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बीते 10 सालों में 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान को मिली इतनी सफलता, आंकड़े दे रहे गवाही

Beti Bachao Beti Padhao: केंद्र सरकार ने 22 जनवरी 2015 को 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत की थी. इस कार्यक्रम के तहत समाज में कई बड़े बदलाव आए हैं. अब हर परिवार में लड़कियों की शिक्षा और उन्हें आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है. पिछले 10 सालों में कार्यक्रम ने बड़ी सफलता हासिल की है.

बीते 10 सालों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को मिली इतनी सफलता, आंकड़े दे रहे गवाही
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( Image Source:  canva )

Beti Bachao Beti Padhao: भारत सरकार ने देश की बेटियों को आगे बढ़ाने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए 22 जनवरी, 2015 को 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP)' अभियान की शुरुआत की थी. इसके तहत समाज में बच्चियों की स्थिति में सुधार देखने को मिला है. उन्हें फ्री शिक्षा, स्वास्थ्य समेत अन्य आर्थिक सुविधाएं प्रदान की जा रही है. इस कार्यक्रम को दस साल पूरे हो चुके हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम का उद्देश्य बाल लिंगानुपात में गिरावट को रोकना है. जिसमें बेटे की चाह के लिए लोग बेटी होने पर अफसोस जताते थे और कन्या भ्रूण जैसी घटनाएं देखने को मिलती थी. इस अभियान ने पिछले 10 सालों में देश का बेटियों के प्रति नजरिया बदल दिया है. समाज में कई बड़े बदलाव आए हैं.

क्या है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान?

मोदी सरकार ने साल 2015 में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की थी. पहले इसे 100 जिलों के लिए शुरू किया गया था. फिर 2015-16 में इसका विस्तार अन्य 61 जिलों और बाद में देश के सभी 640 जिलों तक किया गया. इस कार्यक्रम का उद्देश्य लिंगानुपात में गिरावट (विशेषकर लड़की के लिए) को रोकना और बच्चियों का अस्तित्व, शिक्षा और सशक्तिकरण को सुनिश्चित करना शामिल था. इसने लड़कियों की पालन-पोषण, स्कूलों में उनकी उपस्थिति समेत अन्य लक्ष्य निर्धारित किए. इसके तहत क्लीनिकों और अन्य उपायों में गर्भावस्था का अवैध पता लगाने को रोकने के लिए प्रचार शुरू किया गया था.

कार्यक्रम के उद्देश्य क्या थे?

1. जन्म के समय लिंग अनुपात: कुछ राज्यों में सुधार, अन्य में बिगड़े हालात

इस अभियान का पहला और सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य चुनिंदा महत्वपूर्ण जिलों में जन्म के समय लिंग अनुपात में हर साल 2 अंकों की वृद्धि करना था. और इसमें एक हद तक सफलता मिलती दिख रही है. 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) के आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय एसआरबी 918 प्रति 1000 पुरुषों (2014-15) से बढ़कर 930 (2023-24, प्रोविजनल) हो गया है.

2. पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में लैंगिक अंतर कम हुआ

अभियान का दूसरा लक्ष्य 5 वर्ष से कम के बच्चों की मृत्यु दर और उसमें में लिंग अंतर को कम करना था. बीबीबीपी के लॉन्च से ठीक पहले, राष्ट्रीय स्तर पर 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर लड़कियों के लिए 49 और लड़कों के लिए 42 थी. यानी 7 अंकों का लिंग अंतर. बाद में इसे प्रति वर्ष 1.5 अंक कम करने का लक्ष्य रखा गया. 2020 में यह अंतर 2 अंकों का रह गया जहां लड़कियों के लिए 33 फीसदी और लड़कों के लिए 31 फीसदी रह गया. हालांकि राज्‍यों के हिसाब से इसमें अंतर है.

3. जन्म में वृद्धि- कार्यक्रम का तीसरा लक्ष्य संस्थागत प्रसव को प्रति वर्ष कम से कम 1.5 प्रतिशत बढ़ाना था. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले कुछ वर्षों में यह आंकड़े बढ़े हैं. बीबीबीपी लॉन्च के वक्त सभी जन्मों में से 78.9 प्रतिशत जन्म अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों जैसी संस्थाओं में हुए थे. 2019-21 में यह आंकड़ा 9.7 प्रतिशत अंक बढ़कर 88.6 प्रतिशत हो गया था.

4. पैरेंटल चेकअप में बढ़ोतरी- बीबीबीपी ने पहली तिमाही की पैरेंटल टेस्ट (एएनसी) में प्रति वर्ष कम से कम 1% वृद्धि बढ़ाने का लक्ष्य था. मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के लिए यह आवश्यक है. बीबीबीपी के लॉन्च के समय, 2015-16 में पहली तिमाही में केवल 58.6 प्रतिशत माताओं की पैरेंटल चेकअप हुआ था. हालांकि, तब से यह आंकड़ा राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ गया है.

5. शिक्षा में लड़कियों का रजिस्ट्रेशन बढ़ाना- बीबीबीपी का एक लक्ष्य 2018-19 तक माध्यमिक शिक्षा में लड़कियों का नामांकन 82% तक बढ़ाना था. 2014-15 के दौरान यह आंकड़ा 75.5 प्रतिशत था. 2018-19 में नामांकन अनुपात 76.9 फीसदी दर्ज किया गया था.

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