बच्चा पैदा करो और पैसा पाओ! Russian और स्कूल गर्ल्स की प्रेग्नेंसी पर मिल रहा लाखों का इनाम
रूस में गिरती जन्म दर से निपटने के लिए सरकार ने एक नई और विवादास्पद योजना शुरू की है, जिसके तहत अब गर्भवती स्कूली छात्राओं को 1 लाख रूबल (लगभग ₹85,000) की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है ताकि वे बच्चे को जन्म दें और उसका पालन-पोषण करें. यह योजना पहले केवल वयस्क महिलाओं पर लागू थी लेकिन अब इसे देश के दस से अधिक क्षेत्रों में किशोरियों तक बढ़ा दिया गया है.;
रूस में गिरती जन्म दर से निपटने के लिए सरकार ने एक नई और विवादास्पद योजना शुरू की है, जिसके तहत अब गर्भवती स्कूली छात्राओं को 1 लाख रूबल (लगभग ₹85,000) की प्रोत्साहन राशि दी जा रही है ताकि वे बच्चे को जन्म दें और उसका पालन-पोषण करें. यह योजना पहले केवल वयस्क महिलाओं पर लागू थी लेकिन अब इसे देश के दस से अधिक क्षेत्रों में किशोरियों तक बढ़ा दिया गया है.
सरकार का यह कदम जनसांख्यिकीय संकट से उबरने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है. रूस की प्रजनन दर 2023 में महज 1.41 थी, जो जनसंख्या बनाए रखने के लिए जरूरी 2.05 के स्तर से काफी नीचे है. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस मुद्दे को राष्ट्रीय प्राथमिकता बता चुके हैं और जनसंख्या वृद्धि को सैन्य ताकत व क्षेत्रीय विस्तार से जोड़कर देख रहे हैं.
गर्भवती नाबालिगों को नकद सहायता, लेकिन भारी विरोध
इस योजना पर रूस की जनता दो भागों में बंटी हुई है. रूसी जनमत अनुसंधान केंद्र की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, 43% लोग इस नीति के पक्ष में हैं जबकि 40% इसका विरोध कर रहे हैं. आलोचकों का कहना है कि यह योजना नैतिक संकट पैदा कर सकती है क्योंकि यह किशोरावस्था में मातृत्व को बढ़ावा देती है. वहीं समर्थकों का मानना है कि देश को जनसंख्या गिरावट से बचाने के लिए यह कदम जरूरी है, चाहे वह असहज क्यों न लगे. युद्ध और पलायन के कारण लाखों युवा पुरुषों की कमी भी जनसंख्या संकट को और गहरा बना रही है.
'माँ बनो' का दबाव और पुरानी नीतियों की वापसी
रूस सरकार ने केवल आर्थिक मदद तक ही सीमित नहीं रहते हुए नैतिक दबाव भी बढ़ा दिया है। महिलाओं को 10 या उससे अधिक बच्चों पर 'मदरहुड मेडल' से नवाजा जा रहा है, निजी क्लीनिकों में गर्भपात पर रोक लगाई जा रही है और ‘चाइल्ड फ्री’ जीवनशैली को बढ़ावा देने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है. महिलाओं को करियर और शिक्षा के स्थान पर मातृत्व को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. समाज में ऐसे महिलाओं की आलोचना भी बढ़ रही है जो देर से शादी करती हैं या बच्चे नहीं चाहतीं.
वैश्विक स्तर पर भी दिख रही है ऐसी प्रवृत्ति
रूस की तरह ही कई अन्य देश भी जनसंख्या संकट से जूझ रहे हैं. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने महिलाओं को एक बच्चा पैदा करने पर $5,000 देने का प्रस्ताव रखा है। हंगरी में तीन या उससे अधिक बच्चों वाले परिवारों को टैक्स छूट और सब्सिडी वाले होम लोन दिए जाते हैं. पोलैंड दूसरे बच्चे से ₹9,000 मासिक देती है. हालांकि इन योजनाओं का असर मिला-जुला रहा है. उच्च आय वर्ग की महिलाएं कैरियर हानि के डर से इन योजनाओं के प्रति उत्साहित नहीं हो रही हैं.
महिलाओं की आज़ादी बनाम सरकारी जनसंख्या एजेंडा
विशेषज्ञों का कहना है कि कई देशों की प्रोनैटल (जनसंख्या बढ़ाने वाली) नीतियों के पीछे आर्थिक नहीं बल्कि वैचारिक सोच छुपी होती है. सरकारें अक्सर उन्हीं समूहों में जन्म दर बढ़ाना चाहती हैं जिन्हें वे ‘वांछनीय’ मानती हैं जैसे धर्म, जाति या आर्थिक स्थिति के आधार पर. हंगरी में केवल उच्च आय वर्ग के विषमलैंगिक जोड़ों को लाभ मिलता है, जबकि स्पेन में स्पेनिश भाषी कैथोलिक प्रवासियों को नागरिकता आसानी से दी जा रही है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सरकारें महिलाओं के गर्भ से समाज को आकार देना चाहती हैं?