Balasaheb Thackeray खुद वही करते थे जो Kunal Kamra आज कर रहे हैं, फिर Eknath Shinde को दिक्कत क्यों?
बालासाहेब ठाकरे का पूरा करियर सटायर और कटाक्ष पर टिका था, फिर आज उनकी विरासत का दावा करने वाले लोग एक स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा से इतना क्यों डर रहे हैं?

डिप्टी CM एकनाथ शिंदे साहब, ये जो आप कर रहे हैं न, वो न शिवसेना के DNA में है, न ही बालासाहेब के आदर्शों में. मतलब, irony का ऐसा overdose हो गया है कि अगर बालासाहेब खुद ज़िंदा होते तो आपको अपने ही कार्टून में लपेट देते.
बालासाहेब होते तो क्या करते?
ज़रा सोचिए, अगर आज बालासाहेब ज़िंदा होते, तो क्या करते?
कुणाल कामरा पर एफआईआर करवाते?
शिवसैनिकों को भेजकर शो रुकवाते?
या फिर खुद कामरा को बुलाकर ऐसा रोस्ट मारते कि बंदा दोबारा माइक उठाने से पहले दो बार सोचता?
मुझे लगता है, तीसरा ऑप्शन ही सच होता.
बालासाहेब ठाकरे वो इंसान थे जिनका पूरा करियर ही सटायर से बना था.
1960 के दशक में जब उन्होंने ‘मार्मिक’ नाम की पत्रिका शुरू की, तो उसमें हर हफ्ते सरकार की बैंड बजाने वाले कार्टून छपते थे.
लोग सड़क किनारे चाय की दुकानों पर खड़े होकर उनके बनाए कार्टून पढ़ते थे और सरकार की नाकामी पर हंसते थे.
लेकिन 2025 में आकर उनकी ही पार्टी का एक गुट एक कॉमेडियन के मज़ाक से इतना डर गया है कि उसे चुप करवाने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी झोंक दी जा रही है?
वाह शिंदे साहब!
कितनी ग़ज़ब राजनीति कर रहे हैं.
वो भी उस महाराष्ट्र में, जहां कभी बालासाहेब ठहाके मारकर नेताओं की बेइज़्ज़ती करते थे और नेता भी झेंपकर हंसते थे.
अब उसी महाराष्ट्र में एक स्टैंडअप कॉमेडियन के खिलाफ हॉल में तोड़फोड़, शो कैंसिल और एफआईआर दर्ज कराई जा रही है?
शिंदे जी, आप तो ‘बालासाहेब की विरासत’ का दावा करते हैं न?
तो फिर बताइए, आपने बालासाहेब की कौन सी सीख अपनाई है?
'सत्ताधारी कभी आलोचना से नहीं डरता.'
यही कहा था न उन्होंने?
लेकिन आप तो आलोचना से इस कदर कांप रहे हैं कि एक कॉमेडियन का शो तक बंद करवा दिया!
बालासाहेब ने तो 1970 के दशक में इमरजेंसी के दौरान भी कांग्रेस की बैंड बजाने वाले कार्टून बनाए थे.
इंदिरा गांधी तक उनके कार्टून देखती थीं और खीझ जाती थीं.
लेकिन बालासाहेब ने पीछे हटना सीखा ही नहीं था.
आज अगर वो होते, तो शायद आपको भी एक कार्टून बना डालते, जहां आप हाफ पैंट में हाथ जोड़कर खड़े होते और कुनाल कामरा को बोलते – ‘भैया, बस एक बार मज़ाक कम कर दीजिए, मेरी इमेज खराब हो रही है.’
गद्दारी का कलंक और कॉमेडी की चुभन
असल दिक्कत कुणाल कामरा नहीं हैं, असल दिक्कत वो सच है जो उन्होंने कहा.
कुनाल कामरा ने स्टेज पर खड़े होकर आपको गद्दार कहा.
अब आप इसपर जितना भी तिलमिलाइए, जनता को तो वही याद रहेगा.
क्योंकि राजनीति में कुछ बातें मिटती नहीं, वो इतिहास बन जाती हैं.
2005 में जब छगन भुजबल का एक कॉमेडी शो में मज़ाक उड़ाया गया था, तब शिवसेना ने कहा था –
'लोकतंत्र में मज़ाक उड़ाना अपराध नहीं है, यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है.'
लेकिन 2025 में यही शिवसेना –
(ओह माफ कीजिए, शिवसेना का एक गुट) –
कॉमेडियन के मज़ाक से इतना आहत हो गया है कि एफआईआर दर्ज करवा दी गई?
शिंदे जी, इतना दिल कमजोर लेकर राजनीति में क्यों आए हैं?
आप महाराष्ट्र जैसे राज्य में सरकार चला रहे हैं, जहां राजनीति और कटाक्ष का नाता वैसा ही है जैसे वड़ा और पाव का.
यहां विपक्ष के नेता तो छोड़िए, चायवाले भी सरकार पर व्यंग्य करने में उस्ताद होते हैं.
अब आप सोचिए –
अगर हर चायवाले के मज़ाक पर एफआईआर करने लगेंगे, तो आधी मुंबई के चाय अड्डों पर धारा 144 लगानी पड़ेगी.
महाराष्ट्र की जनता क्या देख रही है?
जनता देख रही है कि –
बेरोज़गारी का कोई समाधान नहीं.
महंगाई पर कोई चर्चा नहीं.
किसान आत्महत्याओं का कोई जवाब नहीं.
इन्फ्रास्ट्रक्चर के घोटालों पर कोई सफाई नहीं.
लेकिन एक कॉमेडियन के जोक से सरकार की नींद उड़ गई है.
क्या यही ‘मजबूत सरकार’ की पहचान होती है?
मोदी जी का रोज़ मीम बनता है, लेकिन उन्होंने कभी एफआईआर नहीं कराई.
राहुल गांधी को पप्पू बोलकर पूरी राजनीति खेली गई, लेकिन कांग्रेस ने स्टैंडअप कॉमेडी बैन नहीं कराई.
केजरीवाल की मिमिक्री होती है, लेकिन उन्होंने कॉमेडी शोज़ नहीं रुकवाए.
तो फिर शिंदे साहब को क्या समस्या हो गई है?
बालासाहेब की ‘विरासत’ या बस नाम की दुकान?
आप बालासाहेब का नाम लेकर उनकी विचारधारा की हत्या कर रहे हैं
आपने सोचा कि कुनाल कामरा पर एफआईआर कर देंगे, तो लोग आपके ‘गद्दार’ वाले टैग को भूल जाएंगे?
लेकिन सच तो ये है कि अब हर स्टैंडअप कॉमेडियन, हर मीम पेज और हर महाराष्ट्र का चायवाला इस मामले को और हवा देगा.
ये महाराष्ट्र है, यहाँ जब इमरजेंसी में प्रेस की आवाज़ दबाई गई, तो बालासाहेब के कार्टून सड़क किनारे पान ठेलों पर वायरल हो गए थे.
अब सोशल मीडिया का ज़माना है, आप शो बंद करवा सकते हैं, लेकिन जनता की हंसी कैसे रोकेंगे?
सोचिए शिंदे साहब, बालासाहेब की विरासत बचानी है, या उनकी फोटो पर माला चढ़ाकर उनकी सोच की हत्या करनी है?
इतिहास याद करिए, इतिहास!
आप जिस स्टैंडअप कॉमेडी से डर रहे हैं, वो भारत की परंपरा का हिस्सा है. प्राचीन काल से राजाओं के दरबार में विदूषक होते थे, जो राजा की नीतियों पर खुलकर कटाक्ष करते थे.
मौर्य काल में चाणक्य तक ने ये परंपरा अपनाई थी ताकि राजा को हकीकत से काटकर सिर्फ चापलूसों से न घेर दिया जाए. विदूषक कोई जोकर नहीं था, भाईसाहब! वो दरबार का OG स्टैंडअप कॉमेडियन था, जिसका काम था राजा की बैंड बजाना—वो भी सरकारी परमिट के साथ!
राजा की पूरी मंडली में एक वही था जो बिना डरे बोल सकता था –
महाराज, आज मूड ठीक है या फिर से कोई उल्टी-सीधी नीति बना रहे हैं?
और सबसे मज़े की बात ये थी कि राजा इसे सुनकर हंसता भी था, क्योंकि उसे पता था कि सत्ता में अगर कोई तुम्हें आईना दिखा रहा है, तो वो तुम्हारा दुश्मन नहीं, सबसे बड़ा हितैषी है.
आज के स्टैंडअप कॉमेडियन वही काम कर रहे हैं, लेकिन फ़र्क ये है कि अब राजा मज़ाक पर हंसते नहीं, FIR करवा देते हैं. पहले विदूषकों को सम्मान मिलता था, अब उनके खिलाफ ट्रोल आर्मी भेजी जाती है.
पहले सत्ता मज़ाक सुनकर खुद को सुधारती थी, अब सत्ता मज़ाक सुनकर डर जाती है.
लेकिन याद रखिए, हंसी को कैद नहीं किया जा सकता. और जो इसे रोकने की कोशिश करता है, एक दिन वही मज़ाक बन जाता है!