फौज में नहीं हो पाए भर्ती, 32 साल से कर रहे सैनिक सहायता कोष में दान
50 रुपये से उन्होंने सेना सहायता कोष में दान शुरू किया था, अब वह हर महीने 500 रुपये भेज रहे हैं. पहले यह रकम वह वेतन से देते थे, अब अपने पेंशन से देते हैं.

छत्तीसगढ़ के बालोद में एक ऐसे शिक्षक हैं जो 32 साल से बिना नागा किए हर महीने सैनिक सहायता कोष में दान कर रहे हैं. राजकीय सेवा से रिटायर होने के बाद सेना के प्रति उनका वही भाव बना हुआ है और वह चाहते हैं कि उनके बाद उनके बच्चे इस क्रम को जारी रखें. यह शिक्षक गुंडरदेही ब्लॉक के खर्रा गांव में रहने वाले 75 वर्षीय शिव कुमार शर्मा हैं. अथर्ववेद के 12वें कांड में भूमिसूक्त ‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः’ से प्रभावित शिवकुमार शर्मा की बचपन से इच्छा फौज में जाने की थी. वह चाहते थे कि एक सिपाही बनकर अपने मातृभूमिक की रक्षा करें.
चूंकि उनकी हाईट कम थी, इसलिए उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका. ऐसे में उन्होंने 1972 में हुई शिक्षक भर्ती के लिए अप्लाई किया और चुन लिए गए. उन्हें पहली तनख्वाह मिली तो एक बार फिर उन्हें सेना से प्यार उमड़ पड़ा. चूंकि उस समय उन्हें केवल 169 रुपये 30 पैसे ही वेतन मिलते थे. ऐसे में वह कुछ नहीं कर पाए. फिर 1992 में उनकी तनख्वाह 600 रुपये हो गई. इसके बाद वह 50 रुपये निकाल कर सेना सहायता कोष के लिए प्रधानमंत्री को भेजने लगे. इसके बाद जैसे जैसे उनकी तनख्वाह बढ़ती गई, वह रकम बढ़ाते बढ़ाते अब 500 रुपये भेजने लगे हैं. इसके लिए वह खुद तीन किमी पैदल चलकर गुंडरदेही पोस्ट ऑफिस जाते हैं और प्रधानमंत्री कार्यालय के नाम मनी ऑर्डर करते हैं.
एक बेटा और दो बहुएं भी बन चुकी हैं टीचर
उन्होंने बताया कि जीवन में वह रुपया तो ज्यादा नहीं कमा पाए, लेकिन एक संकल्प जरूर उन्होंने कमाया है. यह संकल्प वह अपने अंतिम समय में अपने बच्चों को देकर जाएंगे. वह चाहेंगे कि उनके मरने के बाद उनके बच्चे भी अपनी कमाई का एक हिस्सा सेना सहायता कोष के लिए भेजते रहें. उन्होंने बताया कि वह भले ही रिटायर हो चुके हैं, लेकिन उनका बड़ा बेटा अजीत तिवारी खलारी गांव के हॉयर सेकेंड्री स्कूल में टीचर है तो बड़ी बहु प्रतिभा तिवारी गुजरा के हॉयर सेकेंड्री स्कूल में लेक्चरार है. इसी प्रकार छोटी बहु ममता तिवारी भी लासाटोला गांव के शासकीय प्राथमिक शाला में टीचर बन गई हैं.