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'इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं...' उतार-चढ़ाव के बावजूद बॉलीवुड को दिए सुपरहिट गीत, जानें कैसी रही ताई की पूरी जिंदगी?

आशा भोसले म्यूजिक इंडस्ट्री का वह नाम हैं, जिसे कभी भूला नहीं जा सकता है.उनके गाने आज भी लोगों की जुबान पर रहते हैं.

इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं... उतार-चढ़ाव के बावजूद बॉलीवुड को दिए सुपरहिट गीत, जानें कैसी रही ताई की पूरी जिंदगी?
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हेमा पंत
by: हेमा पंत

Updated on: 8 Sept 2024 1:40 PM IST

यह कहना गलत नहीं होगा कि 'जाति-धर्म से परे इंसान को अगर कोई चीज़ जोड़ कर रखती है, तो वह है संगीत. संगीत एक एहसास है. म्यूजिक इंडस्ट्री में कई दिग्गज कलाकार हैं, जिनमें से एक का नाम है आशा भोसले. आशा भोसले का नाम सुनते ही उनकी सुरीली आवाज़ कानों में सुनाई देने लगती है. आज भी उनके द्वारा गाए गए गाने लोगों की जुब़ान पर हैं.वह अपनी वर्सटाइल आवाज़ के लिए जानी जाती हैं. इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने तकरीबन 20 भाषाओं में गाने गाए हैं. आज ताई का जन्मदिन है. वह 91 साल की हो गई हैं. आशा भोसले की पर्सनल लाइफ में काफी उतार-चढ़ाव रहे। इसके बावजूद भी उन्होंने बॉलीवुड को कई बेहतरीन गाने दिए हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि यही एक असली कलाकार की पहचान होती है. चलिए इस खास मौके पर जानते हैं कैसे उन्होंने अपने करियर में अपार सफलता पाई.

10 साल की उम्र से गाया गाना

आशा भोसले के पिता बेहद मशहूर क्लासिकल सिंगर थे, जिनका नाम दीनानाथ मंगेशकर था.इस कारण से घर में हमेशा संगीत का माहौल रहता था. इसलिए केवल 10 साल की उम्र से ही वह गाना गा रही हैं. आशा ताई ने अपने करियर का पहला गाना साल 1948 में आई फिल्म चुनरिया' का गीत 'सावन आया...' है गाया था. इसके बाद उनके तीसरे गाने 'आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा...' ने आशा जी को रातों-रात म्यूजिक इंडस्ट्री का सितारा बना दिया. इसके बाद आशा जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और बॉलीवुड इंडस्ट्री को एक के बाद एक सुपरहिट गाने दिए.

इस फिल्म ने बदली किस्मत

एक समय था जब हिंदी सिनेमा की गायन की दुनिया पर गीता दत्त, शमशाद बेगम और लता मंगेशकर का जादू चल रहा था. उन दिनों आशा भोसले का नाम बहुत कम सुना जाता था, और उन्हें अक्सर बी-ग्रेड और सी-ग्रेड फिल्मों में ही गाने का मौका मिलता था. 1950 के दशक में, आशा जी ने कम बजट वाली फिल्मों के लिए कई गाने गाए, जिनमें संगीतकार ए. आर. कुरैशी (अल्ला रख्खा खान), सज्जाद हुसैन और गुलाम मोहम्मद का संगीत था, लेकिन ये फिल्में खास सफल नहीं हो पाईं, लेकिन 1952 में दिलीप कुमार की फिल्म ‘संगदिल’ में सज्जाद हुसैन के संगीत के साथ आशा जी को एक खास मौका मिला. इसके बाद बिमल राय ने अपनी फिल्म ‘परिणीता’ (1953) के लिए उन्हें मौका देकर उनका करियर बदल दिया.

इस गाने ने बदली आशा भोसले की पहचान

आशा भोसले ने अपने शुरुआती दौर में 'ओ हसीना जुल्फों वाली...' 'कारवां' में 'पिया तू अब तो आजा...', 'मेरे जीवन साथी' में 'आओ ना गले लगा लो ना...' और 'डॉन' में 'ये मेरा दिल यार का दीवाना...' गीत गाए है. इन गानों के बाद इंडस्ट्री में उनकी एक इमेज बन गई की वह कैबरे और पॉप सॉन्ग्स ही गाती हैं, लेकिन एक कलाकार चाहे तो कुछ भी कर सकता है. यह बात आशा भोसले ने साबित कर दिखाई थी. साल 1981 में आई 'उमराव जान' फिल्म का सबसे हिट सॉन्ग दिल चीज क्या है...' और 'इन आंखो की मस्ती के भला कौन भूल सकता है. इन गानों के बाद म्यूजिक इंडस्ट्री को एक नई आशा भोसले मिलीं.

'दम मारो दम' गाना पर लगा था बैन

साल 1971 में आई फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' का हिट गाना 'दम मारो दम' तो आपने जरूर सुना होगा? इस गाने को आशा ने आवाज दी थी, जिसके लिए उन्हें ‘फ़िल्मफ़ेयर बेस्ट फ़ीमेल प्लेबैक सिंगर’ के अवॉर्ड से भी नवाजा गया था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस गाने को भारत सरकार द्वारा बैन कर दिया था? इस बात का खुलासा दिवगंत म्यूजिक डायरेक्टर आर.डी. बर्मन और आनंद बख्शी ने एक इंटरव्यू में किया था कि सरकार को भगवान राम का नाम दम से जोड़ने पर आपत्ति थी. इस कारण से शुरुआती समय में इस गाने पर AIR और DD ने बैन लगा दिया था.

ग्रेमी अवॉर्ड के लिए किया गया नॉमिनेट

एक अच्छे फनकार की पहचान ही यही है कि उनके गाने देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पसंद किए जाए. इस बात का सबूत यह है कि उस्ताद अली अकबर खान के साथ एक एल्बम के लिए ग्रेमी अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया था.

इन अवॉर्ड से नवाजा गया

आशा भोसले का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल है. यही नहीं, उन्हें भारत के सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड दादा साहेब फाल्के और पद्म विभूषण से भी नवाज़ा गया है.आशा जी 12 हजार से ज्यादा गाने गा चुकी हैं.

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