मां+मूरत= माधुरी! 74 बार देखी ‘हम आपके हैं कौन’, एक्ट्रेस को किस नजरिए से देखते थे पेंटर एमएफ हुसैन?
एम.एफ. हुसैन के लिए माधुरी दीक्षित सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि भारतीय नारीत्व, मातृत्व और सांस्कृतिक गरिमा की जीवित मूर्ति थीं. उन्होंने माधुरी को अपनी अधूरी स्मृतियों, विशेषकर मां की कमी, को पूरा करने वाली प्रेरणा के रूप में देखा. उनकी फिल्म 'गज गामिनी' से लेकर दर्जनों चित्रों तक, माधुरी उनके हर कैनवास की आत्मा बन गईं.

साल 1994 में जब हम आपके हैं कौन रिलीज़ हुई, तो लाखों दर्शकों की तरह एम.एफ. हुसैन भी इस फिल्म के रंग में रंग गए. लेकिन फर्क था कि, उनका जुड़ाव आम दर्शकों की तरह नहीं था. रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने यह फिल्म 67 से 74 बार देखी. उनके लिए माधुरी दीक्षित सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि वह उस "भारतीय नारीत्व" की मूर्त अभिव्यक्ति थीं जिसकी तलाश वे वर्षों से अपनी कला में करते आए थे.
हुसैन ने माधुरी को एक संस्कारी, गरिमामयी, सौंदर्य और आत्मविश्वास से भरपूर स्त्री के रूप में देखा. जब माधुरी ने गुपचुप शादी कर ली, पूरा देश चौंक गया, लेकिन हुसैन के लिए यह निजी क्षति जैसा था. The Independent ने लिखा कि “हुसैन के पास शोक मनाने का अपना कारण था.” माधुरी उनके जीवन की उस स्त्री की प्रतीक थीं जो कभी उनके साथ नहीं थी- एक मां, एक प्रेम, एक श्रद्धा का मिलन.
मां की कमी, माधुरी से पूरी हुई
एम.एफ. हुसैन की मां का देहांत तब हुआ था जब वे बहुत छोटे थे. कुछ कहते हैं एक साल, कुछ कहते हैं तीन महीने की उम्र में. यह मातृत्व की अनुपस्थिति उन्हें ताउम्र सताती रही. हुसैन के करीबी अनिल रीला ने लिखा कि हुसैन के लिए माधुरी एक मां जैसी भावना को पूर्ण करती थीं. वह आभा, जो nurturing और graceful हो, और फिर भी शक्तिशाली हो. माधुरी ने उन्हें मातृत्व, स्त्रीत्व और भारतीयता के सभी पहलुओं की झलक दी.
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हुसैन ने बनाई थी गज गामिनी फिल्म
हुसैन ने न केवल माधुरी को अपनी कला में बसाया, बल्कि उन्होंने एक फिल्म बनाई- गज गामिनी. यह फिल्म कोई पारंपरिक प्रेमकथा नहीं थी, बल्कि एक चित्रकार का सिनेमाई आत्मकथात्मक दस्तावेज़ थी. फिल्म में माधुरी एक विचार बनीं- स्त्री के विविध रूपों की जीवंत मूर्ति. कभी सरस्वती, कभी रंभा, कभी मां, कभी शक्ति. फिल्म उनके जीवन की अधूरी कल्पनाओं को साकार करने का माध्यम बनी.
कैनवास पर माधुरी: हर रंग में वही
हुसैन के चित्रों में, स्केच में, यहां तक कि घोड़े पर बनी आकृति में हर जगह माधुरी थीं. उन्होंने एक प्रदर्शनी में असली घोड़ा लाकर उस पर माधुरी की छवि उकेरी. उस समय ऐसा प्रयोग असामान्य था. लेकिन इसने जो प्रभाव छोड़ा, उसने कला और सिनेमा की दुनिया को हिला कर रख दिया. हुसैन ने खुद कहा था, "मैं माधुरी नहीं, उनके व्यक्तित्व से प्रेम करता हूं."
‘मां अधूरी’: मज़ाक नहीं, एक सच्चाई
हुसैन की पेंटिंग्स में अकसर एक चेहराविहीन स्त्री दिखाई देती है. बच्चे को गोद में लिए, कभी गठरी उठाए, कभी गंगा-जमुनी पहनावे में. रीला बताते हैं कि हुसैन अक्सर मज़ाक में अपनी पेंटिंग को ‘मां अधूरी’ कहते थे- पर यही वह खालीपन था जिसे माधुरी की उपस्थिति से वह भरने की कोशिश करते थे.
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कला के रास्ते जन-जन तक
हुसैन का मानना था कि “सिनेमा वो ज़ुबान है जो भारत की हर गली तक पहुंचती है.” उनके लिए माधुरी, कला को आमजन तक पहुंचाने का एक माध्यम थीं. उन्होंने कहा था कि माधुरी के साथ मेरा जुड़ाव, कला को शुद्ध दीर्घा से निकालकर आम आदमी तक ले जाएगा. उनके लिए यह प्रेम नहीं, एक क्रांतिकारी सांस्कृतिक प्रयोग था.
'आजा नचले' में बुक किया था पूरा थियेटर
2007 में जब माधुरी दीक्षित ने आजा नचले से फिल्मों में वापसी की, हुसैन इतने उत्साहित हुए कि उन्होंने पूरा थिएटर बुक कर लिया. यह इशारा सिर्फ एक फैन का नहीं था. यह एक पुराने जुनून की पुनरावृत्ति थी. शायद अधूरी कविता फिर से गूंज रही थी. एम.एफ. हुसैन का माधुरी दीक्षित के प्रति लगाव न किसी सामान्य प्रेम कहानी जैसा था, न सनक जैसा. यह उस गहराई से निकला था जो एक कलाकार की आत्मा में बसती है, और जिसने जीवन में जिन अनुभवों की कमी महसूस की, उन्हें रचना में पूर्णता दी. माधुरी उनके लिए नारीत्व, मातृत्व, संस्कार, शक्ति इन सबका सामूहिक रूप थीं.