PM को छोड़ जनरल को बुलाया ट्रंप ने, पाकिस्तान की गजब बेइज्जती; मचा बवाल

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की व्हाइट हाउस में बंद कमरे में हुई बैठक ने पाकिस्तान में हलचल मचा दी है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अनुपस्थिति पर सवाल उठ रहे हैं, मीडिया और विश्लेषकों का मानना है कि यह मुलाकात पाकिस्तान की सेना और सिविल सरकार के बीच असंतुलन को उजागर करती है.;

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की व्हाइट हाउस में बंद कमरे में हुई बैठक ने पाकिस्तान में हलचल मचा दी है. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अनुपस्थिति पर सवाल उठ रहे हैं, मीडिया और विश्लेषकों का मानना है कि यह मुलाकात पाकिस्तान की सेना और सिविल सरकार के बीच असंतुलन को उजागर करती है.

आर्मी-इंटेलिजेंस की ‘एकल पार्टी’

इस अहम बैठक में जनरल असीम मुनीर के साथ पाकिस्तान के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइज़र और टॉप इंटेलिजेंस अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल असीम मलिक भी मौजूद थे। अमेरिकी पक्ष से ट्रंप के साथ विदेश मंत्री मार्को रुबियो और मिडल ईस्ट मामलों के विशेष प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ़ भी शामिल हुए. ISPR के मुताबिक ये मीटिंग तय समय (1 घंटे) से दोगुनी चली और पाकिस्तान को “रणनीतिक प्राथमिकता” मिलने का संकेत देती है.

व्हाइट हाउस में फौजियों की महफिल, लोकतंत्र गायब!

‘डॉन’ अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, यह पहली बार है जब किसी पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष को अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस तरह से व्यक्तिगत और उच्चस्तरीय मीटिंग के लिए बुलाया हो. इस मीटिंग की 'कैबिनेट रूम' वाली तस्वीरों ने पाकिस्तान की सिविल-मिलिट्री खाई को और गहरा कर दिया है.

भारत का तीखा वार: ‘संरचनात्मक असंतुलन’ की मिसाल

भारत के रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने ANI पॉडकास्ट में कहा, 'ये किसी भी देश के लिए शर्म की बात होनी चाहिए कि वहां का सैन्य प्रमुख व्हाइट हाउस बुलाया जाए और प्रधानमंत्री नदारद हो.”

उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान एक ऐसा देश बन चुका है जहां सेना ही संसाधनों पर पहला अधिकार जताती है. सिंह के मुताबिक, ये पूरी बैठक पाकिस्तानी लोकतंत्र के खोखलेपन की गवाही देती है.

'भारत 30 साल में जो न कर सका, वो हम 3 दिन में कर आए'i

पाकिस्तानी सेना के मीडिया विंग ISPR ने इस बैठक को बड़ी कूटनीतिक जीत बताया और कहा, “भारत 30 साल में अमेरिका से जो नहीं ले सका, वो पाकिस्तान ने 3 दिन में हासिल कर लिया।” हालांकि, पाकिस्तान के ही विश्लेषकों और पत्रकारों का मानना है कि ये जीत नहीं, एक गहरी चिंता की बात है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या पाकिस्तान में फौज अब खुलकर सियासत को बायपास कर रही है? और क्या अमेरिकी प्रशासन भी अब लोकतांत्रिक संस्थानों की बजाय सीधे सैन्य नेतृत्व से संवाद पसंद कर रहा है?

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