जब तक सोते नहीं थे काका घर में रुकते थे प्रोड्यूसर्स, Rajesh Khanna के तमाम नखरों से परेशान थे Yash Chopra
एक सुपरस्टार और एक स्टार बनने वाले निर्माता के इस समीकरण के बारें में यासिर उस्मान ने लिखा हैं कि आखिर कैसे अमिताभ बच्चन के आने के बाद राजेश खन्ना यश चोपड़ा की पसंद की लिस्ट में से हट गए थे.

सभी साझेदारियां जिनकी शुरुआत अच्छी होती है लेकिन कभी-कभी अंत अच्छा नहीं होता. कुछ ऐसा ही हुआ था दिवगंत सुपरस्टार राजेश खन्ना और दिवगंत फिल्म निर्माता यश चोपड़ा के साथ. राजेश ने यश चोपड़ा को दो सफल फिल्में दी 'इत्तेफाक' और 'दाग' तब तक दोनों के बीच के रिश्ते अच्छे बने रहे. लेकिन फिर एक दिन आया जब यह रिश्ता कड़वाहट की घूंट से भर गया.
एक सुपरस्टार और एक स्टार बनाने वाले निर्माता के इस समीकरण के बारें में यासिर उस्मान की किताब, 'राजेश खन्ना: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडियाज फर्स्ट सुपरस्टार' में बताया है कि जब यश चोपड़ा ने अमिताभ बच्चन को अपनी फिल्म 'दीवार' में बतौर लीड रोल में लेना चाह रहे थें तब उनके और काका के बीच दरारें आनी शुरू हो गई. जबकि राजेश खन्ना ने उस समय एक इंटरव्यू में दावा किया था कि यह फिल्म सबसे पहले उन्हें ऑफर की गई थी.
हाथ से निकली यह भी फिल्म
हालांकि फिल्म के को-स्क्रीनराइटर सलीम खान ने यासिर को बताया था कि मुख्य भूमिका के लिए राजेश खन्ना के साथ कोई बातचीत नहीं हुई थी, क्योंकि लीड रोल अमिताभ बच्चन के लिए लिखा गया था. 'दीवार' के बाद, यश चोपड़ा ने अपनी अगली फिल्म 'कभी-कभी' की योजना बनानी शुरू कर दी- जो दो जनरेशन तक चलने वाला एक मल्टी-स्टारर रोमांटिक ड्रामा था और यह भी राजेश खन्ना के लिए तैयार की गई भूमिका थी. लेकिन यह भूमिका भी काका से छीन गई और जा गिरी अमिताभ बच्चन की झोली में. अमिताभ बच्चन जो एक एंटी-कास्टिंग से पहले ही खुद को 'एंग्री यंग मैन' के रूप में स्टैब्लिश कर चुके थे.
काका के नखरे
हालांकि यश चोपड़ा ने आधिकारिक तौर पर बेहतर ट्यूनिंग के मामले में अपनी रोमांटिक फिल्मों 'कभी-कभी' और 'सिलसिला' के लिए अमिताभ को साइन करने को सही ठहराया, कथित फिल्म राइटर सागर सरहदी, जो राजेश खन्ना को उनके थिएटर के दिनों से भी जानते थे. उनके मुताबिक, एक बार उन्होंने यश चोपड़ा से पूछा था कि 'दाग' जैसी सफल फिल्म बनाने के बाद उन्होंने राजेश को दोबारा साइन क्यों नहीं किया?.' यश चोपड़ा ने जवाब दिया, 'यार, उनके साथ काम करना बहुत मुश्किल है... वह अपने प्रोड्यूसर्स को अपने घर बुलाते हैं और देर रात तक शराब पीते हैं. जब तक वह खुद सोना नहीं चाहते, तब तक प्रोड्यूसर्स को वहां अपनी मौजूदगी दिखानी पड़ती है. फिर अगर वह शूटिंग के लिए मद्रास जा रहे हैं, तो प्रोड्यूसर्स को उन्हें एयरपोर्ट तक छोड़ना होगा और वापस आने पर उनका स्वागत करना होगा. मैं यह नहीं कर सकता. मैं रेगुलर बेसिस पर सुपरस्टार के इन नखरों को नहीं संभाल सकता.'
यश को मिला गया था बेहतर ऑप्शन
फिल्म स्ट्रीट जर्नल की एडिटर भारती एस प्रधान का मानना था कि यश चोपड़ा ने राजेश खन्ना को तब तक खुश रखा जब तक उन्हें उनकी जरूरत थी, और फिर उन्हें अमिताभ बच्चन के रूप में एक ऑप्शन मिल गया. उनका मानना था कि अगर ऐसा नहीं होता, तो यश चोपड़ा राजेश खन्ना जो भी उनसे कहते, वह करते रहते.' हालांकि किताब में जिक्र है कि प्रोड्यूसर्स और डायरेक्टर्स के बीच बच्चन की मांग काका को एक हद तक पसंद नहीं आई.
मैं कड़ी मेहनत नहीं का सकता
सिर्फ इतना ही नहीं एक फिल्म राइटर के साथ बातचीत में राजेश खन्ना उस वक़्त बिगड़ गए जब उनसे पूछा गया कि वह यश चोपड़ा के साथ अब काम क्यों नहीं करते?. कहा जाता है कि अमिताभ की 'नमक हराम' के बाद काका अनसेक्योर महसूस करने लगे थे. उन्होंने फिल्म राइटर को जवाब में कहा था कि यश अब अच्छे डायरेक्टर नहीं है. वह मुझसे सुबह से शाम तक कड़ी मेहनत करवाते हैं और मैं इतनी मेहनत नहीं कर सकता.'
'आखिरी खत' से शुरुआत
भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहे जाने वाले राजेश खन्ना 29 दिसंबर, 1942 को अमृतसर, पंजाब में जन्मे, वह भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे प्रतिष्ठित शख्सियतों में से एक बन गए. खन्ना का स्टारडम बढ़ना 1960 के दशक के अंत में शुरू हुआ और 1970 और 1980 के दशक तक जारी रहा, जहां उन्होंने खुद को कई हिट फिल्मों में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया और खुद को हिंदी सिनेमा में स्टैब्लिश किया. उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 'आखिरी खत' (1966) से की, लेकिन उन्हें 'आराधना' (1969) से भारी लोकप्रियता मिली, जहां उन्होंने एक रोमांटिक हीरो की भूमिका निभाई. फिल्म में उनके अभिनय की काफी सराहना हुई और इसने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया. राजेश खन्ना का स्टारडम बेजोड़ था और फिल्म इंडस्ट्री पर उनका प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है. उनके फैन उन्हें प्यार से काका कहकर बुलाते थे. खन्ना का 18 जुलाई 2012 को निधन हो गया, लेकिन वह भारतीय सिनेमा में आकर्षण, रोमांस और बेजोड़ लोकप्रियता का एक स्थायी प्रतीक बने हुए हैं.