जापान के रहस्यमयी 'घोस्ट फ्लावर' - जो बिना सूरज की रोशनी के भी रहते हैं ज़िंदा, इनमें छिपे हैं कई राज

जापान के घने जंगलों में पाए जाने वाले ‘घोस्ट फ्लावर’ यानी रहस्यमयी सफेद फूल, बिना सूर्य की रोशनी के भी जीवित रहते हैं. इनमें क्लोरोफिल नहीं होता और ये पेड़ों की जड़ों से जुड़े फफूंदों के जरिए पोषण प्राप्त करते हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोबे यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक केनजी सुवेत्सुगु ने इन पौधों पर दशकों तक शोध किया, जिससे पता चला कि ये न केवल अंधेरे में फलते-फूलते हैं, बल्कि अनोखे परागण और प्रजनन तरीके भी अपनाते हैं.;

( Image Source:  Sora AI )
Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On : 29 Oct 2025 9:07 AM IST

जापान के प्राचीन जंगलों की गहराइयों में, जहां सूरज की रोशनी मुश्किल से ज़मीन तक पहुंचती है, वहां एक रहस्यमयी पौधा चुपचाप खिलता है - ‘घोस्ट फ्लावर’. ये पारदर्शी, हल्के सफेद फूल अंधेरे में हल्की रोशनी छोड़ते हुए किसी दूसरी ही दुनिया का अहसास कराते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि ये पौधे बाकी पौधों की तरह प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) नहीं करते. इनमें क्लोरोफिल (Chlorophyll) नहीं होता और ये ज़मीन के नीचे मौजूद फंगल नेटवर्क्स (Fungal Networks) से पोषण प्राप्त करते हैं, जो पास के पेड़ों की जड़ों से जुड़े होते हैं.

इस असामान्य प्रणाली ने वनस्पति विज्ञान के पारंपरिक सिद्धांतों को चुनौती दी है यह साबित करते हुए कि जीवन केवल प्रकाश में ही नहीं, बल्कि गहरी अंधकारमय दुनिया में भी पनप सकता है.

बचपन की खोज जिसने बदल दी एक वैज्ञानिक की ज़िंदगी

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार जापान के प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक केनजी सुवेत्सुगु (Kenji Suetsugu) की ‘घोस्ट फ्लावर’ में दिलचस्पी बचपन से ही शुरू हुई थी. जब वे पांच साल के थे, तब अपने परिवार के साथ नारा (Nara) के कासुगायामा प्राइमिवल फॉरेस्ट में टहल रहे थे. वहीं उन्होंने पहली बार पेड़ों के साये में चमकते हुए इन पारदर्शी फूलों को देखा. वह नज़ारा उनके मन में ऐसा बस गया कि आने वाले वर्षों में यही उत्सुकता उनके वैज्ञानिक करियर की दिशा बन गई.

आज सुवेत्सुगु कोबे यूनिवर्सिटी (Kobe University) में प्रोफेसर हैं और ‘माइकोहेटेरोट्रॉफ्स’ (Mycoheterotrophs) नामक पौधों के विश्व विशेषज्ञों में गिने जाते हैं, यानी ऐसे पौधे जो सूर्य के बजाय फंगस से पोषण लेते हैं. उन्होंने पारंपरिक फील्ड एक्सप्लोरेशन को आधुनिक मॉलिक्यूलर एनालिसिस के साथ जोड़कर यह समझाया कि धरती के नीचे छिपी इस अंधेरी दुनिया में जीवन कितने अनोखे रूपों में मौजूद है.

बिना सूरज की रोशनी के कैसे जीवित रहते हैं ये पौधे?

ज्यादातर पौधे फोटोसिंथेसिस के जरिए सूर्य की रोशनी से ऊर्जा प्राप्त करते हैं, लेकिन घोस्ट फ्लावर में यह क्षमता नहीं होती. इनके पास क्लोरोफिल नहीं होता, जिसके कारण ये खुद भोजन नहीं बना पाते. इसके बजाय, ये अपने फंगस पार्टनर के ज़रिए पेड़ों की जड़ों से जुड़े माइकोराइज़ल नेटवर्क्स में शामिल हो जाते हैं. लेकिन, जहां अन्य पौधे इस नेटवर्क में आपसी सहयोग से पोषण साझा करते हैं, वहीं घोस्ट फ्लावर परजीवी (Parasitic) की तरह व्यवहार करते हैं. वे फंगस से पोषक तत्व चुरा लेते हैं, जो खुद पेड़ों से ऊर्जा प्राप्त करते हैं. यानी, ये पौधे पेड़ों की ऊर्जा को अप्रत्यक्ष रूप से “चोरी” करते हुए जीवित रहते हैं. वैज्ञानिकों ने पाया है कि यह जीवनशैली अब तक पौधों के विकासक्रम में कम से कम 40 बार स्वतंत्र रूप से विकसित हुई है. इसका मतलब यह है कि यह प्रणाली अंधेरे और पोषण-समृद्ध वातावरण में अत्यंत सफल रही है.

दुर्लभ सुंदरता - जो साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए दिखाई देती है

दुनिया भर में फिलहाल लगभग 600 पूरी तरह माइकोहेटेरोट्रॉफिक पौधों की प्रजातियां जानी जाती हैं, जिनमें से करीब आधी ऑर्किड परिवार की हैं. ये पौधे बेहद दुर्लभ होते हैं क्योंकि ये साल में केवल कुछ दिनों के लिए ही खिलते हैं. इनकी पारदर्शी, कांच जैसी पंखुड़ियां और हल्की चमक इन्हें देखने वाले को सम्मोहित कर देती हैं. हालांकि इनका जीवन छोटा होता है, लेकिन इनकी संरचना बेहद जटिल है. यह दिखाता है कि प्रकृति ने अंधेरे में भी जीवन के लिए अद्भुत रास्ते खोज लिए हैं.

कैमरे ने खोला राज़

लंबे समय तक वैज्ञानिक मानते रहे कि घोस्ट फ्लावर के बीज हवा से फैलते हैं. लेकिन सुवेत्सुगु के रिसर्च ने इस मिथक को तोड़ दिया. उन्होंने जापान के जंगलों में मोशन-सेंसिटिव कैमरे लगाए, जिनसे यह पता चला कि कैमल क्रिकेट (Camel Crickets) नामक कीट इन पौधों की बीज फैलाने में अहम भूमिका निभाते हैं. ये निशाचर कीट फूल के फलों को खाते हैं, और बाद में पाचन के बाद उनके बीज नई जगहों पर गिरा देते हैं. इस तरह यह पौधा जंगल के अलग-अलग हिस्सों में फैलता रहता है. सुवेत्सुगु ने यह भी पाया कि इन फूलों का परागण (Pollination) कई सूक्ष्म जीव जैसे - मकड़ी, चींटी और लकड़ी में रहने वाले कीड़े करते हैं. कई बार जब ये परागणकर्ता नहीं मिलते, तो ये पौधे खुद को ही “सेल्फ-फर्टिलाइजेशन” (Delayed Selfing) की प्रक्रिया से निषेचित कर लेते हैं, जिससे उनका अस्तित्व बना रहता है.

जापान में नई प्रजातियों और जीनस की खोज

सुवेत्सुगु की खोजें केवल अध्ययन तक सीमित नहीं रहीं - उन्होंने जापान में कई नई प्रजातियां और एक नया पौधों का जीनस भी खोज निकाला. 2022 में, उन्होंने Monotropastrum kirishimense नामक गुलाबी रंग की दुर्लभ ऑर्किड खोजी, जो केवल पश्चिमी जापान में पाई जाती है. इसी साल उन्होंने Spiranthes hachijoensis नामक “लेडीज़ ट्रेसेज़” समूह की एक नई प्रजाति की पुष्टि की, जो दशकों से किसी और प्रजाति के रूप में गलत पहचानी जा रही थी. 2024 में, सुवेत्सुगु और यासुनोरी नाकामुरा नामक पारिस्थितिकीविद् ने Relictithismia kimotsukiensis नामक पौधे की खोज की - जो एक नया जीनस (Genus) निकला. यह जापान के लिए ऐतिहासिक पल था क्योंकि 1930 के बाद पहली बार देश में किसी नए जीनस की खोज हुई थी. इन खोजों ने जापान के जैव-विविधता मानचित्र को नया आयाम दिया और यह दिखाया कि आधुनिक विज्ञान के बावजूद प्रकृति में अब भी बहुत कुछ छिपा है.

अंधेरे में जीवन का सबक

घोस्ट फ्लावर सिर्फ एक रहस्यमयी पौधा नहीं, बल्कि जीवन की अदम्य शक्ति और अनुकूलन क्षमता का प्रतीक है. ये पौधे दिखाते हैं कि जीव विज्ञान के पारंपरिक नियमों से परे भी जीवन अपने रास्ते बना सकता है. जापान के जंगलों में खिलते ये पारदर्शी फूल इस बात की याद दिलाते हैं कि कभी-कभी अंधकार ही जीवन को नया आकार देता है. जहां रोशनी नहीं पहुंचती, वहां भी प्रकृति अपना चमत्कार दिखाने का तरीका खोज ही लेती है.

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