CM के को-वर्किंग स्पेस में बवाल, शॉर्ट्स पहने IT प्रोफेशनल को ऑफिस से धक्के मारकर निकाला बाहर, दी गालियां
चेन्नई के मुख्यमंत्री के को-वर्किंग स्पेस में एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया. यहां एक IT प्रोफेशनल, जो शॉर्ट्स में आया था, उसे बिना कोई साफ तरीका बताए बाहर धक्के-मुक्की करके निकाल दिया गया और गालियां भी दी गईं. यह घटना लोगों के बीच ड्रेस कोड और सम्मान को लेकर सवाल खड़ा कर रही है.

कहा जाता है कि ऑफिस में आपका हुनर और मेहनत ही पैमाना होना चाहिए, न कि आपके कपड़े. लेकिन चेन्नई के कोलाथुर में मुख्यमंत्री ऑफिस के अंदर बने एक को-वर्किंग स्पेस पर सोमवार सुबह जो हुआ, उसने इस सोच पर सवाल खड़ा कर दिया.
आधी पैंट और टी-शर्ट पहनकर आए एक आईटी कर्मचारी को न सिर्फ़ भीतर जाने से रोका गया, बल्कि कथित तौर पर कर्मचारियों और बाहर बुलाए गए लोगों ने उसके साथ मारपीट भी की. जबकि ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन (GCC) के नियमों में कहीं भी ड्रेस कोड का जिक्र नहीं है.
शार्ट्स को लेकर बवाल
पेराम्बूर के रहने वाले आईटी प्रोफेशनल दिलीप श्रीनिवासन अपने एक दोस्त के साथ को-वर्किंग स्पेस पहुंचे थे. सुबह उन्होंने जब रजिस्ट्रेशन करने की कोशिश की तो मैनेजर हेलेन अनिता ने उन्हें रोक दिया. वजह ये बताई गई कि शॉर्ट्स पहनकर आने की इजाज़त यहां नहीं है. दिलीप का कहना था कि बुकिंग से पहले उन्होंने ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन की वेबसाइट देखी थी, जहां कहीं भी ड्रेस कोड रे बारे में कुछ भी नहीं लिखा गया है. लेकिन हेलेन अनिता का जवाब था कि यहां कई महिलाएं काम करती हैं, इसलिए डेकोरम बनाए रखना ज़रूरी है.
बोर्ड का नियम
बहस बढ़ने लगी तो जीसीसी के असिस्टेंट एग्जीक्यूटिव अभियंता बाबू और वार्ड 69 के असिस्टेंट अभियंता विजयकुमार मौके पर पहुंचे. जहां दिलीप ने अधिकारियों से रूल बुक दिखाने को कहा, तो इसके जवाब में उन्हें एक बोर्ड दिखाया गया, जिस पर केवल लिखा था – “गेस्ट को सुखद ढंग से आना होगा. इस पर दिलीप का कहना है कि इतने भर के आधार पर उनकी एंट्री रोकना सही नहीं था.
फोन छीना और की मारपीट
दिलीप के अनुसार, बहस बढ़ने पर चार लोगों को बुलाया गया. उन्होंने जबरन उन्हें खींचकर बाहर निकाला. इस दौरान उनका फोन छीन लिया गया और गैलरी में मौजूद सभी तस्वीरें डिलीट कर दी गईं. दिलीप का आरोप है कि न केवल उन्हें धक्का-मुक्की कर बाहर निकाला गया बल्कि गाली-गलौज भी की गई.
अधिकारियों की दलील
इस पूरे विवाद पर जब मैनेजर हेलेन अनिता से पूछा गया तो उन्होंने माना कि कोई रिटर्न रूल नहीं है. लेकिन उनका कहना था कि 'यहां कई महिलाएं आती हैं. ऐसे में कुछ डेकोरम बनाए रखना जरूरी है.' साथ ही, असिस्टेंट इंजीनियर विजयकुमार ने भी अपनी सफाई दी. उन्होंने कहा ' हमने कुछ लोगों को बुलाकर बाहर इसलिए करवाया क्योंकि ये लोग लगातार बहस कर रहे थे. अगर ये शांति से चले जाते तो झगड़े की नौबत ही नहीं आती.'
ड्रेस कोड या भेदभाव?
यह घटना सिर्फ एक वर्कर को बाहर निकालने तक सीमित नहीं है. यह ऑफिस पर पर्सनल फ्रीडम बनाम "डेकोरम" के मुद्दे को उठाता है. सवाल यह है कि जब कोई नियम ही नहीं है तो क्या मैनेजर या अधिकारी अपने लेवल पर कपड़ों के आधार पर रोक लगा सकते हैं? और क्या "प्लीजेंट" ड्रेस की परिभाषा तय करना किसी संस्था का निजी अधिकार है या यह भेदभाव की श्रेणी में आता है?