पाकिस्तान की जनता चाहती है युद्ध? इस Video को देख चकरा जाएगा आपका भी दिमाग

इस्लामाबाद की लाल मस्जिद एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार वजह है मौलाना अब्दुल अज़ीज़ गाजी का युद्ध संबंधी सवाल, जिसका जवाब किसी ने नहीं दिया. भारत के खिलाफ समर्थन मांगने पर आई खामोशी ने कट्टरपंथ के ढांचे को झकझोर दिया है. पाकिस्तानी समाज अब जिहाद नहीं, दो वक्त की रोटी और स्थिरता चाहता है. यह बदलाव पाकिस्तान की वैचारिक बुनियाद में दरार का संकेत है.;

Edited By :  नवनीत कुमार
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पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की लाल मस्जिद एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार जिहादी नारे या धार्मिक कट्टरता की वजह से नहीं, बल्कि एक भारी चुप्पी के कारण. मौलाना अब्दुल अज़ीज़ गाजी ने जब अपने समर्थकों से पूछा कि अगर पाकिस्तान भारत से युद्ध करे तो क्या वे उसका साथ देंगे, तो सभा में एक भी हाथ नहीं उठा. इस वीडियो को देखने के बाद लोग कह रहे हैं कि अब भारत के प्रति लोगों का प्रेम तो देखिए.

यह सवाल ऐसे समय में पूछा गया जब पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. लेकिन इस बार देश की जनता का मूड अलग है. युद्ध का जज़्बा, जो पहले मस्जिदों और मंचों से उबलता था, अब खामोशी में डूब चुका है. पाकिस्तानी समाज अब धार्मिक उन्माद से ज़्यादा अपने ही हालातों से जूझ रहा है. और जनता के अंदर युद्ध की नहीं शांति से चार रोटी खाने खाने और अपना काम करने की चाहत है.

पाकिस्तान की व्यवस्था है बेकार 

गाजी की निराशा भी इस बदलाव का संकेत है. उन्होंने मंच से खुलकर कहा कि आज पाकिस्तान की व्यवस्था भारत से भी अधिक क्रूर और बेकार हो चुकी है. उन्होंने बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में राज्य द्वारा किए गए दमनात्मक अभियानों की आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि जब लोग सरकार के खिलाफ खड़े हुए, तो सेना ने अपने ही नागरिकों पर बमबारी की.

वायरल वीडियो से मची खलबली

वायरल वीडियो ने पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर खलबली मचा दी है. यह घटना न सिर्फ कट्टरपंथी धार्मिक वर्ग की पकड़ में गिरावट को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि अब पाकिस्तानी नागरिक भारत विरोधी भावनाओं के नाम पर लड़ने को तैयार नहीं हैं. यह एक वैचारिक दरार है जो पहले धार्मिक राष्ट्रवाद से ढकी हुई थी.

पाक को अंदर के लोगों से ही है खतरा

विश्लेषकों के अनुसार यह क्षण पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में एक गंभीर मोड़ का संकेत है. जब लाल मस्जिद जैसे प्रतीकात्मक स्थल पर भी भारत के खिलाफ युद्ध का समर्थन नहीं मिलता, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि देश अब बाहरी दुश्मनों से ज़्यादा अपने अंदरूनी टूटन और भ्रम से लड़ रहा है. भारत को लेकर डराने की रणनीति अब घर में ही अनसुनी हो रही है.

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