दो दिन पहले गिरा था मलबा, फिर भी... बिलासपुर बस हादसे ने खोली हिमाचल की सिस्टम-स्लाइड, अब इन 18 मौतों का जिम्मेदार कौन?
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में भूस्खलन से बस हादसे में 18 की मौत, 30 से अधिक यात्री सवार थे. दो दिन पहले भी इसी पहाड़ी से मलबा गिरा था, लेकिन प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया. लोगों ने अवैध माइनिंग और लापरवाही पर उठाए सवाल. बारिश और पश्चिमी विक्षोभ से ढही कमजोर पहाड़ी, IMD की चेतावनी के बावजूद हादसा. हिमाचल में अब तक 4,000 करोड़ का नुकसान और 366 मौतें दर्ज. क्या जिम्मेदारी तय होगी?

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के बरठीं क्षेत्र में हुए दर्दनाक बस हादसे ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है. भल्लू पुल के पास एक निजी बस पर अचानक पहाड़ी से भारी मलबा गिरा, जिससे बस पूरी तरह दब गई. इस हादसे में 18 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि कई गंभीर रूप से घायल हैं. बताया जा रहा है कि बस में करीब 30 यात्री सवार थे और ज्यादातर अपने घर लौट रहे थे.
स्थानीय लोगों के मुताबिक, हादसे वाली पहाड़ी से दो दिन पहले भी मलबा गिरा था, मगर प्रशासन ने चेतावनी देने या उस रास्ते को बंद करने की जहमत नहीं उठाई. मौके पर कोई साइनबोर्ड नहीं लगाया गया और न ही ट्रैफिक को डायवर्ट किया गया. लोगों का आरोप है कि “खतरे की घंटी” पहले ही बज चुकी थी, लेकिन लापरवाही ने 18 जिंदगियों की कीमत वसूल ली.
इलाके में हो रही थी अवैध माइनिंग
ग्रामीणों ने खुलासा किया है कि इस इलाके की पहाड़ियां कमजोर हैं और वहां अवैध माइनिंग का काम लंबे समय से जारी है. रात के समय भारी मशीनों और ट्रैक्टरों की आवाजाही आम बात है. हालांकि कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं, लेकिन लोगों का कहना है कि लगातार खुदाई से पहाड़ का संतुलन बिगड़ गया है. यही वजह रही कि हल्की बारिश ने भी विनाश की वजह बन गई.
हादसा कैसे हुआ?
झंडूता विधानसभा क्षेत्र के बालूघाट के पास शाम करीब 6:25 बजे मंडी से बिलासपुर जा रही बस पर पहाड़ी से मिट्टी और भारी पत्थर गिर पड़े. बस पूरी तरह दब गई और सिर्फ ऊपरी हिस्सा दिख रहा था. स्थानीय लोगों ने तुरंत पुलिस और SDRF को सूचना दी. रेस्क्यू टीमों ने घंटों की मशक्कत के बाद शवों और घायलों को निकाला. JCB और एंबुलेंस लगातार राहत कार्य में जुटी हैं.
मौसम विभाग ने दी थी चेतावनी
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने 6-7 अक्टूबर को बिलासपुर, मंडी और कांगड़ा में भारी बारिश और भूस्खलन की चेतावनी दी थी. पश्चिमी विक्षोभ और मानसून की आखिरी बारिश ने मिट्टी को कमजोर कर दिया. विशेषज्ञों का कहना है कि प्रशासन अगर पहले ही इस क्षेत्र को “जोखिम क्षेत्र” घोषित कर ट्रैफिक रोक देता, तो यह त्रासदी टल सकती थी.
हिमाचल पर प्रकृति और लापरवाही की दोहरी मार
जून 2025 से अब तक हिमाचल में 179 लोगों की जान भूस्खलन और बारिश से गई है. बिलासपुर, मंडी और कुल्लू जिलों में सड़कों के साथ-साथ गांवों की जमीन भी खिसक रही है. राज्य आपातकालीन संचालन केंद्र के मुताबिक, 20 जून से 7 सितंबर तक 4,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान दर्ज हुआ है. यह केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि प्रशासनिक तैयारी की नाकामी भी है.
आखिर जिम्मेदारी किसकी?
स्थानीय लोग पूछ रहे हैं जब दो दिन पहले मलबा गिरा था, तब कोई चेतावनी क्यों नहीं दी गई? क्या किसी अधिकारी ने साइट का निरीक्षण किया? न कोई साइनबोर्ड, न अस्थायी ट्रैफिक रोक क्या इन लापरवाहियों की जवाबदेही तय होगी? फिलहाल जांच के आदेश दे दिए गए हैं, लेकिन लोगों का गुस्सा शांत नहीं है.
सीख कब लेगा सिस्टम?
यह हादसा सिर्फ एक बस की कहानी नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि हिमाचल की पहाड़ियां अब पहले जैसी नहीं रहीं. अंधाधुंध निर्माण, माइनिंग और मॉनसून की मार ने इन इलाकों को असुरक्षित बना दिया है. जरूरत है कि हर जिले में जोखिम वाले मार्गों की पहचान कर, स्थायी सुरक्षा व्यवस्था की जाए. वरना ऐसे हादसे बार-बार लोगों की जिंदगी को दफनाते रहेंगे.