Begin typing your search...

Saiyaara फिल्म देख रोने लगे Gen Z, क्यों इस जनरेशन को रियल लाइफ प्यार से ज्यादा 'रील लाइफ' भा रहा है?

चाहे वह सनम तेरी कमस हो या सैयारा, अब बॉलीवुड में रोमांस की वापसी हो गई है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन फिल्मों को देख Gen Z की आंखों से आंसू आने लगे हैं. मिलेनियल्स का रोना तो समझ आता है, लेकिन ये जनरेशन जो प्यार में कसमें खाने से डरती है, वह अब इन मूवी से कैसे अफेक्ट हो रही है.

Saiyaara फिल्म देख रोने लगे Gen Z, क्यों इस जनरेशन को रियल लाइफ प्यार से ज्यादा रील लाइफ भा रहा है?
X
( Image Source:  Instagram- @ahaanpandayy )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 22 July 2025 12:17 PM IST

सिनेमा हॉल की बत्तियां बुझ चुकी थीं. "सैयारा" शुरू हुई और मैं खुद को उस कहानी में डूबा हुआ महसूस कर रही थी. अहान पांडे और अनीत पड्डा की केमिस्ट्री स्क्रीन पर ऐसे बसी जैसे पहली बारिश ज़मीन पर. फिर भी, एक अजीब-सी शर्मिंदगी थी. इतनी इमोशनल कहानी और मेरी आंखें सूखी थीं. मैंने खुद से पूछा, क्या मैं बदल गई हूं?

लेकिन तभी, थिएटर के चारों ओर सिसकियों की आवाज़ें गूंजने लगीं. हर दूसरी सीट पर बैठा 25 से 35 की उम्र का शख्स अपने हिस्से के आंसू बहा रहा था. ये ज्यादातर लोग जेन ज़ी थे, लेकिन ये जनरेशन तो असल जिदंगी में कमिटमेंट से भागती, तो फिर इन पर ये फिल्में कैसे असर डाल रही हैं.

कोविड के बाद बदलता सिनेमा

'डीडीएलजे' और 'हम आपके हैं कौन', 'कुछ कुछ होता है', वो समय जब रोमांस को सिर्फ महसूस नहीं किया जाता था, बल्कि उसकी पूजा होती थी. लेकिन फिर सिनेमा बदल गया. कोविड केे बाद से थ्रिलर वाली फिल्मों ने जोर पकड़ा. कहानियां छोटे शहरों की ओर मुड़ गईं. स्क्रीन पर रियलिटी का कब्जा हो गया और प्यार, सपनों की बजाय संघर्ष बन गया.

ओल्ड स्कूल रोमाांस

शहरों की भीड़ में खोए युवाओं को जब अकेलेपन ने घेरना शुरू किया, तब दिल ने कुछ और मांगना शुरू किया. नौकरी और सपनों की तलाश में लोग घरों से दूर निकल पड़े थे. कंधों पर ज़िम्मेदारियां थीं, लेकिन दिल के किसी कोने में एक खाली जगह भी बन गई थी. प्यार था, लेकिन टिकता नहीं था. हर रिश्ता जैसे किसी न किसी मोड़ पर थम जाता था. इसी बीच, हमने उन कहानियों के लिए तरसना शुरू किया, जो भले ही परियों जैसी लगती थीं, लेकिन मन को सुकून देती थीं. और तभी आईं फिल्में सत्यप्रेम की कथा और रॉकी और रानी की प्रेम कहानी जैसी, जिन्होंने याद दिलाया कि देसी रोमांस अब भी जिंदा है. ये फिल्में ऑडियंस को पसंद आई.

लेकिन अब की पीढ़ियां प्यार से डरती हैं, ना?

ये वही पीढ़ियां हैं जो डेटिंग ऐप्स पर स्वाइप करके रिश्ते बनाती और खत्म करती हैं. जिनके लिए “इमोशनली अवेलेबल” होना एक लग्ज़री है. फिर भी, जब सैयारा की जोड़ी हर मुश्किल के खिलाफ अपने प्यार के लिए लड़ती है, तो Gen Z भी हॉल में बैठकर रो पड़ती है. क्यों? शायद इसलिए कि रियल लाइफ में हम जितना दूर प्यार से भागते हैं, रील लाइफ में उतना ही उसका पीछा करते हैं.

सिनेमा के जरिए जीते हैं सपने

हम एक ऐसा देश हैं जिसे प्यार करना आता है और शायद दुनिया को सिखाना भी. अगर असल ज़िंदगी में प्यार निभाना मुश्किल हो जाए, तो भी सिनेमा में हम उन सपनों को जी सकते हैं. इसलिए अब जब धड़क 2, आशिक़ 3, परम सुंदरी, तू मेरी मैं तेरा जैसी फिल्में कतार में हैं, तो उम्मीद है कि ये सिलसिला थमेगा नहीं.

bollywood
अगला लेख