चीन की 'SACA साजिश' से घिरा भारत! पाकिस्तान-बांग्लादेश बनेंगे मोहरे, पड़ोसी देश कैसे बदल रहे पाला?
चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश मिलकर भारत के खिलाफ 'साका' नाम से नया दक्षिण एशियाई संगठन बना रहे हैं. सार्क की निष्क्रियता का फायदा उठाकर चीन अब भारत के पड़ोसियों को अपने पाले में खींच रहा है. अफगानिस्तान और मालदीव की सैद्धांतिक मंजूरी भी मिल चुकी है. क्या भारत अपने ही पड़ोसी गंवा देगा? जवाब देगी 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति या बनेगा नया संकट?;
चीन अब दक्षिण एशिया में कूटनीतिक मोर्चे पर भारत के खिलाफ एक और बड़ा कदम उठाने जा रहा है. कुनमिंग में चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की त्रिपक्षीय बैठक के बाद इन तीनों देशों ने ‘साका’ (South Asia-China Alliance) नाम से एक नए क्षेत्रीय गठबंधन की नींव रखने का मन बना लिया है. यह संगठन सार्क का चीनी संस्करण कहा जा रहा है, जिसका मकसद भारत को दक्षिण एशिया में अलग-थलग करना है. प्रस्तावित योजना के अनुसार ‘साका’ की पहली बैठक अगस्त में इस्लामाबाद में आयोजित की जा सकती है, जिसमें श्रीलंका, मालदीव और अफगानिस्तान जैसे देशों को भी आमंत्रित किया जाएगा.
2014 में नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुई आखिरी सार्क बैठक के बाद यह संगठन निष्क्रिय हो चुका है. 2016 में उरी आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में होने वाली सार्क शिखर बैठक का बहिष्कार कर दिया था, जिसके बाद से यह मंच लगभग ठप है. इसी खालीपन का फायदा उठाते हुए चीन अब सार्क की जगह 'साका' को लाकर क्षेत्रीय कूटनीति में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है. पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ चीन के पहले से मजबूत संबंध इस योजना की रीढ़ बन चुके हैं.
अफगानिस्तान और मालदीव से मिल चुका है सपोर्ट
चीन पिछले कुछ महीनों से अफगानिस्तान, मालदीव और श्रीलंका जैसे देशों पर भी कूटनीतिक दबाव और प्रलोभनों के जरिए काम कर रहा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक अफगानिस्तान और मालदीव ने ‘साका’ में शामिल होने के लिए सैद्धांतिक स्वीकृति दे दी है. श्रीलंका के साथ चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के अंतर्गत पहले से गहरे संबंध हैं. ऐसे में चीन की यह रणनीति धीरे-धीरे भारत के सभी पड़ोसियों को अपने पाले में लाने की ओर बढ़ रही है.
ये सिर्फ गठबंधन नहीं, भारत के लिए अलार्म है: एक्सपर्ट
पाकिस्तान में भारतीय दूतावास में रह चुके और आईबी के पूर्व संयुक्त निदेशक अविनाश मोहनानी ने दैनिक भास्कर से बात करते हुए स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि चीन 'सुपरपावर मॉडल' पर चल रहा है. उन्होंने कहा कि चीन अब अमेरिका की तरह अपने ब्लॉक बना रहा है, जिसमें भारत के पड़ोसी धीरे-धीरे शामिल हो रहे हैं. बांग्लादेश और पाकिस्तान तो पहले ही चीन के पक्ष में हैं, नेपाल और श्रीलंका पर भी चीनी प्रभाव स्पष्ट है. अगर भारत ने अभी भी काउंटर पॉलिसी नहीं अपनाई तो वह अपने ही क्षेत्र में अलग-थलग पड़ सकता है.
भारत के लिए नेबरहुड फर्स्ट ही उपाय
एक्सपर्ट का कहना है कि भारत को अब ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की नीति पर गंभीरता से अमल करना होगा. पहला कदम सांस्कृतिक रिश्तों की पुनर्स्थापना है, जहां सॉफ्ट पावर के जरिए भारत को अपने ऐतिहासिक और धार्मिक संबंधों को फिर से मजबूती देनी होगी. दूसरा पहलू है आर्थिक भागीदारी- भारत को अपने पड़ोसियों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत करने होंगे और जरूरत पड़ने पर उन्हें वित्तीय सहायता भी देनी चाहिए. तीसरा और अहम कदम है- तकनीकी सहयोग, जहां भारत को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और शिक्षा में निवेश करना होगा.
चीन का प्रभुत्व बढ़ता, भारत की चुप्पी खतरनाक
एससीओ की बैठक में पहले ही भारत विरोधी रुख दिखा चुके चीन ने अब दक्षिण एशिया में एक नई साजिश रच दी है. अगर भारत ने अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को फिर से नहीं साधा, तो 'साका' जैसे संगठन भारत की पारंपरिक क्षेत्रीय नेतृत्व की स्थिति को चुनौती दे सकते हैं. वक्त है कि भारत केवल प्रतिक्रिया न दे, बल्कि अपने भू-राजनीतिक असर को पुनः स्थापित करने के लिए आक्रामक रणनीति अपनाए वरना दक्षिण एशिया में 'बीजिंग बनाम दिल्ली' की लड़ाई में दिल्ली अकेली रह सकती है.