अपनों का नाम लेने से क्यों कतरा रहा पाकिस्तान? तहव्वुर राणा को बताया कनाडाई; पढ़ें पाक मीडिया ने क्या लिखा?
अमेरिका द्वारा तहव्वुर राणा को भारत को सौंपे जाने के बाद पाकिस्तान ने उससे पल्ला झाड़ लिया है. पाकिस्तानी मीडिया और सरकार उसे कनाडाई नागरिक बताकर अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं. जबकि राणा का लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ाव और डेविड हेडली से संबंध जगजाहिर हैं. यह घटनाक्रम पाकिस्तान की आतंकवाद पर दोहरी नीति और अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचने की कोशिश को उजागर करता है.;
अमेरिका ने जब तहव्वुर राणा को भारत को सौंपा, तो यह सिर्फ कानूनी कार्रवाई नहीं थी, बल्कि 26/11 के पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में एक ठोस संदेश था. राणा, जो अब भारत में आतंकवाद, हत्या और जालसाजी जैसे गंभीर आरोपों का सामना करेगा. अमेरिका के मुताबिक उन छह अमेरिकी नागरिकों के लिए भी जवाबदेह है, जो 2008 के मुंबई हमले में मारे गए थे. यह प्रत्यर्पण वर्षों से लंबित एक संवेदनशील न्यायिक प्रक्रिया का परिणाम है.
इस प्रत्यर्पण ने जहां भारत को एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत दी, वहीं पाकिस्तान में असहजता भी पैदा कर दी. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने दावा किया कि तहव्वुर राणा कनाडा का नागरिक है और पिछले 20 वर्षों से उसने कोई पाकिस्तानी दस्तावेज अपडेट नहीं कराया. इस बयान से साफ है कि पाकिस्तान आधिकारिक रूप से खुद को राणा की पहचान और भूमिका से अलग करने की कोशिश कर रहा है.
पाक मीडिया ने क्या लिखा?
दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान के मुख्यधारा मीडिया ने भी इसी रणनीति को अपनाया. Dawn और Geo TV ने इस खबर को अंतरराष्ट्रीय मीडिया के हवाले से पब्लिश किया. उन्होंने राणा को "कनाडाई नागरिक" बताते हुए, उसकी पाकिस्तानी पृष्ठभूमि पर कोई जोर नहीं दिया. उनके शब्दों में सतर्कता साफ झलकती है, जो यह संकेत देती है कि वे किसी संभावित अंतरराष्ट्रीय आलोचना से बचना चाहते हैं. इसके अलावा Samaa TV और The Express Tribune ने इस को पब्लिश ही नहीं किया है.
पाकिस्तान कर रहा पॉलिटिक्स
यह मीडिया कवरेज पाकिस्तान की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा लगती है, जहां आतंकवाद से जुड़े अपने संदिग्ध नागरिकों की पहचान से पल्ला झाड़ने की कोशिश की जाती है. तहव्वुर राणा, जिसने डेविड हेडली के साथ मिलकर लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम किया था. उसका पाकिस्तानी मूल और कट्टर आतंकी संगठनों से जुड़ाव किसी से छिपा नहीं है. बावजूद इसके, पाकिस्तान की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है.आतंकवाद पर है दोहरी नीति
अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह घटनाक्रम पाकिस्तान की आतंकवाद पर दोहरी नीति को उजागर करता है. एक ओर वह खुद को आतंक के खिलाफ लड़ने वाला देश बताता है, और दूसरी ओर अपने नागरिकों की संलिप्तता को छुपाने की कोशिश करता है. राणा का भारत प्रत्यर्पण न सिर्फ भारत के लिए कानूनी और नैतिक जीत है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वैश्विक स्तर पर अब आतंकवाद के खिलाफ सहयोग और पारदर्शिता पहले से ज्यादा ज़रूरी हो गई है.