जिंगल कंपोजर थे A. R. Rahman, आर्थिक तंगी में इस फिल्म ने बदल दिया था सिंगर का करियर
रहमान की ज़िंदगी में एक समय ऐसा आया था जब वह म्यूजिक बनाने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे. वह उस समय अपने परिवार के साथ फाइनेंसियल समस्याओं का सामना कर रहे थे.
ए. आर रहमान (A. R. Rahman), जो भारतीय संगीत जगत के सबसे महान म्यूजिशियन में से एक माने जाते हैं, उनकी एक अनसुनी कहानी है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं. यह कहानी उनके जीवन के एक अहम मोड़ से जुड़ी हुई है, जब वह म्यूजिशियन के रूप में खुद स्टैब्लिश नहीं थे और अपने करियर की शुरुआत कर रहे थे. 6 जनवरी को सिंगर अपना 58वां जन्मदिन मना रहे हैं.
रहमान की ज़िंदगी में एक समय ऐसा आया था जब वह म्यूजिक बनाने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे. वह उस समय अपने परिवार के साथ फाइनेंसियल समस्याओं का सामना कर रहे थे. उनकी मां के अचानक निधन ने उन्हें गहरे मानसिक आघात में डाल दिया. इसके बावजूद, रहमान ने म्यूजिक की दिशा में अपना जुनून बनाए रखा और एक दिन वह एक बॉलीवुड फिल्म के लिए म्यूजिक देने का अवसर पाने में सफल हो गए. यह फिल्म थी 'रोजा' (1992), जो उनके करियर का मील का पत्थर साबित हुई.
रहमान का तकनीकी चमत्कार
लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह थी कि 'रोजा' फिल्म के संगीत को तैयार करते समय उन्होंने एक तकनीकी चमत्कार का इस्तेमाल किया. उस समय तक भारत में डिजिटल म्यूजिक का इस्तेमाल लिमिटेड था, लेकिन रहमान ने अपने संगीत में डिजिटल साउंड का प्रयोग किया, जिससे उनका संगीत एकदम नया और ताजगी से भरपूर लगा. इस फिल्म के संगीत को एक नई पहचान मिली. रहमान ने सिंथेसाइज़र और साउंड सैंपलिंग तकनीक का इस्तेमाल किया, जो उस समय भारतीय संगीत में नया था. इससे उन्होंने एक ऐसी ध्वनि बनाई, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत और पश्चिमी तकनीक का मिश्रण थी.
खुद को साबित किया
हालांकि, यह सब आसान नहीं था. फिल्म इंडस्ट्री में उस समय के कई दिग्गज म्यूजिशियन को उनकी तकनीकी प्रयोगों और न्यू साउंड्स को लेकर संदेह था. लेकिन रहमान ने अपने जुनून और नए एक्सपेरिमेंट्स से खुद को साबित किया कि उनका रास्ता सही था. 'रोजा' के संगीत ने उन्हें ना केवल भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में बल्कि इंटरनेशनल लेवल पर भी ख्याति दिलाई.
बिना अनुभव के मिला था काम
रहमान के करियर की शुरुआत आसान नहीं थी. पहले वह एक जिंगल कंपोजर के रूप में काम करते थे, और इससे उनकी अच्छी खासी आमदनी हो रही थी. लेकिन एक दिन उनका जीवन उस समय बदल गया जब निर्माता-मंच निर्माता ओम प्रकाश ने उन्हें एक फिल्म के संगीत के लिए अप्रोच किया. यह फिल्म थी 'रोजा', जिसका निर्देशन मणिरत्नम कर रहे थे. मणिरत्नम को एक नया और ताजगी से भरपूर म्यूजिशियन चाहिए था, और उन्हें रहमान का नाम उनके म्यूजिक की क्रिएशन्स के लिए मिल गया था. यह पहली बार था जब मणिरत्नम ने ए आर रहमान के साथ काम करने का फैसला किया था. रहमान के पास इस वक्त न तो ज्यादा फिल्म इंडस्ट्री का अनुभव था और न ही कोई बड़ा नाम था. लेकिन मणिरत्नम ने उनकी नई तकनीकों और संगीत के प्रति उनके उत्साह को देखा और उन्हें यह फिल्म देने का निर्णय लिया.
सिंगर ने अपनाया इस्लाम
6 जनवरी 1967 को चेन्नई, तमिलनाडु में जन्में रहमान का बचपन काफी साधारण था और वे एक मुस्लिम परिवार से संबंधित थे. उनके पिता, आर के शेख मोहम्मद, एक म्यूजिशियन थे, और उनका परिवार संगीत के प्रति संवेदनशील था. रहमान के जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया जब उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद, रहमान ने संगीत को अपने करियर के रूप में चुना और संगीत में एजुकेशन हासिल करने के लिए उन्होंने 'Trinity College of Music, London' से ट्रेनिंग ली. हालांकि 1980 के दशक में, ए आर रहमान की मां के निधन ने उन्हें गहरे मानसिक आघात में डाल दिया. इस घटना के बाद, उन्होंने इस्लाम धर्म अपनाया और अपना नाम बदलकर ए आर रहमान रखा। 'ए' का मतलब है अल्लाह और 'रहमान' का अर्थ है 'दयालु'.
मिले हैं कई अवार्ड्स
रहमान को 'छैया-छैया' (दिल से, 1998), 'ताल '(ताल, 1999), 'तू ही री' (बॉम्बे 1999), 'जय हो' (स्लमडॉग मिलियनेयर, 2008) और गानों के लिए जाना जाता है. ए आर रहमान ने अपनी मेहनत और संगीत के माध्यम से कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें शामिल हैं. जिसमें से दो ऑस्कर अवार्ड्स (2009) - 'स्लमडॉग मिलियनेयर' के लिए. दो ग्रैमी अवार्ड्स. भारत सरकार द्वारा पद्म श्री (2000) और पद्म भूषण (2010) जैसे प्रतिष्ठित सम्मान. नेशनल फिल्म पुरस्कार और कई फिल्मफेयर अवार्ड्स मिले हैं.





