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क्या सोशल मीडिया सिखा रहा KBC कंटेस्टेंट इशित भट्ट को सबक? आदर्श वर्सेज असभ्यता के बीच बहस का केंद्र बना 10 साल बच्चा

लेकिन क्या यह सही है? क्या हम बच्चों की कीमत केवल दूसरों से तुलना करके नाप सकते हैं? क्या हर कॉन्फिडेंस को अर्रोगंस मान लेना चाहिए, और हर मौन को गुण मान लेना चाहिए? बच्चों की तुलना करने की यह आदत कल्चरल और इमोशनली रूप से सही है क्या?. हम भूल जाते हैं कि ये बच्चे हैं.

क्या सोशल मीडिया सिखा रहा KBC कंटेस्टेंट इशित भट्ट को सबक? आदर्श वर्सेज असभ्यता के बीच बहस का केंद्र बना 10 साल बच्चा
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( Image Source:  X @KBC )
रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Published on: 17 Oct 2025 10:48 AM

इशित भट्ट, वो बच्चा जो हाल ही में 'कौन बनेगा करोड़पति 17' में दिखाई दिया, बस एक मासूम बच्चा था. वह पांचवीं कक्षा का छात्र था, लगभग 10-11 साल का, और अभी अपने जीवन में सपने देखना भी पूरी तरह से शुरू नहीं कर पाया था. लेकिन सोशल मीडिया की दुनिया और ट्रोलिंग की आदत ने उसे अकेला नहीं छोड़ा. इंटरनेट ने तुरंत ही उसे सबक सिखाने का एक नया तरीका खोज लिया. कुछ ही घंटों में, एक पुराना एपिसोड खोज निकाला गया जिसमें किसी और बच्चे की बातें दिख रही थी. इस तुलना ने इशित भट्ट को अचानक असभ्य बच्चा और पिछले साल के कंटेस्टेंट अरुणोदय शर्मा को आदर्श बच्चा बना दिया.

शर्मा विनम्र, शिष्ट और शांत दिखाई दिए, जबकि भट्ट को ओवर कॉन्फिडेंस और असभ्य मान लिया गया और इस तरह इंटरनेट ने एटिकेट का एक रहस्यमय लीडरबोर्ड तैयार कर दिया. लेकिन कहानी में नया मोड़ तब आया जब रुद्र चिट्टे नाम का एक और बच्चा शो में आया. रुद्र ने कोडिंग के ज्ञान, डांस के गुर और लाइफलाइन का असरदार इस्तेमाल दिखाकर अमिताभ बच्चन और दर्शकों को प्रभावित किया. स्कूल जाने वाला ये बच्चा सोशल मीडिया पर नया पसंदीदा बन गया.

आदर्श बच्चा वर्सेज असभ्य बच्चा

इंटरनेट पर भट्ट बनाम रुद्र जैसी बहस नहीं हुई, लेकिन अरुणोदय शर्मा से तुलना जारी रही. पुराने ‘केबीसी’ एपिसोड पर टिप्पणियां बहुत ही कटु और भद्दी हो गईं. लोगों ने गर्व से लिखा कि 'इशित भट्ट की बदतमीज़ी देखने के बाद वे अरुणोदय शर्मा को याद कर रहे थे.' कुछ ने लिखा, वह बच्चा बहुत प्यारा था.' एक अन्य ने कहा, 'इशित भट्ट के अति आत्मविश्वास के बाद मैं अरुणोदय शर्मा को याद कर रहा हूं.'

क्या में फैसला लेने का अधिकार है?

लेकिन क्या यह सही है? क्या हम बच्चों की कीमत केवल दूसरों से तुलना करके नाप सकते हैं? क्या हर कॉन्फिडेंस को अर्रोगंस मान लेना चाहिए, और हर मौन को गुण मान लेना चाहिए? बच्चों की तुलना करने की यह आदत कल्चरल और इमोशनली रूप से सही है क्या?. हम भूल जाते हैं कि ये बच्चे हैं. अभी भी सीख रहे हैं लाइफ में आगे बढ़ना, गलती करना, अपनी भावनाएं व्यक्त करना. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या 20 मिनट का टीवी एपिसोड हमें किसी के पूरी लाइफ की जर्नी, स्ट्रगल और पर्सनालिटी के बारें बता सकता है?. क्या हमें यह फैसला लेने का अधिकार है कि कौन 'अच्छा बच्चा' है और कौन 'असभ्य'?.

एक ओवर एक्साइटेड बच्चा

हमने अपने बच्चों को हमेशा तुलना के जाल में बांध दिया है. अगर पढ़ाई में अच्छे हो, तो खेल में भी अच्छा होना चाहिए. अगर खेल में अच्छा हो, तो कॉंफिडेंट होना चाहिए. अगर कॉंफिडेंट हो, तो पोलाइट भी होना चाहिए. इस तरह हर बच्चे के लिए एक परफेक्ट फ्रेम तैयार कर दिया गया है और फिर हैरान करते हैं कि बड़े लोग तनावग्रस्त, कॉम्पिटिटिव और थके हुए क्यों हैं.? इशित भट्ट शायद बस एक ओवर एक्साइटेड बच्चा है, जिसे जीवन में एक बार अमिताभ बच्चन के सामने बैठने का मौका मिला. कितने 10 साल के बच्चे इस स्टारडम की अहमियत समझ पाएंगे? क्या यह सही है कि हम उसे इस नार्मल लाइफ से अलग कर दें, जहां वह क्रिकेट खेले, नाचें, पढ़ें, साइकिल चलाएं बिना यह सोचे कि कहीं और कोई बच्चा उससे बेहतर है?.

अपने आप से सवाल जरूर पूछें

अरुणोदय शर्मा या रुद्र चिट्टे अनजाने में नए 'आदर्श बच्चे' बन गए हैं और उनकी तुलना से बाकी बच्चों का बचपन प्रभावित होता है. भट्ट को यह बताना कि कोई और बच्चा उससे बेहतर है, जैसे उसकी कमियों का आईना थमा देना है. यह कोई प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि भावनात्मक बर्बरता है, तो अगली बार जब आप किसी 'आदर्श बच्चे' को देखें और तुलना करने पर मजबूर हों, खुद से पूछिए हमने बच्चों की आलोचना को चरित्र निर्माण समझने की गलती कब से शुरू कर दी? चाहे हम किसी को 'अच्छा बच्चा' कहें या 'असभ्य', सच यह है कि हमारी नैतिकता अब केवल ऑनलाइन टिप्पणियों की ओर इशारा करने लगी है. हर बच्चा अलग है हर बच्चा सीख रहा है, हर बच्चा बढ़ रहा है और सबसे अहम बात यह है कि बच्चे बस बच्चे ही रहें बिना तुलना के, बिना 'आदर्श' का बोझ उठाए.

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