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अब साफ-साफ देख सकता है कानून! न्याय की मूर्ति की आंखों से हटी पट्टी, हाथों में संविधान

सर्वोच्च न्यायालय में न्याय की देवी की नई प्रतिमा लगाई गई है. नई मूर्ति इंटरनेट पर काफी वायरल हो रही है. जिसकी खास वजह है कि उसकी आंखों पर बंधी काली पट्टी हट गई है और वह सब देख सकती है. चीफ जस्टिस का मानना है कि भारत को ब्रिटिश विरासत से आगे बढ़ना चाहिए और कानून कभी अंधा नहीं होता, वह सभी को समान रूप से देखता है.

अब साफ-साफ देख सकता है कानून! न्याय की मूर्ति की आंखों से हटी पट्टी, हाथों में संविधान
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( Image Source:  Credit- @itsolutionindia )
निशा श्रीवास्तव
Edited By: निशा श्रीवास्तव

Updated on: 17 Oct 2024 12:29 PM IST

New Justice Statue: देश की अदालतों में रोजाना किसी न किसी मामले पर अदालत में सुनवाई की जाती है. कहते हैं कानून अंधा होता है, वह सिर्फ सबूतों और गवाहों के आधार पर ही फैसला सुनाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं अब कानून अंधा नहीं रहा. वह सब कुछ देख सकता है.

सर्वोच्च न्यायालय में न्याय की देवी की नई प्रतिमा लगाई गई है. नई मूर्ति इंटरनेट पर काफी वायरल हो रही है. जिसकी खास वजह है कि उसकी आंखों पर बंधी काली पट्टी हट गई है और वह सब देख सकती है. यानी अब देश का कानून अंधा नहीं रहा और न ही यह सजा का प्रतीक है.

न्याय की नई मूर्ति

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार (16 अक्टूबर) को न्याय की देवी की नई प्रतिमा का अनावरण किया गया. जिसमें कई बदलाव किए गए हैं. इसमें अब आंखों पर कोई काली पट्टी नहीं बंधी हुई है. साथ ही हाथों में तलवार की जगह भारत का संविधान लिए दिखाया गया है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड के आदेश पर अब अदालतों में दिखने वाली न्याय की देवी की प्रतिमा में बदलाव किए गए हैं.

क्यों किए गए बदलाव?

चीफ जस्टिस चंद्रचूड के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की लाइब्रेरी में न्याय की देवी की नई प्रतिमा स्थापित की गई है. इस फैसले को औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़ने का प्रयास है. जैसे सरकार ने भारतीय दंड संहिता आपराधिक कानूनों को भारतीय न्याय संहिता के साथ बदला था. सूत्रों के अनुसार चीफ जस्टिस का मानना है कि भारत को ब्रिटिश विरासत से आगे बढ़ना चाहिए और कानून कभी अंधा नहीं होता, वह सभी को समान रूप से देखता है.

नई प्रतिमा पर क्या बोले चीफ जस्टिस?

सूत्रों के मुताबिक मूर्ति में बदलाव के फैसले पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 'न्याय की देवी का स्वरूप बदला जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि प्रतिमा के एक हाथ में तलवार नहीं बल्कि संविधान होना चाहिए, ताकि देश में यह संदेश जाए कि वह संविधान के अनुसार न्याय करती हैं. तलवार हिंसा का प्रतीक है, लेकिन अदालतें संवैधानिक कानूनों के अनुसार न्याय करती हैं." बता दें कि न्याय का तराजू दाहिने हाथ में इसलिए रखा गया है क्योंकि वह समाज में संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है और यह विचार भी कि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले अदालतें दोनों पक्षों के तथ्यों और तर्कों को तौलती हैं.

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