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हरियाणा चुनाव से 23 दिन पहले विधानसभा भंग, संवैधानिक मजबूरी या फिर चुनावी एजेंडा? जानिए विपक्ष के दावों में कितना है दम

Haryana Assembly Election 2024: विधानसभा भंग होने के साथ ही राज्य में विपक्ष हमलावर हो रहा है और आरोप लगा रहा है कि सरकार अल्पमत में होने के कारण ये फैसला ले रही है. हालांकि, इसे लेकर सरकार की ओर से अलग थ्योरी भी दी जा रही है.

हरियाणा चुनाव से 23 दिन पहले विधानसभा भंग, संवैधानिक मजबूरी या फिर चुनावी एजेंडा? जानिए विपक्ष के दावों में कितना है दम
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हरियाणा विधानसभा भंग
सचिन सिंह
by: सचिन सिंह

Updated on: 13 Sept 2024 3:09 PM IST

Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी पार्टियां दांव-पेंच खेल रही है. इस बीच हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक 23 दिन पहले सीएम नायब सिंह सैनी ने 11 सितंबर को कैबिनेट की बैठक बुलाई थी. इसके साथ ही विधानसभा भंग करने का फैसला लिया था, जिसे 12 सितंबर को राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने मंजूरी दे दी. सीएम नायब सिंह सैनी ने ये फैसला अपनी सरकार के कार्यकाल के 52 दिन शेष रहते लिया है. हालांकि, इसे लेकर विपक्ष आक्रामक रूप अख्तियार किए हुए है और सरकार पर चुनाव से डरने का आरोप लगा रही है, लेकिन इसे लेकर नियम क्या कहता है और विपक्ष के आरोपों में कितना दम है?, इसे लेकर विस्तार से चर्चा करते हैं.

क्या कहता है संवैधानिक नियम?

बता दें कि हरियाणा विधानसभा का आखिरी सत्र इसी साल 13 मार्च 2024 को बुलाया गया था. संवैधानिक नियम ये कहता है कि 6 महीने में एक बार विधानसभा सत्र बुलाना जरूरी है. नियम के मुताबिक, दो सत्र के बीच 6 महीने से अधिक का समय नहीं हो सकता है. 13 सितंबर को 6 महीने पूरे हो जाएंगे और विधानसभा चुनाव 1 अक्टूबर को है. ऐसे में संवैधानिक संकट टालने के लिए CM नायब सिंह सैनी ने विधानसभा भंग करने का फैसला लिया, जिसे राज्यपाल की ओर से मंजूरी मिल गई.


CM नायब सिंह सैनी की अध्यक्षता में बुधवार 11 सितंबर 2024 को हरियाणा मंत्रिमंडल ने 14वीं हरियाणा राज्य विधानसभा को भंग करने का प्रस्ताव रखा था. वैधानिक आदेश के मुताबिक, प्रस्ताव को राज्य के राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 174 (2) (बी) राज्य के राज्यपाल को राज्य की विधानसभा को भंग करने की शक्ति देता है.

राज्यपाल के पास है भंग करने की शक्ति

राज्यपाल ने सिफारिश के एक दिन बाद गुरुवार को अधिसूचना जारी की, जिसमें कहा गया, 'मैं भारत के संविधान के अनुच्छेद 174 के खंड (2) के उप-खंड (बी) में मुझे दिए गए शक्तियों का प्रयोग करता हूं और मैं बंडारू दत्तात्रेय हरियाणा का राज्यपाल हरियाणा विधानसभा को तत्काल प्रभाव से भंग करता हूं.'


क्या होता है विधानसभा भंग होने के बाद?

विधानसभा भंग होने के साथ ही मौजूदा विधानसभा के सभी विधायक हरियाणा विधानसभा के सदस्य नहीं रह गए हैं. यहां तक ​​​​कि मौजूदा सरकार भी विधानसभा चुनावों के बाद नई सरकार के गठन तक कार्यवाहक सरकार के रूप में काम करेगी. विधानसभा का विघटन आवश्यक हो गया था क्योंकि विधानसभा की दो बैठकों के बीच छह महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए. हरियाणा विधानसभा की आखिरी बैठक 13 मार्च को हुई थी जब सैनी ने फ्लोर टेस्ट पास कर लिया था. इसके साथ ही 12 सितंबर को एक सत्र आयोजित किया जाना था. विधानसभा के भंग होने के साथ ही CM नायब सिंह सैनी की सरकार कोई भी फैसले नहीं ले सकती है. इस दौरान वह बल केयर टेकिंग के तौर पर ही काम करेंगे.

विधानसभा भंग होने पर हंगामा

विधानसभा भंग होने के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बीजेपी पर हमला किया है. उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, 'विधानसभा सत्र जानबूझकर छह महीने तक नहीं बुलाया गया क्योंकि एक बार विधायक सदन में आ जाते तो यह एक बार और सभी के लिए साबित हो जाता कि भाजपा के पास विधानसभा में बहुमत नहीं है. मुख्यमंत्री अपने पद पर बने रहे जबकि उन्हें पता था कि उनके पास लोगों का जनादेश नहीं है. यह एक ऐसी पार्टी के हाथों लोकतंत्र का चीरहरण है जो अब यह नहीं समझती कि सत्ता पर पकड़ के बिना कैसे रहना है.'

हरियाणा में इससे पहले 3 बार भंग हो चुकी है विधानसभा

ऐसा पहली दफा नहीं है जब राज्य में विधानसभा भंग किया गया हो. इससे पहले भी तीन बार ऐसा फैसला लिया जा चुका है. यानी कि कुल मिलाकर राज्य में तीन बार विधानसभा को भंग किया जा चुका है. ऐसा पहली बार साल 1972 में बंसीलाल सरकार में हुआ था, जब एक साल पहले विधानसभा भंग कर चुनाव कराए थे. इसके बाद साल 1999 में चौटाला सरकार ने विधानसभा भंग किया गया था, ऐसा उन्होंने अपने पक्ष में माहौल को भांपते हुए चुनाव पहले करवाने के लिए किया था. इसी तरह से 2009 में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के छह महीने पहले भंग करके चुनाव कराए थे. हालांकि, इस बार ये तो साफ है कि विधानसभा भंग चुनाव के लिए नहीं बल्कि संवैधानिक मजबूरी के कारण ये फैसला लिया गया है.

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