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Chhaava Film Review: इतिहास के ज्ञानी हो तो ठीक, वरना मुश्किल है छावा देखना!

विक्की ने संभाजी महाराज की आत्मा डाल दी, पर बाकी डामाडोल! ट्रेलर में जितना दिखा, बस उतना ही मिलेगा! इतिहास पहले से पता हो तो मज़ा आ जाएगा, नहीं तो आधी फ़िल्म ये समझने में जाएगी कि कौन किसका कज़िन है!

Chhaava Film Review: इतिहास के ज्ञानी हो तो ठीक, वरना मुश्किल है छावा देखना!
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तो भाई मैंने तो थिएटर जाकर देख लिया.. लेकिन तुम लोग छावा फ्री में देख सकते हो, नहीं मैं मज़ाक नहीं कर रहा बिलकुल भी नहीं अगर भरोसा ना हो तो यूट्यूब पर सर्च कर के देख लो छावा ट्रेलर फ्री ही है.

क्या हुआ? अब सोच रहे हो कि बात फ्री फिल्म की थी और अब ट्रेलर दिखा रहा हूं, तो भाइयों और उन भाइयों की बहनों वैसे तो आज वैलेंटाइन डे है पर दूसरों के साथ मनाऊंगा तो हमारी मोहतरमा कूट देंगी और हमें कोई बहन बनानी है नहीं..खैर मुद्दे से बिना भटके हां तो मैं कह रहा था कि जितना उत्तेजित तुम लोग ट्रेलर देख कर हो रहे थे..बस उतने में ही कर संतोष लो, काहे कि बड़े बुजुर्ग कह गए हैं ‘संतोषम परम सुखम’..और डायरेक्टर साहब ने जो ट्रेलर दिखाया, उतना ही है..बाकी फिलम खतम.

ट्रेलर देख जितने गूसबम्प्स आये थे, उतने ही फिल्म में आएंगे, नो डाउट..लेकिन उतने ही. उनके आलावा फिल्म में और कुछ अलग है नहीं, मानो बस ट्रेलर को ही एक्सटेंड कर दिया है. एक-एक सीन, चाहे वो गदा उठाते छावा, यानी की विक्की, या फिर तीर-धनुष लेकर पानी से निकलते, या त्रिशूल वाला सीन, या औरंगजेब का इंटेंस लुक, जितना ट्रेलर में दिखे, फिल्म में भी उतने ही बार इंटेंस और खूंखार दिखे हैं अक्षय खन्ना, उससे ज़ियादा नहीं. येशुबाई जो कि मराठा साम्राज्य को फिर से उठाने वाली नींव हैं, जो मराठी इतिहास कभी पढ़े-सुने होंगे वो जानते हैं, उनका वेइटज कितना है, लेकिन रश्मिका...सही बताऊं मुझे लगता है रश्मिका से ज्यादा उनके मेकअप आर्टिस्ट और क्रू ने काम किया है, क्योंकि उनको शकल सूरत तो दे दिया, लेकिन ना तो मैडम एक्सेंट पकड़ पा रही हैं न हिंदी बोल पा रहीं ढंग की.

तो हुई ना फिल्म फ्री!

हां.. अब अगर फिर भी पैसा उड़ाना है...तो चलो अब मूवी की खामियों और खूबियों की बात कर लेते हैं

देखो भाई मैं ठहरा पुणेकर, टिपिकल मराठी मानुष तो मुझे तो इतिहास पता है, मैं समझ गया लेकिन हमारे साथ बैठी थी एक मोहतरमा, अब पूरे समय मैं उसके फेस पर बस कन्फ्यूजन ही देख रहा था...क्यों? क्योंकि डायरेक्टर साहब ने मान लिया कि भाई सब लोग छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज का इतिहास घोट कर बैठे हैं लेकिन असल में ऐसा है नहीं.

डायरेक्टर शायद यह सोचकर चल रहें हो कि ऑडियंस इतिहास की पीएचडी करके आएगी या फिर अपने साथ कास्ट लिस्ट लेकर आएगी. फिल्म में इतने कैरेक्टर्स हैं कि कौन किसका क्या है, कौन किस पॉलिटिकल गेम में क्या कर रहा है, यह समझने में ही आधी मूवी निकल जाती है. स्टोरी इतनी तेजी से भागती है कि कोई इमोशनल कनेक्शन ही नहीं बन पाता, हां आखिर के 20 मिनट में इमोशंस हैं और इतने हैं कि शायद आंसू आ जाए. फिल्म में जो भी घटनाएँ दिखाई गईं उनका कोई बैकस्टोरी एक्सप्लेन करने का झंझट ही नहीं लिया गया. डायरेक्टर साहब को लगा कि ये तो सबको पता ही होगा.

अरे भैया, तुम फिल्म बना किसके लिए रहे हो? मराठा इतिहास के स्कॉलर लोगों के लिए या फिर आम जनता के लिए.

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अब एक्टिंग की बात करें तो... भाई, विक्की कौशल ने क्या बढ़िया काम किया है, कोई शक नहीं, मतलब आप भूल जाओगे विक्की कहां हैं, स्क्रीन पर ढाई घंटे सिर्फ छत्रपति संभाजी दिखते हैं. उनका लुक, उनकी बॉडी लैंग्वेज, एनर्जी और स्क्रीन प्रेजेंस, हर चीज़ में मेहनत दिखती है लेकिन जब स्क्रीनप्ले ही स्ट्रॉन्ग ना हो तो भाई, अकेले विक्की क्या ही कर लेंगे? अक्षय खन्ना का औरंगजेब वाला लुक जितना ट्रेलर में इंटेंस लगा, फिल्म में भी उतना ही इंटेंस लगा, बस उससे ज्यादा कुछ नहीं.

लेकिन ये भी कहना पड़ेगा कि फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर, म्यूजिक, लाइटिंग, सेट और कॉस्ट्यूम टॉप क्लास हैं और बात करें अगर लास्ट फाइट सीन की लोकेशन की तो वो एकदम एक्यूरेट 21 तो नहीं 2-4 तोपों की सलामी टीम को दे ही देनी चाहिए सही रीसर्च के लिए. विजुअली फिल्म भव्य लगती है और हर सीन को खूबसूरती से फिल्माया गया है. प्रोडक्शन च बोलूं तर लयच भारी. एक्शन सीक्वेंस भी दमदार हैं. और बैटल सीन्स में जो ग्रैंडनेस चाहिए थी. वो देखने को मिलती है.

अब आते हैं उन चीजों पर जहां फिल्म पूरी तरह से गच्चा दे जाती है

येशुबाई का किरदार, जिसे मराठा इतिहास में एक मजबूत कड़ी के रूप में देखा जाता है, उसे स्क्रीन पर उतना इम्पैक्टफुल नहीं दिखाया गया. रश्मिका मंदाना को कास्ट तो कर दिया लेकिन क्या ज़रूरत थी? मतलब, भाई, मराठी एक्सेंट तो छोड़ो, हिंदी भी ढंग से नहीं बोल पाई. इतना ही करना था तो कोई और मराठी एक्ट्रेस को ले लेते. येशुबाई जैसी स्ट्रॉन्ग कैरेक्टर को ऐसे दिखाया कि पूछो मत.

सबसे बड़ी दिक्कत- फिल्म की कहानी बहुत तेजी से भागती है. अब ढाई घंटे की मूवी में सीन इतने जल्दी-जल्दी आते हैं कि कई बार कनेक्ट करने का मौका ही नहीं मिलता. अगर आपको पहले से ऐतिहासिक बैकग्राउंड नहीं पता, तो यह समझना मुश्किल हो जाता है कि कौन किसका क्या है. किरदारों को अच्छे से डेवलप नहीं किया गया. जिससे इमोशनल कनेक्शन कम फील होता है.

तो कुल मिलाकर भाई...फिल्म देखनी है तो टिकट कर लो...लेकिन ज्यादा उम्मीद मत रखना...ट्रेलर में जितना था, बस वही मिलेगा

रेटिंग...अगर मराठा इतिहास जानते हो और विक्की कौशल के फैन हो तो 5 में 5...नहीं-नहीं चलो साढ़े 4, लेकिन अगर तुम मोदी जी के Gen 2 जेनेरशन के हो और पढ़ना-लिखना साढ़े बाइस है, या क्लियर स्टोरी, इमोशनल कनेक्ट और स्ट्रॉन्ग स्क्रीनप्ले की उम्मीद लगा रखी है...तो फिर दो-ढाई में ही संतोषम परम सुखम मान लो

तो जाओ, अगर देखनी है तो देखो, नहीं तो यूट्यूब पर ट्रेलर फ्री में देख लो, वही काफी है!

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