क्या होती है डेड इकॉनमी? दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर आंकड़ों का गुणा-गणित, पढ़ें सभी सवालों के जवाब
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और रूस की अर्थव्यवस्था को 'डेड इकॉनमी' कहकर नया विवाद खड़ा कर दिया है. उनका यह बयान व्यापारिक टैरिफ और अमेरिकी हितों की राजनीति से प्रेरित माना जा रहा है. विशेषज्ञ इसे तथ्यहीन और अपमानजनक करार देते हैं, जो आर्थिक नहीं बल्कि राजनैतिक दबाव की रणनीति है. जानिए ‘डेड इकॉनमी’ का असली अर्थ और किन देशों पर यह सच में लागू होता है.;
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और रूस को लेकर एक विवादित बयान देते हुए दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को 'डेड इकोनॉमी' करार दिया. इसके बाद से काफी बवाल मचा है. ट्रंप ने टैरिफ नीति पर भारत के रुख को लेकर अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि भारत और रूस क्या कर रहे हैं, वे चाहें तो अपनी निष्क्रिय अर्थव्यवस्थाओं को गर्त में ले जा सकते हैं. ट्रंप का यह बयान उनके पुराने व्यापारिक रवैये और अमेरिका-प्रथम नीति की झलक दिखाता है.
'डेड इकोनॉमी' कोई तकनीकी या मान्य आर्थिक शब्द नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक बयानबाजी में प्रयोग किया जाने वाला एक असंवेदनशील और आलोचनात्मक शब्द है. इसका अर्थ ऐसी अर्थव्यवस्था से लिया जाता है जो विकासहीन, बेरोजगारी से ग्रस्त, और व्यापारिक दृष्टि से निष्क्रिय हो. आर्थिक विशेषज्ञ इसे एक राजनीतिक प्रतिक्रिया मानते हैं, जिसका कोई वास्तविक आर्थिक आधार नहीं है, बल्कि यह अधिकतर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा होता है. आइए जानते हैं कि आखिर ये डेड इकॉनमी क्या होती है...
क्या होती है डेड इकॉनमी?
डेड इकॉनमी एक ऐसा शब्द है जो किसी देश की उस आर्थिक स्थिति को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जहां आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप हो चुकी हों. इसका अर्थ केवल मंदी नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था का लगभग मृतप्राय: हो जाना है. जब देश में उत्पादन रुक जाता है, कारोबारी गतिविधियां बंद हो जाती हैं और सरकार के पास भी आर्थिक संसाधन नहीं बचते, तब उस देश की अर्थव्यवस्था को “डेड इकॉनमी” कहा जाता है. ये स्थिति केवल आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संकट भी पैदा करती है, जहां सरकारें चाहकर भी अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा नहीं कर पातीं.
डेड इकॉनमी का कैसे चलता है पता?
इस स्थिति में देश के भीतर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक तीनों स्तरों पर भारी असंतुलन पैदा हो जाता है. प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं:
- उद्योग-धंधे बंद हो जाते हैं, जिससे उत्पादन और रोजगार दोनों प्रभावित होते हैं
- बेरोजगारी दर बहुत अधिक हो जाती है, लाखों लोग काम की तलाश में होते हैं लेकिन अवसर नहीं मिलते
- विदेशी निवेश रुक जाता है, जिससे अर्थव्यवस्था को मिलने वाली विदेशी मुद्रा और तकनीकी सहयोग समाप्त हो जाता है
- सरकार के पास खर्च करने के लिए संसाधन नहीं होते, जिससे वह जनकल्याण योजनाओं को भी जारी नहीं रख पाती
- लोगों की आय, खर्च और खरीदने की क्षमता बेहद कम हो जाती है, जिससे आंतरिक बाज़ार भी चरमरा जाता है
- महंगाई या हाइपरइन्फ्लेशन इतनी ज़्यादा हो जाती है कि ज़रूरी चीजें भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाती हैं
यह स्थिति न केवल आर्थिक संकट है, बल्कि यह लोगों की जीवन गुणवत्ता, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को भी सीधा प्रभावित करती है.
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डेड इकॉनमी वाले देशों के हालात
2025 तक डेड इकॉनमी के कुछ ज्वलंत उदाहरण निम्नलिखित हैं:
- वेनेज़ुएला: एक समय पर समृद्ध तेल अर्थव्यवस्था वाला यह देश अब आर्थिक तबाही का प्रतीक बन चुका है. गलत आर्थिक नीतियों, भ्रष्टाचार, अमेरिकी प्रतिबंधों और राजनीतिक अस्थिरता ने वेनेज़ुएला को उस स्थिति में ला खड़ा किया है जहां लोग खाने-पीने तक के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हाइपरइन्फ्लेशन इतना बढ़ चुका है कि मुद्रा का मूल्य लगभग समाप्त हो गया है.
- जिम्बाब्वे: यहां भी भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता परिवर्तन ने देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया. ज़मीन अधिग्रहण जैसे विवादित फैसलों के कारण कृषि उत्पादन और औद्योगिक विकास पूरी तरह रुक गए. जिम्बाब्वे में एक समय पर 1 मिलियन प्रतिशत से भी ज़्यादा महंगाई दर दर्ज की गई थी.
- सीरिया और लेबनान: लंबे समय से जारी गृहयुद्ध, विदेशी हस्तक्षेप और शासन तंत्र की असफलता ने इन देशों की रीढ़ तोड़ दी है. लेबनान की अर्थव्यवस्था 2020 के बाद से लगातार गिर रही है, बैंकिंग सेक्टर ध्वस्त हो चुका है, और महंगाई चरम पर है. सीरिया में भी सैन्य संघर्ष ने उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे सभी क्षेत्रों को जड़ से हिला दिया है.
क्या डेड इकॉनमी से निकल पाना संभव है?
डेड इकॉनमी से उबरना बेहद कठिन, लेकिन नामुमकिन नहीं है. इसके लिए देश को तीन स्तरों पर काम करना होता है:
- राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करना
- संस्थागत पारदर्शिता और सुशासन को मजबूत करना
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग और पुनर्निर्माण योजनाओं को लागू करना
विश्व बैंक, IMF और अन्य वैश्विक संस्थाएं अक्सर ऐसे देशों की मदद करती हैं, लेकिन सफलता तभी मिलती है जब देश के भीतर भी नेतृत्व ईमानदारी और दूरदर्शिता से फैसले ले.
F&Q: डेड इकॉनमी से जुड़े कुछ ज़रूरी सवाल
Q1. क्या हर आर्थिक संकट डेड इकॉनमी बन जाता है?
नहीं, मंदी या आर्थिक संकट से जूझना अलग बात है. डेड इकॉनमी तब होती है जब कोई देश उससे उबरने की क्षमता भी लगभग खो देता है.
Q2. क्या भारत जैसे देश डेड इकॉनमी की श्रेणी में आ सकते हैं?
भारत जैसी बड़ी, विविध और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के लिए ऐसा होना फिलहाल संभव नहीं दिखता, लेकिन ग़लत नीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता से कोई भी देश कमजोर हो सकता है.
Q3. क्या AI, टेक्नोलॉजी या नया निवेश डेड इकॉनमी को फिर से जिंदा कर सकता है?
अगर देश में राजनीतिक स्थिरता और पारदर्शिता हो तो विदेशी निवेश और टेक्नोलॉजी मदद कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए भरोसा और संस्थागत सुधार ज़रूरी हैं.
Q4. आम जनता को इस स्थिति से कैसे बचाया जा सकता है?
अशिक्षा, भ्रष्टाचार, और तानाशाही जैसे कारणों को जड़ से हटाकर जनता की भागीदारी से मजबूत लोकतंत्र ही देश को ऐसी किसी आर्थिक मौत से बचा सकता है.