डॉलर के सामने रुपया बेदम: विदेश में पढ़ाई, घूमना और रोजमर्रा की जिंदगी - सब पर बढ़ेगा खर्च, बचने का तरीका भी जानिए
भारतीय रुपया 2025 में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 5% गिरकर 90 के स्तर से नीचे पहुंच गया है, और इसका असर अब सिर्फ विदेशी व्यापार नहीं बल्कि आम आदमी की जेब पर भी पड़ रहा है. विदेश में पढ़ाई, विदेश यात्रा और आयातित वस्तुओं - जैसे मोबाइल, लैपटॉप, कार के पार्ट्स, दवाइयां, इलेक्ट्रॉनिक्स और खाद्य तेल - सब महंगे होने की आशंका है. हालांकि अभी खुदरा महंगाई नियंत्रण में है, लेकिन RBI के अनुसार रुपया 5% कमजोर होने पर महंगाई लगभग 35 बेसिस पॉइंट तक बढ़ सकती है.
भारतीय रुपये की लगातार गिरावट सिर्फ विदेशी व्यापार या शेयर बाजार को प्रभावित नहीं कर रही, बल्कि आम लोगों की जेब पर भी बड़ा असर डाल रही है. 2025 में रुपया अब तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले करीब 5% कमजोर हो चुका है और 90 रुपये प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया है, जो अब तक का नया निचला स्तर है. ऐसे में यह सवाल आम हो गया है - रुपये की कमजोरी का आम आदमी के जीवन पर कितना असर पड़ेगा और इससे बचने का रास्ता क्या है?
स्टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्सक्राइब करने के लिए क्लिक करें
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार रुपये में गिरावट कई कारणों से तेज हुई है - जैसे भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में देरी, अमेरिका द्वारा भारत पर 50% टैरिफ, एफडीआई प्रवाह में कमजोरी और विदेशी निवेशकों द्वारा इक्विटी बाजार से बड़े पैमाने पर धन निकासी. इसके साथ ही, RBI की मुद्रा पर नियंत्रण कम होता दिख रहा है, जिसने गिरावट को और गहरा दिया है.
विदेश में पढ़ाई और घूमने का सपना हुआ महंगा
कमजोर रुपया उन परिवारों के लिए सबसे बड़ी चिंता बन रहा है, जो बच्चों की पढ़ाई या घूमने के लिए विदेश जाने की योजना बना रहे हैं. उदाहरण के लिए - अगर किसी विश्वविद्यालय की वार्षिक फीस $100,000 है, तो पहले 85 रुपये प्रति डॉलर की दर पर यह राशि 85 लाख रुपये होती थी. लेकिन 90 रुपये प्रति डॉलर की दर पर अब वही फीस 90 लाख रुपये होगी - यानी 5 लाख रुपये की सीधी बढ़ोतरी. यह बढ़ोतरी भारत की प्रति व्यक्ति आय से ज्यादा है.
इसी तरह अमेरिका या एशियाई देशों में छुट्टियों पर जाना भी महंगा हो गया है. 2025 में एशिया की मुद्राओं के मुकाबले भी भारतीय रुपया एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा रहा है, जिससे लगभग हर एशियाई देश की यात्रा पहले की तुलना में ज्यादा खर्चीली हो गई है.
X (ट्विटर) पर हमें फॉलो कर पढ़ें खबरें सबसे पहले, क्लिक करें
सिर्फ यात्रा नहीं, रोजमर्रा की जिंदगी भी होगी प्रभावित
रुपया गिरने से यह सिर्फ विदेशी पढ़ाई और यात्रा तक सीमित नहीं रहता. हमारे घर में उपयोग होने वाली बड़ी संख्या में वस्तुएं आयातित कच्चे माल या विदेशी मशीनरी पर निर्भर हैं. जैसे - स्मार्टफोन, लैपटॉप, कार के पार्ट्स, दवाईयां, टीवी, इलेक्ट्रॉनिक्स, खाद्य तेल आदि. कोटक सिक्योरिटीज के करेंसी और कमोडिटी प्रमुख अनिंद्य बनर्जी के अनुसार, उपभोक्ता और परिवार वास्तव में देश के सबसे बड़े अप्रत्यक्ष आयातक हैं क्योंकि जीवन में इस्तेमाल होने वाली अधिकतर वस्तुओं में आयात की हिस्सेदारी छिपी होती है. इसलिए रुपया कमजोर होने पर बाजार में वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं और इससे घरेलू मांग प्रभावित हो सकती है.
अच्छी बात - अभी महंगाई नियंत्रण में है
राहत की बात यह है कि अभी खुदरा महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर कम है - अक्टूबर में 0.25%. हालांकि RBI का अनुमान है कि रुपये में 5% कमजोरी से महंगाई लगभग 35 आधार अंक बढ़ सकती है. यानी यदि गिरावट जारी रही तो आने वाले महीनों में रोज़मर्रा की वस्तुएं भी महंगी होने लगेंगी.
कैसे बचाएं खुद को रुपये की गिरावट से?
जो लोग भविष्य में डॉलर या किसी विदेशी मुद्रा में भुगतान करने वाले हैं - जैसे विदेश में पढ़ाई की योजना वाले माता-पिता - उनके लिए उतार-चढ़ाव बड़ा सिरदर्द बन सकता है. पूरी तरह जोखिम हटाना संभव नहीं है, लेकिन कुछ सोच-समझकर की गई निवेश रणनीतियां मदद कर सकती हैं. वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार, खुद को सुरक्षित करने के लिए डॉलर आधारित संपत्तियों में निवेश एक अच्छा विकल्प है. जैसे - विदेशी शेयरों या ETFs में निवेश, डॉलर आधारित फंड, अंतरराष्ट्रीय म्यूचुअल फंड, गोल्ड ETF (क्योंकि गोल्ड अक्सर डॉलर के साथ मजबूत होता है).
RBI की Liberalised Remittance Scheme (LRS) के तहत हर भारतीय नागरिक साल में 2,50,000 डॉलर तक विदेश भेज सकता है - पढ़ाई, मेडिकल ट्रीटमेंट, यात्रा, विदेशी शेयर बाजार में निवेश, अन्य स्वीकृत लेन-देन के लिए. विशेषज्ञों के अनुसार, जिन लोगों के बच्चों को भविष्य में विदेश भेजने की योजना है, उन्हें वित्तीय लक्ष्य के अनुसार जल्द निवेश शुरू करना चाहिए और स्टैगर (किस्तों में) निवेश बेहतर होता है ताकि उतार-चढ़ाव का जोखिम कम हो सके.
रुपये की कमजोरी सिर्फ आर्थिक खबर नहीं है - यह शिक्षा, यात्रा, रोजगार, उपभोक्ता वस्तुओं और रोजमर्रा के खर्चों को प्रभावित करने वाला व्यापक मुद्दा है. कुल मिलाकर ऐसी परिस्थितियों में सोच-समझकर निवेश, डॉलर आधारित संपत्तियों का हिस्सा बढ़ाना और खर्च योजनाओं को समय पर समायोजित करना ही सबसे बेहतर सुरक्षात्मक रणनीति है.





