कुकी-मैतेई के बाद हमार-जोमी समुदाय के बीच हिंसक झड़प, आखिर क्यों लड़ रहे मणिपुर के लोग?
मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में जोमी और हमार जनजातियों के बीच झंडा फहराने और भूमि विवाद को लेकर तनाव गहरा गया है. घटना के बाद प्रशासन ने कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है और शांति बहाली के प्रयास तेज कर दिए हैं. अधिकारियों ने अफवाहों से बचने और सामाजिक समरसता बनाए रखने की अपील की है. यह विवाद पहचान, स्वामित्व और परंपरा के टकराव को उजागर करता है.

मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में एक बार फिर जनजातीय पहचान से जुड़ा विवाद हिंसा की ओर बढ़ता नजर आया. कुकी और मैतेई के बीच संघर्ष हुआ जिसमें कई लोगों की जान गई और काफी दिन तक तनाव का माहौल रहा. वहीं अब जोमी और हमार जनजातियों के बीच ज़मीन और सामुदायिक प्रतीकों, विशेषकर झंडे फहराने को लेकर उपजा मतभेद अब तनाव में बदल चुका है. ये प्रतीक, जो आत्मगौरव और सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतिनिधित्व करते हैं, स्थानीय शांति व्यवस्था के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं.
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने रेंगकाई और वी मुनहोइह गांवों समेत जिले के कई हिस्सों में कर्फ्यू लागू कर दिया है. हालांकि प्रशासन ने आवश्यक सेवाओं के लिए कर्फ्यू में छूट दी है, लेकिन तनाव के बीच पुलिस और सुरक्षा बलों की भारी तैनाती दिखाती है कि हालात अब सामान्य नहीं हैं. यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या केवल सुरक्षाबलों की मौजूदगी से स्थायी समाधान संभव है?
झंडे से शुरू हुई जंग
तनाव की शुरुआत उस वक्त हुई जब विवादित क्षेत्र में दोनों समुदायों द्वारा अपने-अपने झंडे लगाए गए. इसका असर न सिर्फ भावनात्मक स्तर पर हुआ, बल्कि ऐतिहासिक भूमि विवादों को भी हवा मिल गई. 18 मार्च को इसी विवाद के दौरान हुई झड़प में एक व्यक्ति की जान चली गई थी, और कई लोग घायल हो गए थे. झंडा उतारने जैसी प्रतीकात्मक घटनाएं, अब एक बड़े सामाजिक तनाव का रूप ले चुकी है.
शांति की कोशिश जारी
जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने दोनों गांवों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर शांति बहाल करने की कोशिश की है. प्रशासन की ओर से लोगों से अफवाहों से बचने और सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट न फैलाने की अपील की गई है. मगर सवाल यह है कि क्या संवाद और अपीलें उस गहरे अविश्वास को मिटा सकती हैं जो अब दोनों समुदायों के बीच पनप चुका है?
सामाजिक ताने-बाने की परीक्षा
मणिपुर की जातीय संरचना और विविध सांस्कृतिक पहचानें हमेशा इसकी ताकत रही हैं, लेकिन जब ये पहचानें एक-दूसरे से टकराने लगें, तो प्रशासन के साथ-साथ समाज की जिम्मेदारी भी बनती है कि संवाद और समरसता को आगे बढ़ाया जाए. यह घटना सिर्फ एक झंडे या जमीन की नहीं, बल्कि उस सामूहिक चेतना की भी परीक्षा है जो राज्य में शांति और सह-अस्तित्व की नींव रखती है.