पति अरबों का मालिक, तलाक के लिए पत्नी को चाहिए 500 करोड़; SC ने ठुकरा दी मांग
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है, न कि कोई व्यावसायिक उपक्रम. वैवाहिक विवादों में दंडात्मक कानूनों के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की और स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता पति-पत्नी के बीच संपत्ति को समान करने के साधन के रूप में नहीं मांगा जा सकता, भले ही पति ने तलाक के बाद वित्तीय सफलता हासिल कर ली हो.

Supreme Court: देश में शादी से पहले और शादी के बाद महिलाओं की सुरक्षा के हितों के लिए बहुत से कानून बनाए गए हैं. लेकिन कई बार उनका दुरुपयोग भी देखने को मिलता है. कुछ महिलाएं पति से तलाक लेने के बाद भारी गुजारे भत्ते की मांग करती हैं. ऐसे ही एक मामले पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'कानून उनकी सुरक्षा के लिए हैं न कि पति को परेशान करने के लिए.'
जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है, न कि कोई व्यावसायिक उपक्रम. वैवाहिक विवादों में दंडात्मक कानूनों के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की और स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता पति-पत्नी के बीच संपत्ति को समान करने के साधन के रूप में नहीं मांगा जा सकता, भले ही पति ने तलाक के बाद वित्तीय सफलता हासिल कर ली हो.
कानून के दुरुपयोग पर कोर्ट की टिप्पणी
इस मामले में व्यक्ति संपन्न है जिसके अमेरिका और भारत में कई कारोबार हैं. वह एक आईटी सलाहकार है. शादी के बाद उसने पत्नी से तलाक की मांग की. पत्नी ने तलाक का विरोध किया और पति की पहली पत्नी को दिए जाने वाले गुजारा भत्ता की राशि का जिक्र कर खुद के लिए भी उसी अनुपात में गुजारा भत्ता मांगा, जो कि कम से कम ₹ 500 करोड़ है. मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि कानून के सख्त प्रावधान महिलाओं के कल्याण के लिए हैं न कि वसूली करने के लिए. साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि गुजारा भत्ता निर्धारित करने के लिए कोई तय फॉर्मूला नहीं हो सकता. केस की सुनवाई जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने की.
कोर्ट ने महिला के पति को दिया निर्देश
कोर्ट ने तलाक के बाद पति को पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 12 करोड़ रुपये देने का निर्देश दिया. बेंच ने इस धारणा को खारिज कर दिया कि गुजारा भत्ता पति-पत्नी के बीच संपत्ति को बराबर करने के साधन के रूप में काम करना चाहिए. फैसले में कहा गया, "हमें पार्टियों द्वारा दूसरे पक्ष के साथ संपत्ति के बराबर के रूप में गुजारा भत्ता या गुजारा भत्ता मांगने की प्रवृत्ति पर गंभीर आपत्ति है."
कोर्ट ने आगे कहा कि भरण-पोषण कानून का उद्देश्य जीवनसाथी को सहायता प्रदान करना, उनके जीवन स्तर में गरिमा और पर्याप्तता सुनिश्चित करना है, न कि दूसरे जीवनसाथी की सफलता से जुड़ा आजीवन अधिकार. कोर्ट ने कहा कि पति अगर तलाक के बाद तरक्की करता है तो इसका मतलब यह नहीं कि पत्नी गुजारा भत्ते की राशि बढ़ाकर देने की मांग करें.