नाइटक्लब की रोशनी से पोप की पवित्रता तक.... Jorge Mario Bergoglio के बाउंसर से धर्मगुरु बनने की अविश्वसनीय कहानी
पोप फ्रांसिस का 88 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने 21 अप्रैल को आखिरी सांस ली. उनके निधन से दुनिया में शोक का माहौल है. वे रोमन कैथोलिक चर्च के पहले लैटिन अमेरिकी पोप थे, जो अपनी सादगी और सेवा भाव के लिए जाने जाते थे. आइए, आपको एक नाइटक्लब बाउंसर Jorge Mario Bergoglio के पोप फ्रांसिस बनने तक की कहानी बताते हैं...;
Pope Francis priesthood journey of Jorge Mario Bergoglio: पोप फ्रांसिस अब इस दुनिया में नहीं हैं. उन्होंने ईस्टर के दिन इस दुनिया को अलविदा कहा. वे 88 साल के थे. उन्हें 18 फरवरी को डबल निमोनिया होने की वजह से डॉक्टरों की विशेष निगरानी में रखा गया था. उन्होंने 21 अप्रैल को सुबह 7 बजकर 35 मिनट पर आखिरी सांस ली.
पोप फ्रांसिस के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गहरा दुख व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि पोप फ्रांसिस को दुनिया भर के लाखों लोग हमेशा करुणा, विनम्रता और आध्यात्मिक साहस के प्रतीक के रूप में याद रखेंगे. छोटी उम्र से ही उन्होंने प्रभु ईसा मसीह के आदर्शों को साकार करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया था. उन्होंने गरीबों और वंचितों की लगन से सेवा की.
कौन थे पोप फ्रांसिस?
- पोप फ्रांसिस का असली नाम Jorge Mario Bergoglio था. उनका जन्म 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में हुआ. उनके पिता Mario José Bergoglio अकाउंटेंट थे, जबकि माता Regina María Sivori भी इटली अप्रवासियों की बेटी थी. फ्रांसिस चार भाई-बहनों में सबसे बड़े थे.
- फ्रांसिस ने रसायन विज्ञान की पढ़ाई की और तकनीकी डिप्लोमा प्राप्त कर रासायनिक प्रयोगशाला में तकनीशियन के रूप में काम किया. इसके अलावा, अनुशासन सीखने के लिए उन्होंने नाइटक्लब में बाउंसर, स्कूल में अध्यापक और सफाई कर्मचारी जैसी नौकरियां भी कीं. इन अनुभवों ने उनके नेतृत्व में दया और धैर्य जैसे गुणों को पनपने में मदद की.
- 11 मार्च 1958 को जेसुइट समाज में शामिल होकर अपनी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ की. उन्हें 1969 में पादरी बनाया गया. वे 2013 में इतिहास रचते हुए पहले लैटिन अमेरिकी एवं पहले जेसुइट पोप के रूप में चुने गए.
- अपने विनम्र चरित्र, गरीबी के प्रति संवेदनशीलता और सामाजिक न्याय के लिए काम करने वाले दृष्टिकोण के कारण वे आधुनिक कैथोलिक चर्च में नए युग के अग्रदूत माने जाते हैं.
- 13 दिसंबर 1969 को उन्हें जेसुइट पादरी के रूप में नियुक्त किया गया, और अगले दशक में वे अर्जेंटीना में जेसुइट प्रांत के प्रांतिक प्रधान बने, जब देश एक दमनकारी तानाशाही से गुज़र रहा था
- 13 मार्च 2013 को उन्होंने पोप बेनेडिक्ट XVI के विकल्प के बाद पोप चुने जाने पर ‘फ्रांसिस’ नाम अपनाया, जो संत फ्रांसिस ऑफ़ असिस के प्रति उनकी भक्ति दर्शाता है .
- वे आधुनिक कैथोलिक चर्च में पहले लैटिन अमेरिकी, पहले जेसुइट और पहले गैर-यूरोपीय पोप थे, जिन्होंने पवित्र अपोस्टोले पदभार संभाला. उनकी सरलता, गरीबों के प्रति समर्पण और सामाजिक न्याय के लिए अटूट प्रतिबद्धता ने उन्हें विश्व भर में लोकप्रिय बनाया.
- 18 फरवरी 2025 को उन्हें डबल निमोनिया हुआ, जिसके बाद उन्होंने वेटिकन में संपूर्ण इलाज करवाया.
- कार्डिनल केविन फैरेल ने 21 अप्रैल 2025 की सुबह 7:35 बजे उनका निधन होने की घोषणा की, जिसके बाद कैथोलिक चर्च में नए पोप के चयन की प्रक्रिया (‘पेपल कंफलिक्ट’) आरंभ हो गई.
- पोप फ्रांसिस के निधन ने न केवल एक युग का अंत किया बल्कि गरीबी, पर्यावरण और मानवाधिकारों के प्रति उनके दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने की चुनौती भी दे गई.