थरूर के बाद अब यूसुफ पठान को लेकर हल्ला! आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार की मुहिम से दूर क्यों हुए यूसुफ?' ममता का दबाव या...
TMC सांसद यूसुफ पठान के आतंकवाद-विरोधी प्रतिनिधिमंडल से हटने पर BJP ने ममता बनर्जी को घेरा और इसे राष्ट्रहित के खिलाफ बताया. इससे पहले शशि थरूर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का पक्ष रखने पर अपनी पार्टी के निशाने पर आ चुके हैं. ये घटनाएं बताती हैं कि अब विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दे भी दलगत राजनीति की भेंट चढ़ रहे हैं, जहां 'पार्टी लाइन' राष्ट्रहित पर भारी पड़ती दिख रही है.

भारत जब आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की साजिशें उजागर करने की मुहिम तेज़ कर रहा है, तब राजनीतिक टकराव और दलगत सीमाएं इस कोशिश को कमजोर करने लगी हैं. ताज़ा मामला TMC सांसद और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ प्रतिनिधिमंडल से अचानक हटने का है.
भाजपा ने सीधे तौर पर ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया कि वे पाकिस्तान के खिलाफ खुलकर बोलने से बच रही हैं. इससे पहले कांग्रेस नेता शशि थरूर भी 'भारत के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय जनमत' तैयार करने की पहल में शामिल होने पर अपनी ही पार्टी के निशाने पर आ चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा को भी राजनीतिक चश्मे से देखा जाने लगा है? क्या आतंकवाद के मुद्दे पर भी 'राष्ट्रहित बनाम पार्टी लाइन' का टकराव अब खुलकर सामने आ चुका है?
भारत की ओर से आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान की पोल खोलने के लिए भेजे जा रहे बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल से तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान की अचानक नाम वापसी ने एक नया सियासी बवंडर खड़ा कर दिया है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस फैसले के पीछे सीधे तौर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराया है और सवाल उठाया है, क्या राजनीतिक निष्ठा, राष्ट्रहित से बड़ी हो गई है?
ऑपरेशन सिंदूर की मुहिम और यूसुफ की वापसी
यह प्रतिनिधिमंडल 30 देशों का दौरा करेगा, जिसमें इंडोनेशिया, मलेशिया, दक्षिण कोरिया, जापान और सिंगापुर जैसे देश शामिल हैं. इसका मकसद है – ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए भारत के खिलाफ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के सबूतों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर करना. यूसुफ पठान का नाम जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद संजय झा के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया गया था, लेकिन रविवार को अचानक खबर आई कि वे अब इस मुहिम का हिस्सा नहीं होंगे.
"ममता पाकिस्तान के खिलाफ बोलने से हिचक रहीं"
बीजेपी के पश्चिम बंगाल सह-प्रभारी अमित मालवीय ने X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा, “TMC सांसद को इस बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल से हटाने का ममता बनर्जी का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है. यह सरकार भारत की है, सिर्फ केंद्र की नहीं. ऐसे राष्ट्रीय महत्व के अभियान को राजनीतिक द्वेष से ऊपर रखा जाना चाहिए.” मालवीय ने यह भी आरोप लगाया कि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ बोलने से परहेज कर रही हैं. उन्होंने यह भी दावा किया कि TMC के अन्य वरिष्ठ सांसद अब इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने के लिए ‘फीलर्स’ भेज रहे हैं.
क्या ये 'पार्टी बनाम देश' की टकराव है?
तृणमूल कांग्रेस ने सफाई में कहा है कि केंद्र सरकार ने प्रतिनिधिमंडल के नाम तय करने से पहले उनसे कोई परामर्श नहीं किया, इसलिए पार्टी ने अपने किसी भी सांसद को इस मुहिम में भेजने से इनकार कर दिया. TMC ने यह भी कहा कि वे इस पहल का बहिष्कार नहीं कर रहे, लेकिन उन्हें यह अधिकार होना चाहिए कि वे खुद अपने प्रतिनिधि तय करें.
कुछ अधूरे सवाल
क्या इतनी बड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कूटनीतिक कोशिश को भी दलगत राजनीति की भेंट चढ़ा देना सही है?
क्या यूसुफ पठान को खुद सामने आकर यह नहीं बताना चाहिए कि उन्होंने व्यक्तिगत निर्णय लिया या पार्टी के दबाव में पीछे हटे?
राष्ट्रहित बनाम राजनीतिक निष्ठा
सियासी गलियारों में बहस छिड़ गई है कि जब देश पाकिस्तान के खिलाफ वैश्विक समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है, तब इस तरह की पार्टीगत टकराव और नाम वापसी क्या भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को धक्का नहीं पहुंचाएंगी? बीजेपी ने इसे राष्ट्रहित पर राजनीतिक निष्ठा को तरजीह देने वाला फैसला बताया है. वहीं टीएमसी ने इसे ‘संवैधानिक सम्मान’ का सवाल करार दिया है.