महान फिल्म मेकर रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर की हुई मौत, लंबे समय से थे बीमार
भारतीय टेलीविजन और सिनेमा जगत के मशहूर फिल्म मेकर रामानंद सागर के बेटे और नामी-जामी प्रोड्यूसर-डायरेक्टर प्रेम सागर का निधन हो गया है. वे लंबे समय से बीमारी से जूझ रहे थे. प्रेम सागर ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए टेलीविजन की दुनिया में खास पहचान बनाई.
भारतीय टेलीविजन की दुनिया में एक दुखद खबर सामने आई है. मशहूर फिल्म मेकर रामानंद सागर के बेटे और प्रसिद्ध फिल्म निर्माता प्रेम सागर का निधन हो गया है. प्रेम सागर ने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए कई यादगार धार्मिक और पारिवारिक शो बनाए, जिनमें 'रामायण' से जुड़ी कहानियां भी शामिल थीं.
उनके निधन से फिल्म और टेलीविजन इंडस्ट्री में शोक की लहर है. उन्होंने भारतीय दर्शकों के दिलों में अपनी खास जगह बनाई थी, और अब उनके जाने से एक युग का अंत महसूस हो रहा है.
कौन थे प्रेम सागर?
फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अलग छाप छोड़ने वाले महान फिल्ममेकर रामानंद सागर के बेटे प्रेम सारा एक डायरेक्टर, राइटर और प्रोड्यूसर थे, जिन्होंने टीवी से लेकर फिल्मों में काम किया. उनके निधन से परिवार और फिल्म जगत में शोक की लहर दौड़ गई है, जहां प्रेम सागर की टैलेंट और योगदान को हमेशा याद किया जाएगा.
FTII से शुरुआत
प्रेम सागर ने 1968 में FTII (Film and Television Institute of India) से पढ़ाई की. वहां उन्होंने फोटोग्राफी और सिनेमैटोग्राफी की बारीकियां सीखी, जो आगे चलकर उनके काम में नजर आईं.
पिता के साथ किया काम
प्रेम सागर ने अपने करियर की शुरुआत सागर आर्ट्स प्रोडक्शन हाउस के साथ की, जिसकी स्थापना उनके पिता रामानंद सागर ने की थी. प्रेम सागर ने सागर आर्ट्स के कई प्रोजेक्ट्स में स्टिल फोटोग्राफर और सिनेमैटोग्राफर के रूप में अहम भूमिका निभाई, और अपने तकनीकी कौशल से इन परियोजनाओं की दृश्य गुणवत्ता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया.
अलिफ लैला के थे डायरेक्टर
प्रेम सागर ने टेलीविजन और सिनेमा दोनों क्षेत्रों में अपनी एक अलग पहचान बनाई. वह लोकप्रिय टीवी सीरीज ‘अलिफ लैला’ के निर्देशक रहे, जिसने दर्शकों के बीच खासा पंसद किया गया था. इसके साथ ही उन्होंने ‘काकभुशुंडी रामायण’ (2024) और ‘कामधेनु गौमाता’ (2025) जैसे धार्मिक प्रोजेक्ट्स का भी निर्माण किया, जिनमें भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को दर्शाया गया. निर्माता के तौर पर प्रेम सागर ने कई यादगार प्रोजेक्ट्स दिए। इनमें 1979 की फिल्म ‘हम तेरे आशिक हैं’, 2009 में आई फैमिली ड्रामा ‘बसेरा’, और 2010 की धार्मिक फिल्म ‘जय जय शिव शंकर’ शामिल हैं.
फिल्मों में भी दिया योगदान
फिल्मों में उन्होंने टेक्निकल एक्सपर्ट के रूप में भी काम किया. 1968 की फिल्म ‘आंखें’ और 1972 की ‘ललकार’ में वे कैमरा और इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट से जुड़े रहे. वहीं, 1976 की एक्शन-थ्रिलर फिल्म ‘चरस’ में उन्होंने सिनेमैटोग्राफर की भूमिका निभाई, जिससे उनकी टेक्निकल प्रोफिशिएंसी और विजुअल की समझ का साफ तौर पर पता चला.





