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राजीव कुमार के बाद कौन संभालेगा मुख्य चुनाव आयुक्त का पद? इन दो नामों की चर्चा आगे

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार 18 फरवरी के दिन रिटायर हो जाएंगे. ऐसे में अब सवाल बनता है कि उनके इस पद को कौन संभालेगा? इस पद के लिए दो उम्मीदवारों के नाम सामने आए हैं. साथ ही, इस पद के चुनाव के लिए एक कमेटी भी बनाई जाएगी.

राजीव कुमार के बाद कौन संभालेगा मुख्य चुनाव आयुक्त का पद? इन दो नामों की चर्चा आगे
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हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 11 Jan 2025 8:28 AM IST

वर्तमान सीईसी राजीव कुमार 18 फरवरी को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं. ऐसे में अब सवाल बनता है कि यह पद कौन संभालेगा? चुनाव आयोग में वर्तमान में सीईसी और दो चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू शामिल हैं. इन दोनों नामों की चर्चा जोरों पर है.

परंपरागत रूप से मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) का उत्तराधिकारी अगला सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त होता है. पहली बार मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पदावधि) अधिनियम 2023 के तहत इस प्रक्रिया को व्यापक बनाया जा सकता है.

ज्ञानेश कुमार हैं दावेदार

ज्ञानेश कुमार अभी भी दावेदारी में हो सकते हैं, लेकिन अधिनियम की धारा 6 और 7 के अनुसार पांच नामों का एक पैनल तैयार करने के लिए सर्च कमेटी बनाई जाएगी. जहां प्रधानमंत्री एक कैबिनेट मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता वाली चयन समिति इस पैनल से चुन सकती है. इसके अलावा, वह बाहर से भी किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर विचार कर सकती है.

क्या कहता है अधिनियम?

यह अधिनियम 2015 और 2022 के बीच दायर कई याचिकाओं के बाद सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद लाया गया था, जिसमें चुनाव आयुक्तों को चुनने में केंद्र की विशेष शक्तियों को चुनौती दी गई थी. अदालत ने कहा था कि संविधान के संस्थापकों ने कभी भी कार्यपालिका को विशेष नियुक्ति शक्तियां देने का इरादा नहीं किया था.

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कही ये बात

पैनल के बारे में पूछे जाने पर विधि मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि प्रक्रिया अभी शुरू होनी है. एक वरिष्ठ चुनाव आयोग अधिकारी ने कहा कि इस बदलाव का मतलब है कि बाहरी लोगों (दो सेवारत चुनाव आयुक्तों के अलावा) को आयोग का नेतृत्व करने का अवसर मिल सकता है. इस बदलाव के निहितार्थों पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने कहा कि इससे चुनाव के बाद सरकार बदलने पर पिछली सरकार के फैसले को सही करने का विकल्प खुल जाता है. इससे आयोग की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ सकता है.

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