हमारे शरीर से निकलती है हल्की रोशनी, मौत के साथ हो जाती है खत्म; शोध में चौंकाने वाला खुलासा

हालिया शोध में खुलासा हुआ है कि मानव शरीर और अन्य जीवित प्राणी हल्की रोशनी (biophoton) उत्सर्जित करते हैं, जो मृत्यु के साथ गायब हो जाती है. इसे Ultraweak Photon Emission (UPE) कहा जाता है और यह कोशिकाओं की मेटाबॉलिक गतिविधियों और ROS अणुओं से उत्पन्न होती है. शोध में चूहों और पौधों पर प्रयोग किया गया, जिससे साबित हुआ कि घायल या तनावग्रस्त हिस्सों से ज्यादा रोशनी निकलती है. भविष्य में इसका उपयोग चिकित्सा, कृषि और पर्यावरण निगरानी में हो सकता है.;

( Image Source:  Sora AI )
Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On :

मानव शरीर और जीवित प्राणियों को लेकर विज्ञान की खोजें लगातार नए रहस्य खोल रही हैं. अब एक ताज़ा शोध ने यह चौंकाने वाला खुलासा किया है कि इंसान का शरीर हल्की-सी दृश्यमान रोशनी (Visible Light) उत्सर्जित करता है, जो जीवन के साथ जुड़ी होती है और मृत्यु के क्षण में पूरी तरह गायब हो जाती है.

यह अध्ययन द जर्नल ऑफ फिजिकल केमिस्ट्री लेटर्स में प्रकाशित हुआ है और इसे कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगरी तथा नेशनल रिसर्च काउंसिल ऑफ कनाडा के वैज्ञानिकों ने अंजाम दिया है.

क्या है ‘बायोफोटॉन’ फिनॉमिना?

इस अद्भुत प्रक्रिया को अल्ट्रा वीक फोटॉन एमिशन (Ultraweak Photon Emission – UPE) या बायोफोटॉन उत्सर्जन कहा जाता है. इसका अर्थ यह है कि सभी जीवित कोशिकाएँ बेहद हल्के प्रकाश कण (फोटॉन्स) उत्सर्जित करती हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, ये कण कोशिकाओं के भीतर चल रही मेटाबॉलिक गतिविधियों और विशेष रूप से Reactive Oxygen Species (ROS) नामक अणुओं से जुड़ी रासायनिक प्रतिक्रियाओं के दौरान पैदा होते हैं.

ये प्रकाश कण 200 से 1000 नैनोमीटर तक की तरंग दैर्ध्य (wavelength) रखते हैं. इंसानी आंख इन्हें नहीं देख सकती, क्योंकि इनकी चमक बेहद कमजोर होती है. इन्हें देखने और दर्ज करने के लिए Electron-Multiplying Charge-Coupled Device (EMCCD) जैसी अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना पड़ता है.

वैज्ञानिक पहले भी गाय के हृदय की कोशिकाओं, बैक्टीरिया और अन्य ऊतक नमूनों में इस तरह की हल्की रोशनी दर्ज कर चुके थे. मगर यह पहला मौका है जब पूरे जीवित प्राणियों और उनकी मृत अवस्था के बीच तुलना की गई है.

कैसे किया गया प्रयोग?

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चार चूहों और दो पौधों की प्रजातियों – थेल क्रेस (Arabidopsis thaliana) और ड्वार्फ अंब्रेला ट्री (Heptapleurum arboricola) – पर प्रयोग किया. चूहों को पहले एक अंधेरे डिब्बे (dark box) में रखा गया और एक घंटे तक उनके शरीर से निकलने वाले प्रकाश को रिकॉर्ड किया गया. इसके बाद उन्हें कृत्रिम रूप से मृत कर दिया गया और फिर से एक घंटे तक इमेजिंग की गई. इस दौरान उनके शरीर का तापमान नियंत्रित रखा गया ताकि गर्मी से जुड़े किसी भी भौतिक असर को न गिना जाए. परिणाम साफ थे - जीवित चूहों के शरीर से हल्की रोशनी निकल रही थी, लेकिन जैसे ही वे मरे, फोटॉन उत्सर्जन तेजी से घट गया और लगभग शून्य पर पहुंच गया. इसी तरह पौधों की पत्तियों को भी अलग-अलग परिस्थितियों में परखा गया. पत्तियों को हल्का काटकर या रासायनिक तत्वों के संपर्क में लाकर उनमें तनाव (stress) पैदा किया गया. उसके बाद 16 घंटे तक उनकी इमेजिंग की गई. शोधकर्ताओं ने पाया कि “घायल हिस्सों से निकलने वाली रोशनी स्वस्थ हिस्सों की तुलना में लगातार ज्यादा तेज थी. यह फर्क पूरे 16 घंटे तक देखा गया.”

प्रकाश का स्रोत: कोशिकाओं का तनाव और ROS

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह हल्की रोशनी कोशिकाओं में तनाव (stress) के दौरान अधिक पैदा होती है. जब कोशिकाएं किसी रोगाणु, गर्मी, विषैले रसायन या चोट का सामना करती हैं, तो उनमें Reactive Oxygen Species जैसे हाइड्रोजन पेरॉक्साइड जैसे अणु बनते हैं. ये अणु कोशिकाओं की चर्बी और प्रोटीन से प्रतिक्रिया करते हैं और इलेक्ट्रॉनों की हलचल से ऊर्जा मुक्त होती है. यही ऊर्जा फोटॉन के रूप में बाहर निकलती है. दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो यह रोशनी जीवित शरीर की चल रही जैव-रासायनिक गतिविधियों का प्रतीक है. जैसे ही जीवन समाप्त होता है, यह गतिविधियाँ रुक जाती हैं और रोशनी भी बुझ जाती है.

कहां हो सकता है उपयोग?

यह खोज सिर्फ वैज्ञानिक जिज्ञासा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके कई व्यावहारिक उपयोग भी हो सकते हैं.

  • चिकित्सा क्षेत्र में: अगर भविष्य में बायोफोटॉन मापने की तकनीक और विकसित होती है, तो डॉक्टर बिना शरीर को नुकसान पहुंचाए (non-invasive तरीके से) यह जांच सकते हैं कि किसी ऊतक (tissue) में तनाव या रोग है या नहीं. इससे कैंसर, अल्जाइमर या अन्य गंभीर बीमारियों की पहचान शुरुआती स्तर पर हो सकती है.
  • कृषि में: पौधों की पत्तियों से निकलने वाली रोशनी से यह पता लगाया जा सकता है कि फसल में रोग, पोषण की कमी या पर्यावरणीय खतरे (जैसे प्रदूषण या अधिक गर्मी) का असर तो नहीं हो रहा. किसान समय रहते कदम उठाकर फसल बचा सकते हैं.
  • पर्यावरण निगरानी: अगर पौधों और सूक्ष्मजीवों से निकलने वाली रोशनी को मापा जाए, तो यह भी पता चल सकता है कि किसी क्षेत्र का पर्यावरण कितना प्रदूषित है या किस स्तर पर तनावग्रस्त है.

फिलहाल चुनौतियां भी हैं

हालांकि, वैज्ञानिक मानते हैं कि इस शोध को व्यावहारिक उपयोग में बदलना फिलहाल मुश्किल है. इसकी वजह यह है कि इतनी हल्की रोशनी को पकड़ने के लिए बेहद संवेदनशील और महंगे उपकरणों की ज़रूरत होती है. आम अस्पतालों या खेतों में इनका इस्तेमाल अभी संभव नहीं है. इसके अलावा, यह भी जरूरी है कि शोध को बड़े स्तर पर दोहराया जाए और इंसानों पर सीधे परीक्षण किए जाएं. तभी यह तकनीक व्यवहारिक रूप से डॉक्टरों और किसानों के काम आ सकेगी.

मानव शरीर से निकलने वाली हल्की रोशनी को लेकर यह शोध रहस्य और विज्ञान के बीच की दूरी को पाटता है. यह खोज कई लोगों को "आभा" (Aura) या "परालौकिक ऊर्जा" जैसी धारणाओं की याद दिला सकती है, लेकिन वैज्ञानिक साफ कर चुके हैं कि यह शुद्ध रूप से कोशिकाओं की जैव-रासायनिक प्रक्रिया का नतीजा है, न कि किसी रहस्यमयी शक्ति का. फिर भी, यह तथ्य कि हम सभी जीवित रहते हुए एक अदृश्य चमक बिखेरते हैं, और मौत के साथ वह बुझ जाती है - मानव जीवन को और गहरा, और कहीं न कहीं रहस्यमय भी बना देता है.

Similar News