Bakrid 2025: पाकिस्‍तान में अहमदिया मुसलमानों को क्‍यों नहीं है बकरीद मनाने की इजाजत?

पाकिस्तान की मरियम नवाज सरकार ने अहमदिया मुसलमानों को बकरीद मनाने से रोक दिया है. कुर्बानी, नमाज और इस्लामी रस्मों पर पाबंदी लगाई गई है. हलफनामा भरवाकर चेतावनी दी गई है कि उल्लंघन पर जुर्माना और सजा होगी. संविधान की धाराओं के तहत अहमदियों को गैर-मुस्लिम घोषित किया गया है, जिससे उनकी धार्मिक स्वतंत्रता लगातार कुचली जा रही है.;

Curated By :  नवनीत कुमार
Updated On : 5 Jun 2025 1:49 PM IST

पंजाब की मरियम नवाज सरकार ने अहमदिया मुसलमानों के लिए बकरीद पर नई बंदिशें लगा दी हैं. सरकार के निर्देशों के अनुसार, अगर इस समुदाय के सदस्य कुर्बानी या ईद की नमाज जैसे धार्मिक कार्यों में भाग लेते हैं, तो उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा. कई जिलों में अहमदियों से शपथ पत्र भरवाए जा रहे हैं कि वे घर के अंदर भी इस्लामी रस्में नहीं निभाएंगे, और उल्लंघन पर ₹5 लाख जुर्माने की चेतावनी दी गई है.

लाहौर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने पंजाब पुलिस को पत्र लिखकर सख्त निर्देश दिए कि अहमदियों को ईद के दिन कोई धार्मिक आयोजन न करने दिया जाए. बार का तर्क है कि यह "सिर्फ मुसलमानों का पर्व" है और अहमदिया इसे मनाकर मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को आहत करते हैं. इस पत्र के बाद कई अहमदियों को पहले ही गिरफ्तारी और कानूनी कार्रवाई की धमकी दी गई है.

अहमदिया क्यों नहीं मना सकते बकरीद?

पाकिस्तानी संविधान में 1974 के संशोधन के तहत अहमदिया समुदाय को "गैर-मुस्लिम" घोषित कर दिया गया था. इसके चलते उन्हें इस्लामी प्रतीकों के प्रयोग, नमाज पढ़ने और कुरान पढ़ने जैसे बुनियादी धार्मिक कार्यों से भी वंचित कर दिया गया. सरकार और इस्लामी संस्थाएं इस आधार पर अहमदियों को बकरीद जैसे त्योहार मनाने से रोकती हैं कि वे "कानूनी तौर पर मुसलमान नहीं हैं."

क्या कहता पाकिस्तानी कानून?

पाकिस्तानी दंड संहिता की धारा 298-B और 298-C अहमदिया समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर सख्त पाबंदी लगाती है. ये धाराएं उन्हें इस्लामी प्रतीकों के इस्तेमाल और अपने धर्म को इस्लाम जैसा दिखाने से रोकती हैं. पिछले वर्षों में 36 अहमदियों की गिरफ्तारी, 100 से ज्यादा कब्रों को तोड़ा जाना और धार्मिक पहचान छुपाने को मजबूर किया जाना, इस उत्पीड़न की गवाही देते हैं.

मानवाधिकार समूहों का विरोध और अंतरराष्ट्रीय चिंता

मानवाधिकार संगठनों ने पाकिस्तान सरकार के इन आदेशों को खुला भेदभाव करार दिया है. उनके अनुसार, यह अहमदिया समुदाय के धार्मिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता मानकों के खिलाफ है. पाकिस्तान में लगभग 20 लाख अहमदिया मुसलमान हैं, जो लगातार कट्टरपंथी ताकतों और सरकारी भेदभाव के बीच संघर्ष कर रहे हैं.

जबरन भरवाया गया शपथ पत्र

पंजाब सरकार द्वारा अहमदियों से शपथ पत्र भरवाने की मांग को लेकर कानूनी विशेषज्ञों ने भी सवाल खड़े किए हैं. उनका कहना है कि निजी रूप से धार्मिक आयोजन करना कानूनन अपराध नहीं है, और ऐसे शपथ पत्र थोपना संविधान और मानवाधिकार दोनों के खिलाफ है. इस्लामी बहुसंख्यक भावना को लेकर की जा रही ऐसी कार्रवाई धार्मिक सहिष्णुता को कमजोर करती है और पाकिस्तान की वैश्विक छवि को भी नुकसान पहुंचाती है.

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