा सके.
शिवाजी महाराज की एडमिन स्ट्रेटेजी
शिवाजी महाराज सिर्फ एक बहादुर योद्धा ही नहीं, बल्कि एक शानदार एडमिनिस्ट्रेटर भी थे. उनका प्रशासन न्याय और जनता के हितों पर आधारित था.
अष्टप्रधान मंडल: उन्होंने आठ मंत्रियों की एक टीम बनाई, जो अलग-अलग विभागों को संभालती थी.
मजबूत किलेबंदी: उन्होंने कई महत्वपूर्ण किलों को मज़बूत किया, जिससे उनका राज्य और सुरक्षित बना.
टैक्स सिस्टम: उन्होंने अनुचित टैक्स सिस्टम खत्म किया और चौथ और सरदेशमुखी नाम से एक नया फेयर टैक्स सिस्टम लागू किया.
धार्मिक सहिष्णुता: उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया और पूजा स्थलों की सुरक्षा की.
शिवाजी महाराज की नेवी और समुद्री ताकत
शिवाजी महाराज ने सिर्फ ज़मीनी सेना ही नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली नेवी भी तैयार की. उनके पास 400 से अधिक युद्धपोत थे. उन्होंने सिंधुदुर्ग, विजयदुर्ग और मुरुद-जंजीरा जैसे मजबूत समुद्री किले बनाए, जो पश्चिमी तट की सुरक्षा के लिए बेहद ज़रूरी थे.
शिवाजी महाराज की विरासत
शिवाजी महाराज का 3 अप्रैल 1680 को निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी ज़िंदा है. उनके बेटे संभाजी महाराज ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया. बाद में पेशवाओं के नेतृत्व में मराठा साम्राज्य और भी ताकतवर बन गया और मुगलों को कड़ी चुनौती दी.
आज भी, शिवाजी महाराज केवल एक ऐतिहासिक नाम नहीं हैं; वे साहस, नेतृत्व और स्वाभिमान के प्रतीक हैं. उनकी रणनीति और एडमिनिस्ट्रेशन स्टाइल आज भी दुनियाभर में स्टडी की जाती है. छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन बहादुरी, संघर्ष और दूरदर्शिता का एक प्रेरणादायक उदाहरण है. एक छोटे जागीरदार के बेटे से लेकर भारत के सबसे महान शासकों में से एक बनने तक, उनकी कहानी दृढ़ संकल्प और रणनीतिक सोच की मिसाल है. आज भी, जब उनका नाम लिया जाता है, तो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. उनकी सोच और लीडरशिप आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है.