Kanguva Film Review: सूर्या की दमदार परफॉर्मेंस, लेकिन क्या फिल्म उम्मीदों पर खरी उतरी?
कंगुवा में सूर्या की शानदार परफॉर्मेंस और एक्शन सीन्स हैं, लेकिन क्या यह फिल्म अपनी शानदार कहानी और तेज़ गति से दर्शकों को पूरी तरह से बांध पाई? जानें, क्या यह फिल्म उम्मीदों पर खरा उतरती है या कुछ कमी छोड़ जाती है.

कंगुवा का इंतजार सूर्या और बॉबी देओल के फैंस को सालों से था, और आज ये फिल्म सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है. ठीक है, एक्शन देखने के लिए फिल्म के फैंस के दिल धड़क रहे थे, लेकिन अब ये देखने वाली बात होगी कि क्या फिल्म वाकई वो धमाल मचाती है, जैसा कि सभी को उम्मीद थी. चलिए, आपको बताते हैं कि फिल्म ने किस चीज़ में मस्त काम किया और कहां गड़बड़ हो गई!
कहानी की बात करें तो...
फिल्म की कहानी शुरू होती है फ्रांसिस (सूर्या) से, जो एक बाउंटी हंटर है. अब ये भाईसाहब भी जब अपनी एक्स-गर्लफ्रेंड (दिशा पटानी) से टकराते हैं, तो अचानक से गोवा में एक लड़के से मिलकर उन्हें पुरानी यादें आने लगती हैं. फिर क्या, कहानी में टाइम ट्रैवल का ट्विस्ट आता है, और हम पहुँच जाते हैं कंगुवा के जमानें में – एक ऐसा योद्धा जो अपनी कबीले को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. पर अब सस्पेंस ऐसा है कि हम खुद कन्फ्यूज़ हो जाते हैं. अब ये फ्रांसिस और कंगुवा दोनों एक ही इंसान हैं या नहीं? फिल्म में यही टाइप का रहस्य हमें लगातार घुमा रहा है. बस यही सवाल पूरे वक्त सिर में घुमता रहता है – "क्या चल रहा है?"
अब, सूर्या भाई का क्या कहना!
सूर्या ने दोनों किरदारों को बखूबी निभाया है, पर उनका कंगुवा वाला किरदार असल में धमाल है. कंगुवा के रोल में वो जब अपनी कबीले को बचाने के लिए जान की बाजी लगाते हैं, तो यकीन मानिए, हर सीन में आपको यही लगेगा कि "यार ये बंदा सच में कुछ कर गुजरने वाला है!" लेकिन, जो रोमांस था, वो उतना इंटेरेस्टिंग नहीं था. दिशा पटानी के साथ उनकी कैमिस्ट्री तो ठीक-ठाक थी, पर ऐसा नहीं लगा कि हम किसी रोमांटिक ट्रैक को देख रहे हैं.
अब बॉबी देओल को देखिए, भाईसाहब ने अच्छा काम किया है, पर उनके किरदार को और बेहतर किया जा सकता था. विलेन वाले रोल में वो थोड़ा और तगड़ा लग सकते थे. और फिल्म में उनके साथ जितने भी एक्शन सीन हैं, वहां उनका इंटेंसिटी का लेवल थोड़ा कम था. बचे-बचे एक्शन सीन के साथ हम ‘धक-धक’ महसूस करते रहे, पर उनका ‘जोरदार’ फिनिश नहीं था.
तकनीकी पक्ष की बात करें तो...
फिल्म के टेक्निकल पहलू अच्छे थे. वेट्री पलानीस्वामी का कैमरा वर्क एकदम दमदार था, खासकर वो एक्शन सीन तो आंखों को ठंडक दे गए. युद्ध वाले सीन तो कुछ ऐसा था जैसे फिल्म नहीं, कोई महाकाव्य चल रहा हो. एडिटिंग भी सही थी, निशाद यूसुफ ने टाइम पर चीजें काटी हैं. म्यूजिक? कुछ ज्यादा खास नहीं, गाने ठीक-ठाक थे, पर बैकग्राउंड स्कोर थोड़ा और इमोशन डाल सकता था. प्रोडक्शन वेल्यूज़? हां, वो भी शानदार थीं, के.ई. ज्ञानवेल राजा ने फिल्म में कोई कसर नहीं छोड़ी, बस अगर थोड़ी और मेहनत होती तो और भी मजा आता.
प्लस प्वाइंट्स –
1. सूर्याका प्रदर्शन: कंगुवा वाला रोल वाकई शानदार है. एक्शन और इमोशन्स में बराबरी से अपनी जगह बना ली है.
2. एक्शन सीन्स: एक्शन से लेकर वो क्लाइमेक्स वाले सीन्स आपको ‘ओह माय गॉड’ वाला फील दिलाएंगे.
3. कैमरा और प्रोडक्शन: फिल्म तकनीकी लिहाज से भी टॉप क्लास है.
माइनस प्वाइंट्स –
1. कहानी की गति: फिल्म का पेस थोड़ा स्लो है। कुछ सीन ऐसे थे कि बस बैठे-बैठे सोचते रहे, "अरे यार, कब आगे बढ़ेगा?"
2. रोमांस ट्रैक: कुछ खास नहीं था. दिशा पटानी और सूर्याकी कैमिस्ट्री उम्मीद के मुताबिक नहीं थी.
3. बॉबी देओल का किरदार: ठीक-ठाक था, लेकिन ये किरदार और इंटेंस हो सकता था.
कुल मिलाकर कंगुवा एक एक्शन से भरपूर फिल्म है, जिसमें सूर्याका दमदार अभिनय और कुछ शानदार एक्शन सीन हैं. लेकिन अगर आप सोच रहे थे कि फिल्म पूरी तरह से आपके होश उड़ा देगी, तो थोड़ा निराश हो सकते हैं. कहानी में कुछ झोल हैं, और कुछ सीन्स में आपको लगेगा कि क्या हो रहा है! अगर आप बस एक्शन और सूर्याके फैन हैं तो ये फिल्म आपके लिए है, पर कहानी की गहराई और रोमांस में कमी है.
तो, अगर आप सस्पेंस में उलझने का शौक रखते हैं, तो कंगुवा देखने जा सकते हैं. वरना, फिल्म देखने के बाद शायद आप यही सोचेंगे, "सही तो है, पर कुछ मिसिंग था!"