Caste is Not Indian: बाहर से आया शब्द, जिसने भीतर तक बांट दिया भारत को
भारत की सामाजिक संरचना को परिभाषित करने वाला “Caste” शब्द वास्तव में भारतीय नहीं, बल्कि स्पेनिश मूल का है “Casta”, जिसे पुर्तगाली भारत लेकर आए. इस शब्द के पीछे नस्ल, रक्त की शुद्धता और वर्ग की अवधारणा जुड़ी थी. धीरे-धीरे यह उपनिवेशवादी दृष्टिकोण भारत की वर्ण व्यवस्था पर थोप दिया गया, जिससे जाति का आधुनिक अर्थ विकृत हुआ.

भारत में 'जाति' शब्द और व्यवस्था को हम एक प्राचीन, धार्मिक और सामाजिक ढांचे के रूप में देखते हैं, जहां वर्ण, कर्म और धर्म जैसे सिद्धांतों पर आधारित चार वर्णों की व्यवस्था मानी जाती है: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. इसके बाहर माने गए 'अस्पृश्य' या 'दलित' समाज की स्थिति सबसे निम्न मानी गई.
लेकिन एक चौंकाने वाली बात यह है कि जिस अंग्रेजी शब्द “Caste” का इस्तेमाल हम भारत की सामाजिक संरचना को परिभाषित करने के लिए करते हैं, वह शब्द दरअसल भारतीय नहीं, बल्कि यूरोप से आया हुआ है, स्पेनिश भाषा से.
‘Casta’ से ‘Caste’ तक: यूरोप से भारत की सामाजिक परिभाषा
2013 में ब्रिटिश हाउस ऑफ लॉर्ड्स में भारतीय मूल के विचारक भिखु पारेख ने कहा था, “Caste is not an English word; it is Portuguese. When they came to India, they found that we were classified in a certain way and called it caste.” यानी जब 15वीं सदी के अंत में पुर्तगाली भारत के पश्चिमी तट पर पहुंचे, तब उन्होंने यहां की जटिल सामाजिक व्यवस्था को देखकर एक स्पेनिश शब्द “Casta” का प्रयोग किया. यह शब्द मूलतः “Race” यानी नस्ल या वंश को दर्शाने के लिए इस्तेमाल होता था.
पुर्तगालियों की भूमिका: भारत में जाति व्यवस्था को पश्चिमी चश्मे से देखना
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, स्पेन और पुर्तगाल 15वीं-16वीं सदी में औपनिवेशिक विस्तार और अटलांटिक दास व्यापार के अग्रदूत थे. Casta शब्द का उपयोग वहां "शुद्ध रक्त" या "उत्पत्ति" को दर्शाने के लिए होता था. जब उन्होंने भारत जैसे जटिल सामाजिक ढांचे वाले देश में अलग-अलग सामाजिक वर्ग और पेशों से बंधे समुदायों को देखा, तो उन्होंने इसे casta के रूप में वर्गीकृत करना शुरू किया.
इतिहासकार सुमित गुहा अपनी किताब Beyond Caste: Identity and Power in South Asia, Past and Present (2013) में लिखते हैं कि पुर्तगालियों की भाषा “lingua franca” बन गई थी एशियाई समुद्री व्यापार मार्गों में. पुर्तगालियों ने भारत की जातीय और सामाजिक जटिलताओं को अपनी यूरोपीय समझ से देखा और व्याख्यायित किया, जिसमें "रक्त की शुद्धता", पेशे के आधार पर सामाजिक पदानुक्रम और 'मिश्रित वंश' जैसी अवधारणाएं थीं. इसी प्रक्रिया में भारतीय जाति और वर्ण को 'caste' शब्द से जोड़ दिया गया.
भारतीय और इबेरियाई विचारों में समानता और अंतर
गुहा बताते हैं कि भारत में भी कुछ पेशों जैसे कसाई, मोची आदि को “अशुद्ध” माना जाता था और यह सामाजिक कलंक उनके वंशजों पर भी पड़ता था. ठीक वैसे ही इबेरियन (स्पेनिश-पुर्तगाली) समाज में भी किसी समूह की “शुद्धता” उनके रक्त, विवाह और वंश पर आधारित मानी जाती थी.
इसी सोच के चलते स्पेनिश अमेरिका में 18वीं सदी में कुछ सामाजिक समूहों के बीच शादी पर प्रतिबंध लगाए गए, जैसे भारतीय धर्मशास्त्रों में वर्णसंकर (varna-sankara) को निषेध किया गया था. पुर्तगाली इसे भारत में भी उसी तरह समझने लगे, मानो जातियां यहां भी “रक्त की शुद्धता” बनाए रखने के लिए बनाई गई हों.
नस्लवाद और ‘कास्ट’ का वैश्विक विस्तार
यूरोप के इबेरियन साम्राज्य सिर्फ व्यापार ही नहीं, नस्लवादी विचारों और काले गुलामों की तस्करी में भी गहरे तौर पर शामिल थे. इतिहासकार चार्ल्स बॉक्सर लिखते हैं कि जैसे-जैसे इबेरियन नाविक, मिशनरी और सैनिक दुनिया भर में फैलते गए, उनके नस्लीय पूर्वाग्रह भी फैलते गए और यह आज भी किसी न किसी रूप में जारी हैं.” Casta से Caste का यह सफर केवल एक शब्द की व्याख्या नहीं है, यह औपनिवेशिक सोच की गहरी छाया है, जो भारतीय समाज की संरचना को पश्चिमी शब्दों और मानकों से परिभाषित करने लगी.
भारत में जाति व्यवस्था भले ही हज़ारों वर्षों से धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से मौजूद रही हो, लेकिन “Caste” शब्द उसका हिस्सा कभी नहीं था. यह एक स्पेनिश शब्द 'Casta' था, जिसे पुर्तगाली व्यापारियों और मिशनरियों ने भारत की सामाजिक जटिलताओं को समझने और वर्गीकृत करने के लिए इस्तेमाल किया. बाद में अंग्रेजों ने इसे और पक्का कर दिया और आधुनिक सामाजिक विज्ञान ने इसे ‘भारतीय जाति व्यवस्था’ के लिए एक स्थायी शब्द के रूप में अपना लिया.