अमेरिकी सरकार को WhatsApp से लगता है डर, ईरान की तरह ट्रंप क्‍यों लगा रहे पाबंदी?

अमेरिकी सरकार ने सुरक्षा चिंताओं के चलते व्हाट्सएप को सभी सरकारी स्टाफ डिवाइसेज़ से बैन कर दिया है. साइबर सुरक्षा विभाग के अनुसार, डेटा संरक्षण में पारदर्शिता की कमी और संभावित खतरे इसके पीछे कारण हैं. ट्रंप प्रशासन की यह सख्ती ईरान जैसे फैसलों की याद दिला रही है. मेटा ने इस प्रतिबंध का विरोध किया है.;

WhatsApp America: दुनिया की सबसे लोकप्रिय मैसेजिंग ऐप्स में से एक WhatsApp को अमेरिका की निचली संसद हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने बड़ा झटका दिया है. संसद ने सुरक्षा चिंताओं के चलते इस एप्लिकेशन को आधिकारिक स्टाफ डिवाइसों पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित कर दिया है. यह फैसला अमेरिकी सरकार की तकनीकी पारदर्शिता और डेटा सुरक्षा को लेकर बढ़ती सतर्कता को दर्शाता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के रिपोर्ट के अनुसार, हाउस के सभी कर्मचारियों को सोमवार, 23 जून को एक आधिकारिक साइबर सुरक्षा मेमो भेजा गया, जिसमें बताया गया कि WhatsApp को 'उच्च जोखिम' वाला प्लेटफॉर्म माना गया है. मेमो के मुताबिक, यह प्रतिबंध डेटा संरक्षण में पारदर्शिता की कमी, एन्क्रिप्शन की अनुपस्थिति और संभावित सुरक्षा खतरों के चलते लगाया गया है.

व्हाट्सएप की जगह ये ऐप्स सुझाए गए

हाउस की साइबर सुरक्षा टीम ने कर्मचारियों को Microsoft Teams, Amazon Wickr, Signal, iMessage और FaceTime जैसे ऐप्स इस्तेमाल करने की सलाह दी है. ये सभी प्लेटफॉर्म यूज़र डेटा की सुरक्षा में अधिक भरोसेमंद माने जाते हैं.

मेटा का विरोध: “यह फैसला गलत और अनुचित है”

Meta (मेटा) ने इस फैसले का तीखा विरोध किया है। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि हम इस निर्णय से पूरी तरह असहमत हैं. WhatsApp का एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन कई अन्य स्वीकृत विकल्पों की तुलना में कहीं अधिक सुरक्षा देता है. हालांकि हाउस की साइबर टीम का कहना है कि WhatsApp में स्टोर किए गए डेटा की सुरक्षा को लेकर गंभीर खामियां हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकती हैं.

पहले भी लगे हैं सुरक्षा पर सवाल

यह पहला मौका नहीं है जब WhatsApp की सुरक्षा पर सवाल उठे हैं. जनवरी 2024 में, एक अधिकारी ने स्वीकार किया था कि इजरायली कंपनी Paragon Solutions के स्पाइवेयर ने कई पत्रकारों और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया था.

टेलीग्राम से जुड़ी चूक के बाद बढ़ी सतर्कता

यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब हाल ही में एक विदेशी समाचार एजेंसी के संपादक को गलती से अमेरिकी सरकार से जुड़ी एक संवेदनशील टेलीग्राम ग्रुप में जोड़ दिया गया था. इससे कुछ आंतरिक चर्चाएं लीक होने की आशंका जताई गई. इस घटना के बाद अमेरिकी संसद ने सभी थर्ड-पार्टी मैसेजिंग प्लेटफॉर्म की समीक्षा तेज कर दी थी.

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