भारत बंद 2025: 25 करोड़ से ज़्यादा श्रमिकों की हड़ताल से ठप हो सकती हैं कई सेवाएं, जानिए क्या खुला रहेगा क्या बंद
बुधवार को 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भारत बंद का एलान किया है, जिसमें 25 करोड़ से ज्यादा मज़दूरों के शामिल होने की संभावना है. बंद का असर बैंकिंग, बीमा, पोस्टल, कोयला और परिवहन सेवाओं पर पड़ेगा. आंदोलन का केंद्र श्रम संहिताओं के विरोध और 17 मांगों को लेकर है, जिन्हें सरकार ने नजरअंदाज़ किया है. किसान संगठन भी बंद में साथ देंगे.
बुधवार, 3 जुलाई को देश एक बड़े 'भारत बंद' का गवाह बनने जा रहा है. इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल में देशभर के 25 करोड़ से ज़्यादा श्रमिकों के शामिल होने की संभावना है. इस हड़ताल का आह्वान 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मोर्चे ने किया है. बैंकिंग, बीमा, कोयला खनन, डाक सेवा, परिवहन, निर्माण, फैक्ट्री वर्कर्स और ग्रामीण मजदूरों से लेकर किसानों तक - अर्थव्यवस्था का हर बड़ा हिस्सा इस बंद में भागीदारी करेगा.
हड़ताल का मुख्य कारण है केंद्र सरकार की 'मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी और कॉरपोरेट समर्थक' नीतियों का विरोध. ट्रेड यूनियनों का कहना है कि केंद्र सरकार ने श्रमिक हितों की अनदेखी की है, 17 मांगों वाला ज्ञापन श्रम मंत्री को दिया गया था लेकिन सरकार ने ना तो वार्ता की और ना ही पिछले 10 वर्षों से सालाना श्रमिक सम्मेलन बुलाया.
इस बंद को संयुक्त किसान मोर्चा और ग्रामीण श्रमिक यूनियनों का भी समर्थन प्राप्त है. कई राज्यों में बसें नहीं चलेंगी, बैंकिंग सेवाएं बाधित होंगी, कोयला और फैक्ट्री उत्पादन पर असर होगा.
आइए जानते हैं कि क्या खुलेगा, क्या रहेगा बंद और क्यों है ये हड़ताल इतनी बड़ी - जानिए विस्तार से
क्या रह सकता है बंद?
- बैंकिंग सेवाएं (सार्वजनिक बैंक ब्रांच, एटीएम सेवाएं धीमी हो सकती हैं)
- बीमा कंपनियां
- डाक सेवाएं
- कोयला खनन, फैक्ट्रियां और स्टील यूनिट्स
- राज्य परिवहन (बस सेवाएं) – खासतौर पर बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, बिहार और ओडिशा में
- सरकारी कार्यालयों में अघोषित वर्क-टु-रूल
क्या रहेगा खुला?
- निजी बैंक और डिजिटल ट्रांजैक्शन (UPI, नेट बैंकिंग)
- आपातकालीन सेवाएं (एम्बुलेंस, पुलिस, अस्पताल)
- मेट्रो और कुछ राज्यों में लोकल ट्रेनें
- दवा दुकानें, प्राइवेट क्लीनिक, किराना स्टोर
हड़ताल के प्रमुख मुद्दे
- चार श्रम संहिताओं को रद्द करना
- सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण का विरोध
- आउटसोर्सिंग और संविदा प्रथा का विरोध
- न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी
- किसानों को MSP की गारंटी
- बेरोजगारी और महंगाई पर नियंत्रण
- सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार
ट्रेड यूनियनों की नाराज़गी
AITUC की अमरजीत कौर ने कहा, “सरकार ने मज़दूरों से संवाद बंद कर दिया है और पिछले 10 वर्षों में एक भी राष्ट्रीय श्रमिक सम्मेलन नहीं बुलाया गया. यह दर्शाता है कि सरकार मज़दूरों की समस्याओं से मुंह मोड़ रही है.” हिंद मज़दूर सभा के हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा कि सरकार श्रमिकों के अधिकारों को छीनने में लगी है और चारों श्रम संहिताएं यूनियनों को कमजोर करने की साजिश हैं.
किसानों का समर्थन भी
संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि मजदूर संगठनों ने भी इस बंद को समर्थन दिया है. उन्होंने घोषणा की है कि ग्रामीण भारत में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए जाएंगे.





